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पूर्वजों के स्मरण, समर्पण व संकल्प का समय श्राद्धपक्ष

जागरण संवाददाता, हरिद्वार: पूर्वजों के स्मरण, सेवा और समर्पण का समय श्राद्धपक्ष 24 सितंबर से श

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 03:01 AM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 03:01 AM (IST)
पूर्वजों के स्मरण, समर्पण व संकल्प का समय श्राद्धपक्ष
पूर्वजों के स्मरण, समर्पण व संकल्प का समय श्राद्धपक्ष

जागरण संवाददाता, हरिद्वार: पूर्वजों के स्मरण, सेवा और समर्पण का समय श्राद्धपक्ष 24 सितंबर से शुरू हो रहा है। इस दिन से अगले 15 दिन तक पितर हमारे घर में वास करेंगे। श्राद्ध यानी पितृपक्ष का पहला श्राद्ध सोमवार को पूर्णिमा के दिन से आरंभ होगा। ज्योतिषाचार्य पं. शक्तिधर शर्मा 'शास्त्री' के अनुसार पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी सोलह के स्थान पर पंद्रह दिन के ही श्राद्ध हैं। सोलह श्राद्ध 2020 में पड़ेंगे। इस दौरान हमारे पूर्वज, हमारे पितृ हमारे घर में होंगे और तर्पण के माध्यम से तृप्त होंगे। पं. शक्तिधर शर्मा के अनुसार यह समय अपने कुल, अपनी परंपरा और पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यो का स्मरण करने और उनका अनुसरण करने का संकल्प लेने का होता है।

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ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर श्राद्ध पक्ष आश्विन मास की अमावस्या तक होते हैं। पूर्णिमा का श्राद्ध उनका होता है, जिनकी मृत्यु वर्ष की किसी पूर्णिमा को हुई हो। वैसे ज्ञात-अज्ञात सभी का श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है। व्यक्ति का अपने पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ अर्पित किया गया तर्पण अर्थात जलदान, ¨पडदान ¨पड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन यही श्राद्ध कहलाता है। देव, ऋषि और पितृ ऋण के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म है। अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके मार्ग पर चलने और सुख-शांति की कामना ही वस्तुत: श्राद्ध कर्म है। इस बार 24 सितंबर से श्राद्धपक्ष शुरू होंगे, क्योंकि 24 सितंबर को चतुर्दशी तिथि सुबह 7 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। उसके बाद पूर्णिमा तिथि लग जाएगी। इसके बाद पूर्णिमा तिथि 25 सितंबर को सुबह 8 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। ऐसे में पूर्णिमा का श्राद्ध 24 सितंबर को करना ही सर्वसम्मत होगा। श्राद्ध पक्ष के यह दिन शोक के होते हैं। अपने पितरों को याद करने के होते हैं। इसलिए इन दिनों मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश, देव स्थापना के कार्य वर्जित हैं। केवल तीन पीढि़यों तक का श्राद्ध

धर्मशास्त्रों के मुताबिक सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं। देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं। पिता को वसु के समान, रुद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढि़यों तक ही सीमित रहती है।

पितृ अमावस्या

जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं रहती या किसी वजह से हम श्राद्ध नहीं कर पाते, ऐसे ज्ञात-अज्ञात सभी लोगों का श्राद्ध पितृ अमावस्या को किया जा सकता है। इस दिन श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। इसके बाद ही पितृ हमसे विदा लेते हैं।

कौन कर सकता है तर्पण

पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है, जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, लेकिन पुत्री के कुल में हैं तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं। यह भी कहा गया है कि किसी पंडित से भी श्राद्ध कराया जा सकता है।

जल और तिल ही क्यों

श्राद्ध पक्ष में जल और तिल से तर्पण किया जाता है। जो जन्म से मोक्ष तक साथ दे, वही जल है। तिलों को देवान्न कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि इससे ही पितरों को तृप्ति होती है।

गाय, कौआ और कुत्ता

पं. शक्तिधर शर्मा शास्त्री के अनुसार गाय, कौआ और कुत्ता को यम का प्रतीक माना गया है। गाय को वैतरिणी पार करने वाली कहा गया है। कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक कहा गया है। इसलिए श्राद्ध में इनको भी भोजन दिया जाता है। चूंकि हमको पता नहीं होता कि मृत्यु के बाद हमारे पितृ किस योनि में गए, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से गाय, कुत्ते और कौआ को भोजन कराया जाता है।


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