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उत्‍तराखंड में पहली बार बिना हिरासत के एससी-एसटी एक्ट में जमानत मंजूर, जानिए क्‍या है पूरा मामला

सूबे में पहली बार बिना हिरासत में लिए अनुसूचित जाति एवं जनजाति निवारण अधिनियम 1989 के तहत चंद्रशेखर करगेती को जमानत दी गई है। यह जमानत विशेष न्यायधीश एससी एसटी पंचम आशुतोष मिश्रा देहरादून की कोर्ट से मिली है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 28 Nov 2021 08:39 AM (IST)Updated: Sun, 28 Nov 2021 08:39 AM (IST)
उत्‍तराखंड में पहली बार बिना हिरासत के एससी-एसटी एक्ट में जमानत मंजूर, जानिए क्‍या है पूरा मामला
उत्‍तराखंड में पहली बार बिना हिरासत के एससी-एसटी एक्ट में जमानत मंजूर, जानिए क्‍या है पूरा मामला

जागरण संवाददाता, नैनीतावल : सूबे में पहली बार बिना हिरासत में लिए अनुसूचित जाति एवं जनजाति निवारण अधिनियम 1989 के तहत चंद्रशेखर करगेती को जमानत दी गई है। यह जमानत विशेष न्यायधीश एससी एसटी पंचम आशुतोष मिश्रा देहरादून की कोर्ट से मिली है। नैनीताल हाई कोर्ट ने करगेती की याचिका को निस्तारित करते हुए निचली अदालत में जमानत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे। करगेती के विरोधियों की ओर से याचिका खारिज होने की जानकारी दी गई थी, जो गलत थी।

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दरअसल चंद्रशेखर करगेती के खिलाफ समाज कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक व जौनसार क्षेत्र देहरादून निवासी गीताराम नौटियाल ने 2016 में अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत थाना बसंत विहार देहरादून में मुकदमा दर्ज कराया था। विवेचना के बाद करगेती के विरुद्ध ट्रायल में चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस चार्जशीट को निरस्त कराने, ट्रायल कोर्ट के समन आदेश व गैर जमानती आदेश को निरस्त कराने के लिए करगेती ने 2017 में हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। यह मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के लगाए गए दो लाख रुपये का जुर्माना माफ कर दिया, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए प्रार्थना पत्र दायर किया।

न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ ने करगेती की याचिका निस्तारित करते हुए उनसे जमानत के लिए विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट देहरादून के समक्ष जमानत प्रार्थना पत्र पेश करने के निर्देश दिए थे। सुनवाई के दौरान करगेती ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआइ का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि जांच के दौरान अभियुक्त गिरफ्तार नहीं हुआ हो और सजा सात साल से कम हो, तो इसका लाभ देते हुए अभियुक्त को बिना गिरफ्तार किए जमानत दी जा सकती है। करगेती ने प्रदेश का छात्रवृत्ति घोटाला भी उजागर किया है, उसी से जुड़ा यह मामला है। पहली बार बिना गिरफ्तारी के एससी एसटी एक्ट में जमानत मंजूर होने से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे लोगों में उत्साहजनक संदेश गया है।

क्‍या है एससी एसटी कानून

1947 में जब देश आजाद हुआ और उसके बाद 1950 में जब देश का अपना संविधान लागू होने पर भी देश में कुछ लोग अपने अधिकारों से वंचित रहे। भारतीय संविधान द्वारा कुछ विशेष वर्ग जैसे अति पिछड़ा, दलित आदि को समानता का मौलिक अधिकार मिला था लेकिन फिर पर यह वर्ग लगातार भेदभाव का शिकार होता रहा। इसीलिए सरकार द्वारा एससी एसटी एक्ट लाने की जरूरत पड़ी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को न्‍याय दिलाने के लिए संसद ने वर्ष 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया। इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किये जाने पर 30 जनवरी 1990 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया गया था। इस अधिनिमय के अन्तर्गत आने वाले अपराध संज्ञेय, गैर जमानती और समझौता योग्य नहीं होते हैं।


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