33 साल से लोगों में मुफ्त पौध बांट रहे हैं आयुर्वेद चिकित्स डॉ आशुतोष पंत, अनूठा है प्रकृति से लगाव
पर्यावण संरक्षण के प्रति अगर जुनून देखना है तो हल्द्वानी के आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डॉ आशुतोष पंत के बारे में जानिए। डॉ. 33 सालों से अब तक लाखो पौधे खुद खरीद कर लोगों को बांट चुके हैं। पर्यवारण के प्रति उनका यह लगाव बिरले ही लोगों में देखने को मिलता है।
रामनगर, विनोद पपनै : पर्यावण संरक्षण के प्रति अगर जुनून देखना है तो हल्द्वानी के आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डॉ आशुतोष पंत के बारे में जानिए। डॉ. 33 सालों से अब तक लाखो पौधे खुद खरीद कर लोगों को बांट चुके हैं। पर्यवारण के प्रति उनका यह लगाव बिरले ही लोगों में देखने को मिलता है। कई लोग उन्हें आज का श्रवण कुमार भी कहने लगे हैं। एक श्रवण कुमार वह थे जिन्होंने अपने माता पिता को टोकरी में बैठा कर तीर्थ यात्रा करवाई थी। और एक श्रवण कुमार यह हैं जो अपने पिता की स्मृति में हर साल फलदार पौधे खरीदकर लोगों में वितरित कर रहे हैं। इसके बीच बस यही सोच है कि धरा हरी भरी रहेगी तो मेरा गाँव, मेरा देश खुशहाल रहेगा।
डॉ आशुतोष पन्त बताते हैं कि 1988 से पर्यावरण संरक्षण के लिये बिना किसी स्वार्थ एक प्रयास कर रहे हैं । शुरुआत में खुद पार्कों और सड़कों के किनारे या जंगल में पौधे लगाते थे पर इसमें सफलता की दर बहुत कम रहती। एकला चलो के सिद्धांत के साथ वह काफी समय तक इस अभियान में जुड़े रहे। फिर विचार आया कि क्यों न ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को फलदार वृक्ष दिया जाए, वे उसकी देख रेख भी कर लेंगे। बस इसी सोच के साथ 1996 से ग्रामीण क्षेत्रों में इच्छुक लोगों को फलों के पौधे निशुल्क भेंट करना शुरू किया । यह पहल रंग लाई।
पिता की प्रेरणा थी इसके पीछे
डॉ पंत बताते हैं कि उनके पिता सुशील चंद्र पंत खुद पर्यावरण संरक्षण के प्रति चिंतित रहते थे। उनके देहांत के बाद उनकी प्रेरणा और याद को जीवित रखने के लिए यह अभियान अनवरत रूप से जारी है। डॉ आशुतोष कहते है कि वर्तमान में मेरा प्रतिवर्ष कम से कम बीस हजार पेड़ लगाने का लक्ष्य है जिनमें से तीन हजार अखरोट के पौधे शीतकाल में पर्वतीय क्षेत्र में लगाये जाते हैं। अब तो लोग खुद उनसे निशुल्क पौध दिए जाने की मांग करने लगे है।
अपने वेतन से खरीदते हैं पौधे
आशुतोष पंत अपने वेतन से पौधे खरीद कर वितरित करते आए हैं। इस मुहिम में अभी तक किसी एनजीओ या संस्था से कोई सहायता नहीं ली। कहते हैं वह अभी तक तीन लाख पांच हजार पौधे ग्रामीणों के सहयोग से रोप चुके हैं।
अखरोट उत्तरखण्ड की आर्थिकी के लिए वरदान
अखरोट की खेती उत्तराखण्ड की आर्थिकी के लिये वरदान साबित हो सकती है। कहते है इस ओर यहां के किसानों को ध्यान देना चाहिए। सरकार को भी इसके लिये प्रयास करने चाहिये कि किसानों को अच्छी प्रजाति के पौधे उपलब्ध हो सकें । डॉ पंत बताते हैं कि अगर इसी तरह विकास के नाम पर पेड़ों की बलि दी जाती रहेगी तो आने वाली पीढ़ी को सांस लेने के लिये हवा मिलेगी ना पीने के लिये पानी। 2040 तक भूमिगत जल समाप्त हो जाएगा तो ये सारा विकास धरा रह जायेगा। हम सबको अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए और बड़ा होने तक उनकी देखभाल भी करनी चाहिये।
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