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एक आयुर्वेदिक अधिकारी जो मरीजों के साथ ही करते हैं पर्यावरण का भी 'इलाज', जानिए कैसे

जुलाई-अगस्त में बरसात के पौधे व जनवरी में पर्वतीय क्षेत्र में अखरोट के पौधे लगाते हैं। वर्ष 2000 में गुजरात में भूकंप के बाद गुजरात व एक बार वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई आपदा में लोगों की मदद के लिए उपार्जित अवकाश लेेकर गए थे।

By Prashant MishraEdited By: Published: Sat, 18 Dec 2021 07:57 AM (IST)Updated: Sat, 18 Dec 2021 07:57 AM (IST)
अब तक उन्होंने तीन लाख 22 हजार पौधे सैकड़ों गांवों में लगा दिए।

अरविंद कुमार सिंह, रुद्रपुर : मरीजों को उपचार के साथ ही काउंसिलिंग। स्वस्थ रहने का तरीका बताना। दिन भर ऐसी व्यस्तता कि कभी-कभी भोजन करने की फुर्सत भी नहीं। कुछ ऐसी ही दिनचर्या है जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डा. आशुतोष पंत की। वह पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी इतने संवेदनशील हैं कि प्रशासनिक कार्य के साथ ही मरीजों को भी ओपीडी में देखते हैं। साथ ही पर्यावरण का भी इलाज करते हैं। उन्होंने कल्याणी नदी के किनारे नगर निगम की करीब पौने दो बीघे जमीन पर कल्याणी नाम से वाटिका तैयार कर दी।

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क्षेत्रों में लगाए लाखों पौधे

डा. पंत रोजाना काम से समय निकालकर पौधों की देखभाल करने वाटिका पहुंचते हैं। अब तक उन्होंने तीन लाख 22 हजार पौधे सैकड़ों गांवों में लगा दिए। डा. पंत ने यूएस नगर में स्कूलों के अलावा कई गांवों में खुद के वेतन से फलदार, छायादार पौधे बांटे हैं। 

कल्याणी नदी को साफ करने की मुहिम

सिडकुल की वजह से वायु के साथ जल प्रदूषण बढऩे लगा। जीवनदायिनी कहे जाने वाली कल्याणी नदी का जल जहरीला होता जा रहा है। यह देख उन्होंने जल को दूषित होने से बचाने के लिए नगर निगम प्रशासन से संपर्क किया और कल्याणी नदी के किनारे मिनी जंगल यानी कल्याणी वाटिका बनाने का प्रस्ताव रखा। इस पर निगम ने अटरिया रोड स्थित जगतपुरा में नदी के किनारे पौने दो बीघा जमीन वाटिका लगाने को दे दी। डा. पंत ने जून में आंवला, बेल, नीम, करौदा सहित सभी प्रकार के दो सौ से अधिक पौधे लगाए। 18 अक्टूबर को आई बाढ़ से वाटिका के कई पेड़ बह गए। अब फिर उन पर पौधे लगा दिए हैं, वर्तमान में 140 पौधे लगे हैं। वाटिका की देखरेख के लिए 1400 रुपये प्रति माह पर एक व्यक्ति की ड्यूटी लगा दी है। 

डा. पंत यूएस नगर में जिला आयुर्वेदिक अधिकारी के पद पर तैनात हैं। डा. पंत बताते हैं कि उनके पिता स्व.सुशील चंद्र पंत आइडीपीएल ऋषिकेश में नौकरी करते थे। उन्हीं की प्रेरणा से पौधे लगाते हैं। उनकी पत्नी डा. प्राची डिग्री कालेज में वनस्पति विज्ञान की प्रवक्ता हैं। माता तारा पंत का पूरा सहयोग हमेशा मिलता रहता है।

पहले लगाए थे अखरोट के पौधे 

मूलरूप से अल्मोड़ा के रहने वाले डा. पंत की पढ़ाई ऋषिकेश हरिद्वार में हुई। उनकी पहली वर्ष, 1988 में तैनाती आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारी के पद पर टिहरी के ग्राम धनौल्टी में हुई थी। डा. पंत उद्यान विभाग गए तो देखा कि उस समय 50 पैैसे में प्रति अखरोट के पौधे बेचे जाते थे। उन्होंने 500 अखरोट के पौधे वेतन के पैसे से क्रय कर कुछ दिनों में सभी पौधे जंगल में लगा दिए। तीन साल बाद पौधे देखने गए तो ज्यादातर पौधे खत्म हो गए थे। यही हाल सड़कों व सार्वजनिक स्थानों जैसे स्कूलों के पौधे का रहा। यह देख उन्हें बहुत पीड़ा हुई। जिन-जिन जिलों में डा. पंत ट्रांसफर होकर गए, वहां पर गांवों में फलदार, छायादार, औषधीय पौधे लगाए गौर लोगों को निश्शुल्क बांटे। 

पौधों को बचाने का बदला तरीका

डा.पंत जब वर्ष, 1996 में ट्रांसफर होकर हल्द्वानी आए तो उन्होंने पौधे लगाने का तरीका बदला और गांवों में जाकर निश्शुल्क पौधे बांटने लगे। सैकड़ों गांवों में अब तक 3.22 लाख पौधे लगा चुके हैं। ग्रामीणों ने जब अपनी जमीन पर पौधे लगाए तो उसकी देखभाल भी की। इससे करीब 70 फीसद सुरक्षित हैं। वर्तमान में 20 हजार से अधिक पौधे प्रतिवर्ष लगाने का लक्ष्य है ।

आपदा में करते हैं अवकाश का उपयोग

डा. पंत ने तीन बार वनाग्नि नियंत्रण का प्रयास किया। सरकारी सेवकों को साल में 31 दिन का जो उपार्जित अवकाश मिलता है, उसे सार्वजनिक हित के कार्यों में लेते हैं। जुलाई-अगस्त में बरसात के पौधे व जनवरी में पर्वतीय क्षेत्र में अखरोट के पौधे लगाते हैं। वर्ष, 2000 में गुजरात में भूकंप के बाद गुजरात व एक बार वर्ष, 2013 में केदारनाथ में आई आपदा में लोगों की मदद के लिए उपार्जित अवकाश लेेकर गए थे।

डा आशुतोष पंत का कहना है कि विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं। प्रदूषण बढ़ रहा है। जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। ऐसे में पर्यावरण को बचाने की जरूरत है। कल्याणी नदी के किनारे खाली पड़ी भूमि पर एक मिनी फारेस्ट बनाने का प्रयास किया है। इसमें फलों और जंगली प्रजातियों के पौधे लगाए हैं। उम्मीद है अगले तीन साल में यहां एक छोटा जंगल जैसा बन जाएगा।


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