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Juna Akhada and Female Naga Sadhus: नागा संन्यासी बनने के लिए 200 महिलाओं का हुआ मुंडन संस्कार, जानिए कैसे बनती हैं महिला नागा संन्यासी

Juna Akhada and Female Naga Sadhus श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा की नागा संन्यासी (अवधूतानी) बनने के लिए 200 महिलाओं ने सांसारिक मोह-माया पारिवारिक बंधन और अपने-अपने शिखा सूत्र का त्याग कर दिया। इन सभी ने पहले दिन मुंडन संस्कार में हिस्सा लिया।

By Edited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 09:46 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 10:34 PM (IST)
Juna Akhada and Female Naga Sadhus: नागा संन्यासी बनने के लिए 200 महिलाओं का हुआ मुंडन संस्कार, जानिए कैसे बनती हैं महिला नागा संन्यासी
नागा संन्यासी बनने के लिए 200 महिलाओं ने सांसारिक मोह-माया, पारिवारिक बंधन और अपने-अपने शिखा सूत्र का त्याग किया।

जागरण संवाददाता, हरिद्वार। Juna Akhada and Female Naga Sadhus श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा की नागा संन्यासी (अवधूतानी) बनने के लिए 200 महिलाओं ने सांसारिक मोह-माया, पारिवारिक बंधन और अपने-अपने शिखा सूत्र का त्याग कर दिया। इन सभी ने बुधवार को हरिद्वार के बिड़ला घाट पर शुरू हुई इस दो-दिवसीय प्रक्रिया के पहले दिन मुंडन संस्कार में हिस्सा लिया। साथ ही अन्य संस्कार भी पूरे किए। गुरुवार को अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर इन सभी को अवधूतानी के रूप में दीक्षित करेंगे।

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अखाड़े की साध्वी श्रीमहंत साधना गिरि ने बताया कि महिला नागा संन्यासी यानी अवधूतानी बनने को सबसे पहले संन्यासी बनना पड़ता है। इसके लिए वह पंच संस्कार धर्म का पालन करती हैं। इसके तहत सभी को अपने-अपने पांच गुरु-कंठी गुरु, भगौती गुरु, भर्मा गुरु, भगवती गुरु व शाखा गुरु (सतगुरु) बनाने पड़ते हैं। इनके अधीन ये सभी संन्यास के कठोर नियमों का पालन करती हैं। इसके बाद जहां-जहां कुंभ होते हैं, वहां इससे संबंधित संस्कार में भाग लेती हैं। श्रीमहंत साधना गिरि ने बताया कि अवधूतानी बनने की प्रक्रिया के तहत सभी साध्वी पूरी रात धर्मध्वजा के नीचे पंचाक्षरी मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करती हैं। सभी को यह कड़ी चेतावनी होती है कि इस प्रक्रिया में किसी किस्म का कोई व्यवधान न होने पाए। यही वजह है कि जब प्रक्रिया चल रही होती है, तब वहां किसी का भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती।

श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरि गिरि ने बताया कि यह प्रक्रिया गुरुवार सुबह पूर्ण होगी। जूना अखाड़े की महिला अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आराधना गिरि ने बताया कि संन्यास दीक्षा में कुंभ पर्व के दौरान गंगा घाट पर मुंडन व पिंडदान होता है। रात में अखाड़े की छावनी में स्थापित धर्मध्वजा के नीचे 'ॐ नम: शिवाय' का जाप किया जाता है। यहीं पर ब्रह्ममुहूर्त में अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर 'विजया होम' के बाद संन्यास दीक्षा देते है। इसके बाद उन्हें स्त्री व धर्म की मर्यादा के लिए तन ढकने को पौने दो मीटर कपड़ा (अग्नि वस्त्र) दिया जाता है। फिर सभी संन्यासी गंगा में 108 डुबकियां लगाकर अग्नि वस्त्र धारण करती हैं और आचार्य महामंडलेश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

जूना अखाड़े की निर्माण मंत्री श्रीमहंत साधना गिरि ने बताया कि संन्यास दीक्षा कार्यक्रम के तहत पहले दिन महिला संन्यासियों का केश त्याग और पिडदान कराया गया। बताया कि संन्यास दीक्षा प्राप्त करने के बाद संन्यासी का संपूर्ण जीवन सनातन धर्म की रक्षा, उसके प्रचार-प्रसार, अपने अखाड़े, संप्रदाय और गुरु को समर्पित हो जाता है।

आत्मा का परमात्मा से मिलन

श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के श्रीमहंत विशेश्वर भारती ने बताया कि मनुष्य का एक जन्म माता के गर्भ से होता है, जबकि दूसरा गुरु से दीक्षा लेकर। इसके बाद उसके और उसके जन्म पर परिवार व माता-पिता का कोई अधिकार नहीं रह जाता। उसका जन्म धर्म, लोक कल्याण और मानव मात्र की सेवा को समर्पित हो जाता है। संन्यास दीक्षा के उपरांत आत्मा और परमात्मा के मिलन का एहसास होता है।

धारण करती हैं ब्रह्मगाती

संन्यास लेकर नागा संन्यासी (अवधूतानी) बनने वाली महिला संन्यासी अपने सांसारिक वस्त्रों का तो त्याग कर देती हैं, लेकिन लोक कल्याण और धर्म-स्त्री की मर्यादा की रक्षा के लिए पूरे समय एकल वस्त्र (ब्रह्मगाती) धारण करती हैं। नागा संन्यास की परंपरा में इसे अग्नि वस्त्र भी कहा जाता है। यह सिला हुआ नहीं होता और पहनने के लिए इस पर गांठ लगानी पड़ती है। गांठ बांधते समय अवधूतानी बनने को किए गए संस्कार के तहत जिन मंत्रों का जाप किया जाता है, उन्हें दोहराया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत जो गांठ बांधी जाती है, उसे ब्रह्मगांठ कहा जाता है।

करती हैं 'अभ्रत' या 'मूसल वस्त्र' स्नान

कुंभ पर्व के दौरान सभी अवधूतानी संबंधित अखाड़े के शाही स्नान, शाही जुलूस और पेशवाई का अभिन्न हिस्सा होती हैं। वह अखाड़े के शाही स्नान के दौरान अपने क्रम के अनुसार एकल वस्त्र यानी ब्रह्मगाती के साथ स्नान करती हैं। इसे अभ्रत स्नान या मूसल वस्त्र स्नान भी कहते हैं। शाही जुलूस और पेशवाई के समय भी यह सभी अवधूतानी धर्म की मर्यादा में रहती हैं और ब्रह्मगाती के साथ शामिल होती हैं।

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