यहां मां के आंचल की छांव से लेकर जीने की राह दिखाता है विद्यापीठ
विद्यापीठ की संस्थापक साध्वी कमलेश भारती इन बालिकाओं के पालन-पोषण व पढ़ाई-लिखाई से लेकर हाथ पीले करने तक की जिम्मेदारी उठा रही हैं।
By Gaurav KalaEdited By: Published: Fri, 03 Mar 2017 02:05 PM (IST)Updated: Sat, 04 Mar 2017 06:50 AM (IST)
हरिद्वार, [राहुल गिरि]: मातृ आंचल कन्या विद्यापीठ। यहां अनाथ बालिकाओं को न सिर्फ मां के आंचल की छांव, बल्कि जीने की राह भी मिल रही है। विद्यापीठ की संस्थापक साध्वी कमलेश भारती इन बालिकाओं के पालन-पोषण व पढ़ाई-लिखाई से लेकर हाथ पीले करने तक की जिम्मेदारी उठा रही हैं।
इतना ही नहीं, वह बालिकाओं को हस्तनिर्मित वस्तुएं बनाने का प्रशिक्षण देकर उनके आत्मनिर्भर बनने का मार्ग भी प्रशस्त कर रही हैं। मातृ आंचल यानी मां का आंचल, जिसकी छांव में कोई तकलीफ छू भी नहीं सकती। यही ध्येय है मातृ आंचल कन्या विद्यापीठ की संस्थापक साध्वी कमलेश भारती का।
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तीन विषय में परास्नातक साध्वी कमलेश भारती मूलरूप से मुजफ्फरनगर की रहने वाली हैं। जब वह दसवीं में पढ़ती थीं, तभी उनका ध्यान सामाजिक गतिविधियों और समाज सेवा के प्रति आकर्षित होने लगा। वर्ष 2000 में दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद की बैठक के दौरान उन्हें तीन अनाथ बच्चियां मिलीं, जिन्हें वह साथ ले आईं।
उन्हीं के पालन-पोषण के दौरान मातृ आंचल कन्या विद्यापीठ अस्तित्व में आई। फिर तो विद्यापीठ में अनाथ बालिकाओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। कमलेश भारती ने भी इन बालिकाओं को मां जैसा स्नेह देकर पढ़ाना-लिखाना शुरू किया। 2006 में संस्था रजिस्टर्ड हुई तो समाज के अन्य लोगों का सहयोग भी मिलने लगा।
वर्तमान में विद्यापीठ में 90 बालिकाएं साध्वी कमलेश भारती के सानिध्य में रहकर पढ़ाई-लिखाई के साथ ही स्वरोजगार की दिशा में भी लगातार आगे बढ़ रही हैं। पिछले 16 साल से मातृ आंचल में रह रही राधिका महिला महाविद्यालय से बीकॉम कर रही हैं। साथ ही अन्य बालिकाओं को पेंटिंग बनाना भी सिखा रही हैं।
इसी तरह पल्लवी, गीतांजलि, प्रज्ञा व नीलम भी यहां करीब 15 वर्षों से रह रही हैं। वह भी राधिका की तरह की बैग, गुलदस्ते आदि बनाने के साथ वॉल पेंटिंग कर स्वरोजगार की ओर लगातार कदम बढ़ा रही हैं। साध्वी ने जगजीतपुर में भी कन्या विद्यापीठ की स्थापना की है और उम्र के सात दशक पार करने के बावजूद समाजसेवा के उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है।
पेंटिंग, बैग की ब्रिकी से खिल जाते हैं चेहरे
मातृ आंचल में रहने वाली बालिकाएं पढ़ाई व अन्य कार्यों से समय निकालकर पेंङ्क्षटग, बैग आदि भी बनाती हैं। साथ ही वहां होने वाली शादी के दौरान पेंटिंग, बैग आदि की प्रदर्शनी भी लगाती हैं। विवाह समारोह में आने वाले लोग जब इन बालिकाओं के हाथों बनी पेंटिंग, बैग आदि खरीदते हैं तो उनके चेहरे भी खिल उठते हैं।
मातृ आंचल कन्या विद्यापीठ के संस्थापक साध्वी कमलेश भारती के अनुसार, बालिकाओं को स्वरोजगार से जोडऩे के लिए पेंटिंग, बैग व अन्य हस्तनिर्मित सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जो बालिकाएं इस काम में महारथ हासिल कर चुकी हैं, वह अपने से छोटी बालिकाओं को भी हुनरमंद बनाकर उन्हें स्वरोजगार से जोडऩे का काम कर रही हैं।
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