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अत्यधिक बारिश से 60 फीसदी फसल बर्बाद, 140 से 150 रुपये किलो बिक रही गहत की दाल

इस बार लोगों के लिए जाड़ों में गहत की दाल खाना आसान नहीं होगा। अधिक बारिश होने से गहत की खेती को काफी नुकसान पहुंचा है। बीते अक्टूबर माह में हुई अतिवृष्टि ने तो गहत उत्पादक काश्तकारों की कमर तोड़कर रख दी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Thu, 25 Nov 2021 01:23 PM (IST)Updated: Thu, 25 Nov 2021 01:23 PM (IST)
अत्यधिक बारिश से 60 फीसदी फसल बर्बाद, 140 से 150 रुपये किलो बिक रही गहत की दाल
अत्यधिक बारिश से 60 फीसदी फसल बर्बाद, 140 से 150 रुपये किलो बिक रही गहत

चम्पावत, जागरण संवाददाता : इस बार लोगों के लिए जाड़ों में गहत की दाल खाना आसान नहीं होगा। अधिक बारिश होने से गहत की खेती को काफी नुकसान पहुंचा है। बीते अक्टूबर माह में हुई अतिवृष्टि ने तो गहत उत्पादक काश्तकारों की कमर तोड़कर रख दी। भारी बारिश से 60 प्रतिशत गहत की खेती बर्बाद हो गई। कम उत्पादन होने से बाजार में भी गहत की दाल आसानी से नहीं मिल पा रही है। गत वर्ष की तुलना में रेट भी ज्यादा हैं, जिससे गर्म तासीर की यह दाल आम आदमी की पहुंच से भी दूर हो गई है।

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जनपद के विभिन्न हिस्सों में गहत की दाल उगाई जाती है। तासीर गर्म होने के चलते जाड़ों में लोग इसे बेहद चाव से खाते हैं। बाजार में किसानों को इसके अच्छे दाम मिलते हैं। चम्पावत की बाजार से पर्वतीय मूल के बाहर बसे लोग गहत की दाल बड़ी मात्रा में खरीद कर ले जाते हैं। यहां की गहत दिल्ली व मुंबई तक भी जाती है। इस बार अधिक बारिश से गहत का उत्पादन प्रभावित हुआ है।

सितंबर और अक्टूबर माह में गहत की खेती को काफी अधिक नुकसान पहुंचा। परिणाम यह है कि अब बाजार में गहत की दाल ढूंढे नहीं मिल रही है। गत वर्षों तक गहत की दाल बाजार में आसानी से 100 से 120 रुपया किलो में मिल जाती थी, जो इस बार 140 से 150 रुपये किलो तक बिक रही है। हालांकि काश्तकार अपने घर में थोक में 110 से 120 रुपये किलो तक गहत बेच रहे हैं। लोहाघाट निवासी दिवाकर पांडेय ने बताया कि बाजार में गहत भी काफी कम आया है। गहत खरीदने के लिए उन्हें लोहाघाट से 35 किमी दूर धौन से लगे अमौन गांव जाना पड़ा। बताया कि गांव में जाकर भी उन्हें 110 रुपये के भाव से गहत खरीदनी पड़ी। प्रमुख गहत उत्पादक

काश्तकार पूरन सिंह, महेश अधिकारी, नरेश चंद्र, हरीश राम, डुंगर सिंह आदि ने बताया कि इस बार अधिक बारिश होने से गहत की 60 प्रतिशत के करीब फसल बर्बाद हो गई। अक्टूबर माह में हुई अतिवृष्टि के कारण खेतों में पानी व मलबा भरने से कई काश्तकरों की पूरी खेती ही नष्ट हो गई। मुख्य कृषि अधिकारी राजेंद्र उप्रेती ने बताया कि इस सीजन में बारिश अधिक होने से गहत उत्पादन प्रभावित हुआ है। फसल को कितना नुकसान पहुंचा इसका वास्तविक आकलन किया जा रहा है।

इन क्षेत्रों में होता है गहत का अच्छा उत्पादन

जिले के डुंगराबोरा, रौंशाल, दिगालीचौड़, रावल गांव, बाराकोट, मटियाल, सूरी, सिमलखेत, दसलेख, सीम, चौसला, मंच तामली, सूखीढांग, सल्ली आदि इलाकों में गहत का अच्छा उत्पादन होता है। इन गांवों के लोग सीजन में गहत बेचकर अच्छी आमदनी अर्जित कर लेते हैं। इसके अलावा कई गांवों में लोग अपने खाने भर के लिए गहत पैदा करते हैं।


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