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मुफलिसी के आगे पिता लाचार, बेटी के टूटे हाथ के इलाज के लिए 12 हजार की दरकार

अनिल के मुताबिक बुधवार सुबह चिकित्सालय प्रबंधन ने हाथ का फ्रेक्चर जोडऩे में प्रयुक्त होने वाला जरूरी सामान लाने के लिए 12 हजार रुपये अस्पताल में जमा कराने को कहा। उन्होंने गरीबी का हवाला देते हुए असमर्थता जताई तो प्रबंधन ने बेटी को अन्यत्र ले जाने की सलाह दे डाली।

By Prashant MishraEdited By: Published: Thu, 07 Oct 2021 02:07 PM (IST)Updated: Thu, 07 Oct 2021 02:07 PM (IST)
मुफलिसी के आगे पिता लाचार, बेटी के टूटे हाथ के इलाज के लिए 12 हजार की दरकार
निर्धन पिता को अब कुछ नहीं सूझ रहा कि वह बेटी को अब कहां ले जाए।

जागरण संवाददाता, रामनगर : मुफलिसी के आगे एक पिता बेबस है। उसे उम्मीद तो थी कि बेटी का उपचार सरकारी चिकित्सालय मेें हो जाएगा लेकिन यहां आने पर उसकी उम्मीद को गहरा झटका लगा। पीपीपी मोड के तहत संचालित सरकारी चिकित्सालय में 12 हजार रुपये जमा करने पर ही बेटी का उपचार होने की बात सुन निर्धन पिता को अब कुछ नहीं सूझ रहा कि वह बेटी को अब कहां ले जाए।

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जनपद अल्मोड़ा के सल्ट ब्लाक के अंतर्गत नैनीडांडा गांव निवासी अनिल पंत की 14 वर्षीय बेटी लता पंत मंगलवार को गिर गई, जिससे उसका हाथ फ्रेक्चर हो गया। अनिल बेटी का उपचार कराने के लिए रामनगर ले आए और उसे यहां सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया। अनिल के मुताबिक बुधवार सुबह चिकित्सालय प्रबंधन ने हाथ का फ्रेक्चर जोडऩे में प्रयुक्त होने वाला जरूरी सामान लाने के लिए 12 हजार रुपये अस्पताल में जमा कराने को कहा। उन्होंने गरीबी का हवाला देते हुए इतनी रकम जमा कराने में असमर्थता जताई तो इस पर चिकित्सालय प्रबंधन ने बेटी को अस्पताल से डिस्चार्ज कराकर अन्यत्र ले जाने की सलाह दे डाली।

अनिल ने बताया कि वह मेहनत मजदूरी करता है। उसके पास प्राइवेट अस्पताल में बेटी का उपचार कराने के लिए पैसे नहीं हैं। इसी कारण वह बेटी को लेकर सरकारी अस्पताल आए हैं। लेकिन यहां फ्रेक्चर जोडऩे के लिए 12 हजार रुपये जमा करने को कहा जा रहा है। बिना पैसे के चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा उपचार नहीं किया जा रहा है। ऐसे में समझ नहीं आ रहा कि वह बेटी को इस हालत में कहां ले जाए। 

बेबस पिता के पास आयुष्मान कार्ड भी नहीं
अनिल से बेटी के निश्शुल्क उपचार के लिए यहां संयुक्त चिकित्सालय प्रबंधन ने आयुष्मान कार्ड मांगा, इस पर  अनिल ने कार्ड नहीं बनने की बात बताई। इस पर अस्पताल प्रबंधन की ओर से उससे पैसे जमा करने को कहा गया। अनिल की कहानी सरकार की आयुष्मान योजना के दावों की कलई खोलने का एक जीता-जागता सबूत भी है। चिकित्साधीक्षक मणीभूषण पंत ने बताया कि यह मामला संज्ञान में है। पहले कोशिश कर रहे हैं कि आयुष्मान कार्ड बन जाए। यदि कार्ड नहीं बनता है तो खुद के स्तर पर बच्ची का उपचार कराने के प्रबंध किए जाएंगे।

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