संस्कृत के संवर्द्धन के लिए सामूहिक आहुति जरूरी
जागरण संवाददाता, नैनीताल : डॉ. संपूर्णानंद संस्कृत विवि के कुलपति डॉ. अभिराज राजेंद्र मिश्र ने कहा क
जागरण संवाददाता, नैनीताल : डॉ. संपूर्णानंद संस्कृत विवि के कुलपति डॉ. अभिराज राजेंद्र मिश्र ने कहा कि देश की आजादी में संस्कृत की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संस्कृत साहित्य में राष्ट्रीयता का अभिप्राय वैश्विकता से है। मानव कल्याण की भावना को लेकर संस्कृत में कई उपदेश दिए गए। वेद और संस्कृत में वर्णित राष्ट्र की प्रार्थना को किसी भी राष्ट्र का व्यक्ति पढ़ेगा तो उसी के राष्ट्र के कल्याण की बात होगी।
शुक्रवार को हरमिटेज भवन में कुमाऊं विवि संस्कृत विभाग व हरियाणा ग्रंथ अकादमी की ओर से संस्कृत साहित्य में राष्ट्रीय भावना विषयक दो दिनी संगोष्ठी आयोजित की गई। इस दौरान पूर्व कुलपति डॉ. महावीर अग्रवाल ने संस्कृत की गहराई, गरिमा व चिंतन पद्धति से सभी को परिचित बताते हुए कहा कि प्रत्येक नागरिक को संस्कृत के संवर्द्धन, परिपोषण व उन्नयन के लिए आहुति देनी होगी। जिन परमाणु हथियारों पर दुनिया आज चिंतन कर रही है उनके बारे में संस्कृत विद्वानों ने सदियों पहले बता दिया था। रामायण व महाभारत काल में इसके सैकड़ों उद्धरण मौजूद हैं। संस्कृत को राष्ट्रीय धारा की गंगोत्री करार देते हुए कहा कि संस्कृत को विद्वानों ने ही सबसे पहले देश को माता कहकर पुकारा। संचालक डॉ. विनय विद्यालंकार ने कहा कि कम सुविधाओं में भी ग्रामीण कभी राष्ट्र की अस्मिता से समझौता नहीं करता। डीएसबी परिसर निदेशक प्रो. एसपीएस मेहता ने कहा कि भाषा से ही संस्कृति की पहचान होती है। संयोजक प्रो. जया तिवारी ने संगोष्ठी की विषयवस्तु पर प्रकाश डाला। प्रो. ललित तिवारी व प्रो. बीएल साह ने भी विचार रखे। तीन सत्रों में पहले दिन 60 से अधिक शोध पत्रों का वाचन किया गया। इस दौरान डॉ. कमला पंता, डॉ. अयोध्या दास वैष्णव, डॉ. प्रतिभा शुक्ला, डॉ. कमला जोशी, डॉ. लज्जा भट्ट, डॉ. जयदत्त उप्रेती, प्रो. जेएन जोशी, डॉ. गणेश गोदियाल, डॉ. भाषा शुक्ला, डॉ. पुष्पा अवस्थी, डॉ. एचएन पनेरु, डॉ. किरन टंडन, डॉ. सुषमा जोशी, डॉ. भुवन मठपाल, डॉ. नीरज जोशी, पंकज अवस्थी, बृजमोहन जोशी, कैलाश सनवाल आदि मौजूद थे।