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नैनीताल की शान और पहचान है बोट हाउस क्लब, जानिए इसका इतिहास

नैनीताल का जिक्र आए और बोट हाउस क्लब का उसमें उल्लेख ना हो बात अधूरा ही रहेगी। झील किनारे स्थापित क्लब की बनावट व अनुपम सौंदर्य बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करता है। बोट हाउस क्लब के साथ ही नैनीताल यॉट क्लब भी जुड़ा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 08:06 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 10:30 AM (IST)
नैनीताल की शान और पहचान है बोट हाउस क्लब, जानिए इसका इतिहास
नैनीताल की शान और पहचान है बोट हाउस क्लब, जानिए इसका इतिहास

नैनीताल, किशोर जोशी : नैनीताल का जिक्र आए और बोट हाउस क्लब का उसमें उल्लेख ना हो, बात अधूरा ही रहेगी। झील किनारे स्थापित क्लब की बनावट व अनुपम सौंदर्य बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करता है। बोट हाउस क्लब के साथ ही नैनीताल यॉट क्लब भी जुड़ा है। यह क्लब सेलिंग आयोजति टूर्नामेंट कराता रहा है।

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नैनीताल बोट हाउस क्लब की अस्थाई स्थापना 1892 में की गई थी। उससे पहले क्लब के स्थान पर नारायणी देवी का मंदिर था, जिसकी स्थापना परमबार बाबा द्वारा की गई थी। शहर के शिल्पियों में शुमार मनोहर लाल साह द्वारा ग्रामीण यात्रियों के लिए धर्मशाला भी बनाई गई थी। 1880 के भयंकर भूस्खलन में यह ध्वस्त हो गई थी।

इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं कि 1892 में स्थापित क्लब के मुख्य भवन का निर्माण 1897 में हुआ था। 1862 में नैनीताल को उत्तर पश्चिम प्रान्त की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया, जिस कारण शहर की बसासत को बढ़ावा मिला। साथ ही लोगों में झील से संबंधित खेलों की तरफ रुझान बढा। बोट हाउस क्लब के मुख्य भवन के साथ नैनीताल सेलिंग क्लब की स्थापना हुई। इसके साथ ही बोटिंग लोकप्रिया होने लगी। यह क्लब भारत के तीन प्रथम क्लबों में एक है।

प्रो रावत के अनुसार 1910 में बोट हाउस क्लब योटिंग क्लब के कारण जाना जाने लग्स। 1910 में ही नैनीताल क्लब को नैनीताल यॉट क्लब नाम दिया गया। इस बदलाव का श्रेय कैरी बंधुओं को जाता है। जिसमें बड़े भाई का नाम मेजर सीडब्लू कैरी व छोटे का कैप्टन कैरी था। तब लोकप्रिय यॉट का डिज़ाइन नैनीताल के लिए बनाया गया। लिंगटन कंपनी द्वारा डिजाइन का निर्माण किया। इसी साल यॉट क्लब को विश्वप्रसिद्ध यॉट रेलिंग एसोसिएशन को मान्यता मिली। तब के दौर में यह क्लब राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता कराता था। महिलाओं के लिए भी 1923 में प्रतियोगिता की जाती थी, जिसे लेडीज चैलेंज कप नाम दिया गया था।

आजादी के बाद आया क्लब पर नियंत्रण

आजादी के बाद 1948 में क्लब का नियंत्रण भारतीयों के हाथ आ गया मगर सर्वोच्च कमोडोर का पद अंग्रेजों के हाथ में था। 1951 में सबसे पहले राजा हरिचंद राज सिंह को रियर कमोडोर नियुक्त होने का सम्मान प्राप्त हुआ। 1957 में सर्वप्रथम भारतीय कमोडोर का पद दिया गया, राजा गिरिराज सिंह को यज सम्मान मिला। जिनके वंशज आज भी अयारपाटा में रहते हैं। राजकुमार गिरिराज सिंह ने योटिंग को खूब प्रोत्साहन दिया और क्लब को आजादी के बाद भारतीय संदर्भ में मान्यता प्राप्त करवाई। क्लब के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी बीबी जोशी बताते हैं कि क्लब के पदेन अध्यक्ष कमिश्नर होते हैं। वर्तमान में क्लब डीके शर्मा, नसीम खान, विजय साह समेत अन्य पदाधिकारी हैं।


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