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एक सदी से शिक्षा की लौ जला रहा अल्मोड़ा का डायट

अल्मोड़ा के डायट से शिक्षा का उजाला पूरे समाज में फैलाया जा सके इसके लिए शिक्षकों को पारंगत बनाया जाता है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 10:00 AM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 10:00 AM (IST)
एक सदी से शिक्षा की लौ जला रहा अल्मोड़ा का डायट
एक सदी से शिक्षा की लौ जला रहा अल्मोड़ा का डायट

नैनीताल (जेएनएन) : शिक्षा यहां साधना है, शिक्षा का उजाला पूरे समाज में फैलाया जा सके इसके लिए यहां शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर उन्हें पारंगत बनाया जाता है। पिछले सौ से भी अधिक सालों से शिक्षा के प्रचार प्रसार की यह परंपरा यहां निर्बाध गति से चली आ रही है। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर शिक्षक देश भर के स्कूलों में नौनिहालों के भविष्य निर्माण का संकल्प लेते हैं और समाज को बेहतर बनाने के हरसंभव प्रयास करते हैं। सदियों से चली आ रही यह परंपरा यहां आज भी जिंदा है। जिस कारण यह संस्थान प्रदेश के गिने चुने संस्थानों में भी शुमार है।

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सूबे की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए ब्रिटिश काल से ही प्रयास होते आए हैं। करीब 116 साल पहले अंग्रेजों ने इंडो यूरोपियन शैली में यहां एक भव्य भवन का निर्माण किया। जिसमें यहां के पढ़े लिखे युवाओं को शिक्षण कार्य के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। आज भी यह संस्थान अपनी इस परंपरा को निर्बाध गति से आगे बढ़ा रहा है।

ब्रितानी हुकुमत के दौरान शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए वर्ष 1902 में यहां एक खूबसूरत इमारत में एक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई। जिसके बाद से यहां के युवाओं को शिक्षण कार्य का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। इस संस्थान के निर्माण से पूर्व यहां रैमजे, एडम्स ग‌र्ल्स तथा शासन द्वारा संचालित कुछ ही स्कूल थे। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षित अध्यापकों की कमी के कारण शिक्षा के प्रचार प्रसार में कोई खास कार्य नहीं हो पा रहा था। ऐसे में तब इस संस्थान का निर्माण मील का पत्थर साबित हुआ। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस संस्थान में वर्ष 1949 में जूनियर ट्रेनिंग स्कूल स्थापित किया गया। जिसमें मिडिल स्कूलों में पढ़ाई के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता था। वर्ष 1967 में यहां राजकीय जूनियर बेसिक ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की गई। साल 1977 में इसे क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के रूप में परिवर्तित कर यहां सेवारत शिक्षकों के लिए किताबी प्रशिक्षण के अलावा लेखन, शोध और सर्वेक्षण कार्य भी शुरू कर दिए गए। बाद में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत इस संस्थान को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान का दर्जा दिया गया। आज भी यह संस्थान शिक्षा के व्यापक प्रचार प्रसार के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से कर रहा है। अंग्रेजी माध्यम से शुरू हुई थी प्राथमिक शिक्षा

अल्मोड़ा के लक्ष्मेश्वर में अंग्रेजों द्वारा शिक्षा प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना के बाद सबसे पहले यहां अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रशिक्षण शुरू हुआ। प्रशिक्षण के कुछ सालों बाद यहां ट्रेनिंग लेने वाले शिक्षक जिले भर के स्कूलों में तैनात किए और उन्होंने बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा देने का काम शुरू किया। कुमाऊं गढ़वाल के युवाओं को मिलता था प्रशिक्षण

अल्मोड़ा में स्थापित इस प्रशिक्षण केंद्र में तब कुमाऊं और गढ़वाल के पड़े लिखे युवाओं को शिक्षण कार्य का प्रशिक्षण दिया जाता था। उस दौर में इंटर की परीक्षा पास कर चुके युवाओं को प्रशिक्षण के लिए चुन लिया जाता था। संस्थान की मान्यता इतनी कि ट्रेनिंग खत्म करते ही युवाओं को नियुक्ति भी मिल जाती थी। चार लाख वर्ग फुट जमीन में फैला है संस्थान

अंग्रेजों द्वारा अल्मोड़ा में बनाया गया प्रशिक्षण केंद्र चार लाख वर्ग फुट जमीन में फैला हुआ है। जो आज भी सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है। इसके अलावा यहां चार छात्रावास, एक राजकीय आदर्श विद्यालय और आवासीय भवन भी बनाए गए हैं। जबकि परिसर के बाहर फैली भूमि पर हरे भरे छायादार पेड़ भी लगाए गए हैं। इंडो यूरोपियन शैली का बेजोड़ नमूना है डायट भवन

अंग्रेजों द्वारा अल्मोड़ा नगर में स्थानीय पत्थरों से तराशा गया डायट का भवन इंडो यूरोपियन शैली में बना है। यूरोपियन और भारतीय शिल्प के समन्वय से बने इस भवन में यूरोपियन स्टाइल के बुर्ज, दरवाजे, खिड़की, मेहराब और अन्य शिल्प देखने लायक है। भवन की छत इंग्लैंड से मंगाई गई नालीदार चादरों से बनाई गई है। तांबे के तड़ित चालक लगाकर इसे आकाशीय बिजली प्रतिरोधक बनाया गया है। भवन की आतंरिक संरचना इसे गर्मियों में ठंडा और जाड़ों में गर्म रखकर वातानुकूलित होने का अहसास कराती है। भवन निर्माण की खूबी ही है कि इसकी दीवारों को आज भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। नगर के बुद्धिजीवी भवन शिल्प के इस बेजोड़ नमूने को संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। शिल्प कला के इस अनूठे भवन को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों के सैलानी भी यहां आते हैं। 1500 से अधिक शिक्षकों ने लिया प्रशिक्षण

अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र में स्थापना से लेकर अब तक हजारों शिक्षक यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। हालांकि प्रशिक्षण लेने वाले शिक्षकों की यहां कोई वास्तविक संख्या दर्ज नहीं है। लेकिन राज्य गठन से अब तक यहां करीब डेढ़ हजार से अधिक शिक्षक बीटीसी व डीएलएड का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।


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