साल-दर-साल मजबूत हो रहा आस्था का सावन, बढ़ रही कांवड़ यात्रियों की संख्या
जागरण संवाददाता हरिद्वार। धार्मिक आस्था पाश्चात्य संस्कृति पर भारी पड़ रही है। कांवड़ मेले
जागरण संवाददाता हरिद्वार। धार्मिक आस्था पाश्चात्य संस्कृति पर भारी पड़ रही है। कांवड़ मेले में साल-दर-साल बढ़ रही यात्रियों की संख्या हकीकत बयां कर रही है। गौर करने वाली बात यह है कि श्रावण शिवरात्रिय को शिव जलाभिषेक की कामना से हरिद्वार आने वाले कांवड़ यात्रियों में सबसे अधिक संख्या 35 से कम वर्ष के युवाओं की है। अक्सर युवाओं पर भारतीय संस्कृति से दूर होकर पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण करने के आरोप लगते हैं। विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा मानी जाने वाली कांवड़ मेला यात्रा बताती है कि विदेशी संस्कृति व पाश्चात्य सभ्यता के बढ़ते प्रभाव के बावजूद आस्था का रंग दिन प्रतिदिन और गाढ़ा हो रहा है।
हरिद्वार को राष्ट्र की धार्मिक राजधानी भी माना जाता है, यहां हर साल श्रावण मास की महाशिवरात्रि पर शिव जलाभिषेक को गंगाजल लेने आने वाले कांवड़ यात्रियों की बढ़ रही संख्या तस्दीक करती है कि तमाम विरोधाभास के बावजूद युवाओं में धर्म के प्रति आस्था बढ़ रही है। कांवड़ यात्रा उत्तर भारत की प्रमुख धार्मिक यात्राओं में से एक है। इसे विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा भी कहा जाता है। समय के साथ कांवड़ यात्रा का स्वरूप भी बदला है। कांवड़ और यात्री दोनों मॉर्डन' हो गए हैं। इससे मेले का पारंपरिक स्वरूप धीरे-धीरे खोता जा रहा है, कभी पीतांबर और रक्तवर्णी वस्त्र धारण कर यात्रा में आने वाले कावंड़ यात्री अब जींस पैंट पहनने लगे हैं। तेज आवाज में डीजे उनकी पहचान बन चुका है, हो-हल्ला और हुडदंगबाजी कांवड़ मेले का हिस्सा सा बन गया है। इसके इतर कांवड़ मेले के प्रति श्रद्धालुओं का जुड़ाव बढ़ा है। अपनी व्यस्ततम जीवन शैली के बीच भी लोग कांवड़ मेले के लिए वक्त निकाल रहे हैं और गंगाजल लेने हरिद्वार सहित अन्य तीर्थ स्थलों पर भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। धर्मनगरी हरिद्वार की बात करें तो कांवड़ मेले में पिछले दस साल के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। दस वर्षो में श्रावण मास की महाशिवरात्रि को गंगाजल लेने हरिद्वार आने वाले कांवड़ यात्रियों की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी हुई है। हरिद्वार का धर्मजगत इसे वैभवशाली भारतीय धर्म-संस्कृति के संरक्षण के लिए सुखद पहलू करार देता है। दस वर्षो में कांवड़ यात्रियों की संख्या
साल संख्या
2008 70 लाख 60 हजार
2009 77 लाख 88 हजार
2010 एक करोड़ 15 लाख
2011 एक करोड़ 64 लाख
2012 एक करोड़ 92 लाख
2013 एक करोड़ 28 लाख
2014 दो करोड़ 65 लाख
2015 तीन करोड़ 25 लाख
2016 तीन करोड़ 27 लाख
2017 चार करोड़ 7 लाख
2018 तीन करोड़ 50 लाख (अब तक)
स्रोत- पुलिस के आंकड़ों के अनुसार।