पहाड़ के सूखे नौले को पुनर्जीवित करने में जुटीं आर्किटेक्ट प्रगति
प्रगति बताती हैं कि प्रदेश में दो लाख नौलों से पानी बहा करता था। करीब 60 हजार नौले सूख चुके हैं। जबकि कई विकास कार्यों की वजह से नष्ट हो गए। वह लगातार कुमाऊं के जिलों का दौरा कर नौलों की पुरानी स्थिति के बारे में जानकारियां जुटाती हैं।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : भीमताल क्षेत्र की आर्किटेक्ट महिला आलीशान भवनों के नक्शे बनाने के साथ ही पानी बचाने के लिए पसीना बहा रही हैं। कई सालों से ये महिला पहाड़ के नौलों के संरक्षण को लेकर प्रयासरत हैं। अब तक सात नौलों को पुनर्जीवित करने का प्रयास उन्होंने किया। जिसके भविष्य में सार्थक परिणाम आने की महिला को उम्मीद है।
मेहरा गांव में रहने वाली प्रगति जैन पेशे से आर्केटेक्ट हैं। प्रगति ने पर्यावरण व जल संरक्षण के लिए वर्ष 2012 से प्रयास शुरू कर दिए थे। वर्ष 2017 में वह एक स्वयंसेवी संस्था से भी जुड़ गईं। प्रगति बताती हैं कि प्रदेश में दो लाख नौलों से पानी बहा करता था। करीब 60 हजार नौले सूख चुके हैं। जबकि कई विकास कार्यों की वजह से नष्ट हो गए। वह लगातार कुमाऊं के जिलों का दौरा कर नौलों की पुरानी स्थिति के बारे में जानकारियां जुटाती हैं। कई नौले सूख चुके हैं या उनका पानी कम हो चुका है। इसके सबसे अहम कारण विकास के नाम पर नौलों के प्राकृतिक रूप से छेड़छाड़ करना है। वह नौलों को पुराने रूप की तरह बनाने का प्रयास कर रही हैं। इसके साथ ही नौलों के आसपास चाल-खाल बनाए जाते हैं। जिससे वर्षा जल संचय हो सके और भूजल स्तर में बढ़ोतरी हो। इसके साथ ही वह जिन भवनों के नक्शे बनाती हैं, उनमें सोख्ता पिट के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी बनाया जाता है। जिससे उन भवन की छत पर गिरने वाला पानी धरा तक पहुंचे और भूजल रिचार्ज हो।
जंगलों में आग बुझाने के लिए कर रही जागरूक
प्रगति जैन बताती हैं कि जंगलों की आग से वन संपदा को नुकसान होने के साथ ही प्राकृतिक स्रोत, नौलों, धारों पर असर पड़ता है। महीनों तक मेहनत कर वन विभाग, सामाजिक संस्थाओं के लोग पौधे लगाते हैं। वहीं दावानल से ये पौधे नष्ट हो जाते हैं। दावनल की घटनाओं को रोकने के लिए वह लोगों व बच्चों को जागरूक कर रही हैं। जिससे वन संपदा को होने वाली हानियों से बचा जा सके।
पहाड़ों में बोरिंग की पक्षधर नहीं प्रगति
प्रगति जैन पहाड़ों पर बोरिंग कर निकाले जा रहे भूजल की पक्षधर नहीं है। प्रगति कहती हैं कि बोरिंग से प्राकृतिक जल स्रोतों को काफी नुकसान होता है। अगर जिन स्थानों पर काफी जरूरत होने पर बोरिंग कर भूजल दोहन किया जाए तो उसके आसपास भूजल रिचार्ज करने के लिए भी पिट आदि बनाने चाहिए। वह भूजल रिचार्ज के लिए पिट बनाने के इच्छुक लोगों को निश्शुल्क डेटा भी उपलब्ध कराती हैं।
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