उत्तराखंड चुनाव 2022 : उत्तराखंड में बड़े चेहरों को जनता ने बार-बार जिताया तो हराया भी
उत्तराखंड चुनाव 2022 भाजपा और कांग्रेस चुनाव प्रचार में तेजी से जुटी हैं। मगर उत्तराखंड के चुनावी मिजाज को समझना आसान नहीं है। उप्र के दौर से अब तक की बात करें तो जनता ने कई बार बड़े चेहरों संग उलटफेर किया है।
गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी: उत्तराखंड विधानसभा का चुनाव अब अहम चरण पर पहुंच चुका है। इस रण में शामिल होने जा रहे भाजपा व कांग्रेस के योद्धाओं के चेहरों से अब पर्दा हटना बाकी है। चुनावी संग्राम की निर्णायक जनता ही होगी। उत्तराखंड के मतदाता उत्तर प्रदेश के समय से ही कई बार बड़ा उलटफेर कर चुके हैं। यहां का इतिहास ऐसा रहा है कि जिन चेहरों के नाम पर चुनाव लड़ा गया, जनता ने उन्हें भी अस्वीकार कर दिया। 32 साल पहले एनडी तिवारी के पीएम न बन पाने की एक वजह लोकसभा चुनाव में हार भी रही। 2017 में सीएम रहते हरीश रावत दो सीटों से लड़े और दोनों में हार गए। तो भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष समेत कई बड़े नाम भी जनता की परीक्षा में पास नहीं हो पाए थे।
उत्तराखंड की राजनीति में वोटरों का मिजाज भांपना आसान नहीं है। इसके पीछे यहां की भौगोलिक परिस्थितियों का भी बड़ा रोल है। पहाड़, भाबर और तराई के मुद्दे हमेशा अलग रहे हैं। इसलिए जनता भी कई बार चौंकाने वाले नतीजे दे चुकी हैं। 1991 में एनडी तिवारी नैनीताल लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे। मगर रामलहर में भाजपा के नए-नवेले नेता बलराज पासी से चुनाव हार गए। सीएम रहते हुए 2017 के चुनाव में हरीश रावत किच्छा के साथ हरिद्वार ग्रामीण सीट भी गंवा बैठे थे। 2012 के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर था। मगर ईमानदार छवि वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी कोटद्वार सीट से हार गए। तब खंडूड़ी हैं जरूरी नारे के साथ चुनाव लड़ा गया था।
2017 के चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को सीट बदलना भारी पड़ा। स्वास्थ्य मंत्री रहे कोटद्वार विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी को भी जनता ने फिर मौका नहीं दिया। वहीं, कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे दिनेश अग्रवाल, दिनेश धनै और नवप्रभात को भी 2017 के चुनाव में जनता ने स्वीकार नहीं किया। वहीं, मोदी लहर के बावजूद 2017 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट््ट ने रानीखेत सीट गंवा दी थी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भट्ट ने पूर्व सीएम हरीश रावत को बड़े अंतर से मात दी। अब वह केंद्र में रक्षा एवं पर्यटन राज्यमंत्री हैं।
दोबारा नहीं जीत सके उत्तराखंड के शिक्षामंत्री
राज्य गठन से अब तक पांच शिक्षामंत्री चुनाव हार चुके हैं। 2000 में अंतरिम सरकार में शिक्षामंत्री बने तीरथ रावत 2002 में हार गए। एनडी सरकार मेें शिक्षामंत्री रहे नरेंद्र भंडारी 2007 में हारे। 2007 से 12 की भाजपा सरकार में गोविंद सिंह बिष्ट और खजान दास को यह मंत्रालय मिला। लेकिन 2012 में दोनों पराजित हुए। 2012 से 2017 तक पीडीएफ कोटे के मंत्री प्रसाद नैथानी शिक्षा मंत्री रहे मगर 2017 में वह भी हार गए। वर्तमान में अरविंद पांडेय शिक्षामंत्री हैं।
इंदिरा-भगत में मुकाबला बराबर रहा
कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल स्व. डा. इंदिरा हृदयेश ने 2002 के चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता बंशीधर भगत को हल्द्वानी विधानसभा से हराया था। जिसके बाद एनडी तिवारी के नेतृत्व वाली सरकार में सुपर सीएम की भूमिका में भी रहीं। हालांकि, 2007 के चुनाव में भगत ने हल्द्वानी सीट से ही इंदिरा को शिकस्त दी थी।