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सूखे में खेतों की प्यास बुझाना तो सुखोली वालों से सीखें, जानें कैसे बने मिसाल

विकट सूखे में भी विभाग मुंह फेरे रहा तो जिवट किसान नेस्तनाबूद नहर का विकल्प खोज प्लास्टिक शीट से प्यासे खेतों को सींच तंत्र को आइना दिखा रहे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 04:38 PM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 08:24 AM (IST)
सूखे में खेतों की प्यास बुझाना तो सुखोली वालों से सीखें, जानें कैसे बने मिसाल
सूखे में खेतों की प्यास बुझाना तो सुखोली वालों से सीखें, जानें कैसे बने मिसाल

दीप सिंह बोरा, रानीखेत : विषम भौगोलिक हालात, सिंचाई संसाधनों का अभाव, उस पर प्रकृति की मार व जंगली जानवरों का कहर सो अलग। चौतरफा चुनौतियों के बीच कुछ धरती पुत्र पहाड़ सरीखी कठिन खेती को आसान बना हताश किसानों को हौसला दे रहे। विकट सूखे में भी विभाग मुंह फेरे रहा तो जिवट किसान नेस्तनाबूद नहर का विकल्प खोज प्लास्टिक शीट से प्यासे खेतों को सींच तंत्र को आइना दिखा रहे। यहां बात हो रही सुखोली, पातली व विशालकोट गांव के मेहनतकशों की। कोसी से सटी कुजगढ़ घाटी (ताड़ीखेत ब्लॉक) में उर्वर खेतों की सिंचाई के लिए वर्ष 2002 में 'बना' नहर बनाई गई। साल 2010 की प्रलयंकारी आपदा में लगभग 300 मीटर लंबी नहर ध्वस्त हो गई। तब से पुनर्निर्माण हुआ ही नहीं।

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... और प्लास्टिक शीट जोड़ पहुंचाया पानी  

सिंचाई संसाधन ध्वस्त होने से करीब 400 नाली (आठ हेक्टेयर) खेतों पर वर्षों से संकट छा रहा। मगर खेती छोडऩे के बजाय किसानों ने पॉलिथिन शीट को रेतीली मिट्टïी पर बिछा नहर का जो विकल्प तलाशा है, वह बेमिसाल है। सुखोली के देवेंद्र सिंह कहते हैं, अब सीजनल सब्जियों की बंपर पैदावार ले रहे।

हर बरसात में उजड़ते, फिर आबाद होते खेत

कुजगढ़ नदी की बाढ़ से हर वर्ष इन गांवों के उपजाऊ खेत तबाह होते हैं। मगर ये उतनी ही बार रोखड़ भूमि को बड़े करीने से तैयार भी कर ली जाती है। हालांकि इस बरसात कुजगढ़ सूखी ही रही।

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