रिटायर्ड बैंक मैनेजर ने शुरू की केले की खेती, परंपरागत खेती से कई गुना अधिक मुनाफा कमा रहे
गेंहू-चावल की खेती को नकदी फसल माना जाता है। कृषि व फार्मिंग के लिए मशहूर ऊधमसिंहनगर जिले में ज्यादातर किसान धान गेंहू और गन्ने की फसल उगा रहे हैं। ऐसे में सितारगंज के एक रिटायर्ड बैंक प्रबंधक ने धान और गेंहू के बजाय केले की बागवानी शुरू कर दी।
रुद्रपुर, जेएनएन : गेंहू और चावल की खेती को नकदी फसल माना जाता है। कृषि व फार्मिंग के लिए मशहूर ऊधमसिंहनगर जिले में ज्यादातर किसान धान, गेंहू और गन्ने की फसल उगा रहे हैं। ऐसे में सितारगंज के एक रिटायर्ड बैंक प्रबंधक ने धान और गेंहू के बजाय केले की बागवानी शुरू कर दी। जिसमें उन्हें परंपरागत खेती के मुकाबले कई गुना ज्यादा आय हो रही है।
नैनीताल बैंक से वरिष्ठ शाखा प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद बलदेव सिंह कृषि कार्य शुरू किया। जिसमें कोई विशेष लाभ नहीं होने पर बागवानी का कार्य कर रहे हैं। नानकमत्ता, सितारगंज के मटिया गांव निवासी बलदेव सिंह ने बेटे के कहने पर वर्ष 2016 में पहली बार एक एकड़ क्षेत्र में केले की पौध लगाई। केले के बारे में कोई अनुभव नहीं होने के कारण पौधे नष्ट होने लगे। सिंचाई व खाद का संतुलन खराब होने से कोई खास कामयाबी नहीं मिली।
हिम्मत नहीं हारने वाले बलदेव ने प्रयास जारी रखा। वर्ष 2017 में उद्यान व मनरेगा विभाग के सहयोग से तीन एकड़ क्षेत्र में करीब तीन हजार जी-9 प्रजाति के पौधे लगाए। सरकारी सहायता से मिले पौधों कों परिपक्व होने में ज्यादा समय लग गया। फिर भी बलदेव सिंह को खेती से करीब चार लाख रुपये का मुनाफा हुआ। केले की खेती से वह संतुष्टि महसूस कर रहे हैं और इसे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं।
सवा चार एकड़ में फसल
केले की बागवानी कर रहे बलदेव सिंह के पास वर्तमान में करीब सवा चार एकड़ की खेती मौजूद है। जिसमें 25 किलो तक के गुच्छे हैं। बलदेव ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कई किसान 40 किला तक के गुच्छों का उत्पादन कर रहे हैं। ऐसे में केले की बागवानी को लेकर वह बेहतर करने के लिए प्रयासरत हैं। जिसमें करीब पांच लाख रुपये तक आय हो सकती है।
घर में ही मिल रहा बाजार
केले की फसल के लिए बाजार हल्द्वानी में मौजूद है। जहां वह अपनी फसल भेजते रहे हैं। अब केले की खरीद के लिए लोग उनके घर तक पहुंच रहे हैं। जहां खेत से ही केला उठाकर लोग ले जा रहे हैं। ऐसे में तैयार केला बाजार तक भेजने की समस्या भी नहीं रह गई है।
सरकारी नहीं होता असरकारी
बागवानी कर रहे बलदेव सिंह का कहना है कि सरकारी सेवा के भरोसे रहना ठीक नहीं है। किसान या बागवान को अपनी किस्मत खुद के हाथों से लिखनी होगी। इसके लिए नई तकनीकि व शोध के आधार पर खेती के लिए प्रयास की आवश्यकता है।
लोगों के लिए बने प्रेरणास्रोत
बागवानी के कार्य में शुरुआती असफलता के बाद भी सफलता की कहानी लिखने वाले बलदेव सिंह लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। जिसके लिए सरकारी स्तर पर भी विभिन्न विभागों के लिए वह प्रेरक का का कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त दो वर्ष पहले केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय से आए अधिकारी ने उनसे मिलकर रिपोर्टिंग की थी। बागवानी व कृषि के लिए वह तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब आदि में प्रशिक्षण के लिए जा चुके हैं।