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Haridwar Kumbh Mela 2021: गंगा तट पर नागा संन्यासियों की दीक्षा प्रक्रिया शुरू

Haridwar Kumbh Mela 2021 सोमवार को नागा संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े की सभी चार मढ़ि‍यों (चार तेरह चौदह व सोलह) में दीक्षित होने वाले नागाओं की दीक्षा की प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो गई।

By Edited By: Published: Mon, 05 Apr 2021 08:42 PM (IST)Updated: Mon, 05 Apr 2021 08:42 PM (IST)
Haridwar Kumbh Mela 2021: गंगा तट पर नागा संन्यासियों की दीक्षा प्रक्रिया शुरू
दुखहरण हनुमान मंदिर के पास स्थित धर्मध्वजा तणियों के नीचे दीक्षा प्रक्रिया के दौरान नागा संन्यासी।

जागरण संवाददाता, हरिद्वार। Haridwar Kumbh Mela 2021 नागा संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े की सभी चार मढ़ि‍यों (चार, तेरह, चौदह व सोलह) में दीक्षित होने वाले नागाओं की दीक्षा की प्रक्रिया सोमवार से शुरू हो गई। सबसे पहले दुखहरण हनुमान मंदिर के पास स्थित धर्मध्वजा तणियों के नीचे मुंडन प्रक्रिया संपन्न हुई। इसके बाद सभी नागाओं ने अलकनंदा घाट पर गंगा स्नान किया। इस दौरान नागाओं ने खुद का श्राद्ध कर्म (विजया होम संस्कार) भी किया।

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अब जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ब्रह्ममुहूर्त में इन नागा संन्यासियों को मंत्र दीक्षा देंगे। इसी के साथ मंगलवार से सभी विधिवत रूप से नागा साधुओं की जमात में शामिल हो जाएंगे। जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक महंत हरि गिरि ने बताया कि सोमवार को करीब एक हजार नागा संन्यासियों को दीक्षित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। सभी इच्छुक नागा संन्यासियों ने मुंडन करवाने के बाद गंगा स्नान किया और फिर धर्मध्वजा की तणियों के नीचे विजया होम में भाग लिया। अब अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की ओर से सभी को प्रेयस मंत्र दिया जाएगा। इसके बाद सभी दोबारा गंगा स्नान करेंगे और फिर उनका शिखा विच्छेदन किया जाएगा।

नागा बनने को देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा

श्रीमहंत मोहन भारती ने बताया कि नागा संन्यासी बनने के लिए कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसके तहत सबसे पहले नागा संन्यासी को महापुरुष के रूप में दीक्षित कर अखाड़े में शामिल किया जाता है। तीन साल तक उसे संन्यास के कड़े नियमों का पालन करते हुए गुरु सेवा के साथ-साथ अखाड़े में विभिन्न कार्य भी करने पड़ते हैं। तीन साल की कठिन साधना में खरा उतरने के बाद कुंभ पर्व पर उसे नागा के रूप में दीक्षित किया जाता है।

यह संपूर्ण प्रक्रिया अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की देख-रेख में संपन्न होती है। सुबह सभी संन्यासी पवित्र नदी के तट पर संन्यास धारण करने का संकल्प लेते हैं। इसके बाद गायत्री मंत्र जाप के साथ सूर्य, चंद्र, अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, दसों दिशाओं व समस्त देवी-देवताओं को साक्षी मानते हुए खुद को संन्यासी घोषित कर जल में डुबकी लगाते हैं। बताया कि आचार्य महामंडलेश्वर की ओर से नव दीक्षित नागा संन्यासी को प्रेयस मंत्र प्रदान किया जाता है।

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