अल्मोड़ा विधानसभा सीट : दो बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस का रहा है कब्जा
अल्मोड़ा विधानसभा सीट चंद राजाओं की राजधानी रही सांस्कृतिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध अल्मोड़ा विधानसभा के पश्चिम में जागेश्वर विधानसभा और पूर्व में सोमेश्वर विधानसभा की सीमा है। इस विधानसभा में कुल 88923 मतदाता हैं। जिसमें 42793 महिला व 46130 पुरुष है।
अल्मोड़ा, जागरण संवाददाता : अल्मोड़ा विधानसभा सीट : चंद राजाओं की राजधानी रही सांस्कृतिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध अल्मोड़ा विधानसभा के पश्चिम में जागेश्वर विधानसभा और पूर्व में सोमेश्वर विधानसभा की सीमा है। इस विधानसभा में कुल 88923 मतदाता हैं। जिसमें 42793 महिला व 46130 पुरुष है। इसमें मुख्यरूप से दो ब्लाक हवालबाग, भैसियाछाना और कुछ हिस्सा लमगड़ा ब्लाक का आता हैं। पिछले पांच सालों में यहां 327 मतदाता ही बढ़े हैं। समुद्रतल से यह 1646 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।
दो बार बीजेपी दो बार कांग्रेस के पास रही सीट
राज्य बनने के बाद अब तक चार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। अल्मोड़ा विधानसभा दो बाद भाजपा व दो बार कांग्रेस के पाले में गई। वर्ष 2002 में भाजपा के कैलाश शर्मा ने कांग्रेस के मनोज तिवारी को 1604 मतों से पराजित किया। वर्ष 2007 में यह सीट भाजपा के हाथों से निकलकर कांग्रेस के पास चले गई। कांग्रेस के मनोज तिवारी ने भाजपा के कैलाश शर्मा को 2980 मतों से हरा दिया। वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चेहरा बदलकर रघुनाथ ङ्क्षसह चौहान को टिकट दिया। लेकिन वह कांग्रेस के प्रत्याशी मनोज तिवारी से 1181 मतों से हार गए। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी मनोज तिवारी मोदी लहर में हैट्रिक बनाने से चूक गए। वह भाजपा के प्रत्याशी रघुनाथ ङ्क्षसह चौहान से 4379 मतों से हार गए। इस बार फिर रोचक मुकाबले की उम्मीद है।
विकास के बावजूद मूलभूत समस्या
अल्मोड़ा विधानसभा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक रूप से अन्य विधानसभाओं से काफी आगे है। विकास भी काफी हद तक हुआ। जनसंख्या का दवाब, नियोजित तरीके से हुए विकास से यहां अभी भी मूलभूत समस्या बनी हुई है। जिस कारण यहां से भी लगातार लोगों का पलायन हो रहा है। जातिय आधार पर देखे तो मुख्य रूप से ब्राह्मण, ठाकुर मतदाता बहुल है। जनसंख्या के आधार पर लगभग बराबर ही हैं। इसके बाद एससी व अन्य जातियां हैं।
विकास के मुद्दों को लेकर वोट
इस विधानसभा का मतदाता अन्य जगहों से अधिक जागरूक माना जाता है। शिक्षा का स्तर भी अधिक है। लेकिन इसके बाद भी अब तक हुए चुनाव में यहां मतदान 60 फीसद के आस-पास रहा। पहले विधानसभा चुनाव 2002 में 49.54, 2007 में 63.84 प्रतिशत, 2012 में 60.61 प्रतिशत और 2017 में 59.5 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। यहां पर प्रत्याशी के व्यक्तित्व के साथ, विकास को देखते हुए भी लोग मतदान करते है। यहां राष्ट्रीय पार्टियों वर्चस्व रहता है तो केंद्रीय मुद्दे भी मतदाताओं को खासा प्रभावित करते हैं।