Solar Eclipse 2020 : एरीज ने लाइव किया सूर्यग्रहण का अद्भुत नजारा, धुंध से कम हुई विजिबिलिटी
सूर्यग्रहण के अद्भुत नजारे को आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज नैनीताल ने रविवार को लाइव किया।
नैनीताल, जेएनएन : सूर्यग्रहण के अद्भुत नजारे को आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज नैनीताल ने रविवार को लाइव किया। सूर्य से 400 गुणा छोटा चन्द्रमा जब सूर्य के करीब पहुंचा तो दुनिया के कई हिस्सों में ग्रहण वलयाकार नजर आया। बजकि नैनीताल में फिलहाल ग्राहण का कुछ हिस्सा ही नजर आया है। एरीज ने इसे जूम एप पर लाइव किया है। जिसका लिंक देश के चुनिंदा सौ लोगों को शेयर किया गया है। जिसमें खगोल विज्ञान से जुड़े शोध छात्र और वैज्ञानकि शामिल हैैं। एरीज की वेबसाइट और यूट्यूब पर भी ग्रहण को देखा जा सकेगा। हालांकि धुंध होने के कारण विजिबिलिटी न होने से ग्रहण साफ नजर नहीं आ रहा है।
उत्तराखंड राज्य के कई हिस्सों में वलयाकार ग्रहण नजर आ रहा है। नैनीताल में सुबह 10.25 बजे सूर्य ग्रहण की चपेट में आना शुरू हो गया। दोपहर 12.08 बजे 95 फीसद सूर्य ग्रहण की गिरफ्त में आ गया। दोपहर 1.54 बजे सूर्य ग्रहण से मुक्त हो जाएगा। एरीज के वैज्ञानिक डॉ शशिभूषण पांडे ने बताया कि वलयाकार ग्रहण उत्तराखंड में देहरादून, नई टिहरी, चमोली, जोशीमठ व गोपेश्वर आदि बेल्ट में ही नजर आया। इन क्षेत्रों में भी चंद्रमा सूर्य का 99 प्रतिशत ही ढक पाएगा। जबकि नैनीताल में ग्रहण का 96 फीसद हिस्सा ही नजर आएगा। यहां वलयाकार ग्रहण देखे जाने की संभावना नहीं है।
तीन टेलीस्कोप से दिखाया जा रहा ग्रहण
वरिष्ठ वैज्ञानिक पांडे ने बताया कि एरीज में वैज्ञानिकों ने छह इंच टेलीस्कोप के लेंस के साथ 3-3 इंच की दो छोटी टेलीस्कोप से प्रसारण किया जा रहा है। शनिवार को ही परीक्षण कर लिया गया था। हालांकि धुंध के कारण विजिबिलिटी में कल भी परीक्षण के दौरान दिक्कत आ रही थी।
ऐसा होता है वलयाकार सूर्यग्रहण
वलयाकार सूर्यग्रहण बेहद दिलचस्प है। इस ग्रहण में चंद्रमा का आभासीय आकार सूर्य से कम होने के कारण चंद्रमा की छाया पूरी तरह से सूर्य को ढक नही पाती है और सूर्य का बाहरी हिस्सा आग के छल्ले के समान नजर आता है। जिस कारण इसे वलयाकार सूर्यग्रहण कहा जाता है।
चार तरह के होते है सूर्यग्रहण
खगोल विज्ञानी डॉ शशिभूषण पांडे के अनुसार सूर्यग्रहण अदभुत खगोलीय घटना है। जब पृथ्वी चंद्रमा व सूर्य एक सीध में आ जाते हैं तो ग्रहण का संयोग बनता है। जिसमें पृथ्वी व सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता है। तब चंद्रमा की छाया सूर्य को ढकना शुरू कर देती है। सूर्यग्रहण चार प्रकार के होते हैं। जिनमें आंशिक, वलयाकार, पूर्ण व हाईब्रीड शामिल हैं। इनमें हाईब्रीड सूर्यग्रहण दुर्लभ माना जाता है। जिसमें पूर्ण व वलयाकार ग्रहण की स्थिति बनती है। आंशिक ग्रहण में सूर्य के एक हिस्से में ही ग्रहण लग पाता है। पूर्ण सूर्यग्रहण में सूर्य पर पूरी तरह से काली छाया नजर आती है। वैज्ञानिक लिहाज से यह ग्रहण बेहद महत्वपूर्ण होता है। वलयाकार सूर्यग्रहण में चंद्रमा की छाया सूर्य को पूरी तरह से ढक नही पाती है और सूर्य के चारों ओर गोल आंखिरी हिस्सा छाया से मुक्त रहता है।
11 साल बाद होगा अगला वलयाकार सूर्यग्रहण
रिंग ऑफ फायर यानी वलयाकार सूर्यग्रहण इससे पूर्व पिछले साल 26 दिसंबर हुआ था, जिसमें वलयाकार ग्रहण दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में देखने को मिला था। इसके अलावा अन्य हिस्सों में आंशिक सूर्यग्रहण ही देखने को मिला था। अब अगला वलयाकार सूर्यग्रहण 11 साल बाद देखने को मिलेगा।
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