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Juna Akhada Naga Sadhu News: साधू नागा संन्यासी बनीं 200 महिलाएं, ब्रह्म मुहूर्त में प्रेयस मंत्र किया धारण

Juna Akhada Naga Sadhu News श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से मिले प्रयास मंत्र के साथ ही 200 महिलाएं नागा संन्यासी यानी अवधूत आणि के रूप में दीक्षित हो गई और जूना अखाड़े की नागा संन्यासी का हिस्सा बन गई।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 08 Apr 2021 12:00 PM (IST)Updated: Thu, 08 Apr 2021 10:35 PM (IST)
Juna Akhada Naga Sadhu News: साधू नागा संन्यासी बनीं 200 महिलाएं, ब्रह्म मुहूर्त में प्रेयस मंत्र किया धारण
जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से मिले प्रयास मंत्र के साथ 200 महिलाएं नागा संन्यासी बनी।

जागरण संवाददाता, हरिद्वार। Juna Akhada Naga Sadhu News श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से मिले प्रेयस मंत्र और गेरुआ वस्त्र (ब्रह्मगाती) को धारण करने के साथ ही गुरुवार को अखाड़े के माई बाड़े की 200 महिला साधु नागा संन्यासी (अवधूतानी) के रूप में दीक्षित हो गईं। भोर की बेला में गंगा स्नान करने के बाद सांसारिक वस्त्रों का त्याग कर उन्होंने अवधूतानी के रूप में अपना नया परिचय पाया। अब सभी अवधूतानी 12 अप्रैल और उसके बाद होने वाले शाही स्नान अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर समेत अन्य वरिष्ठ संतों के साथ ही करेंगी।

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अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरि गिरि ने बताया कि सभी संन्यासिनों को अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने दो दिवसीय दीक्षा कार्यक्रम के अंतिम दिन गुरुवार को ब्रह्ममुहूर्त में प्रेयस मंत्र प्रदान किया। पहले दिन बुधवार को गंगा घाट पर शिखा सूत्र त्याग करने के साथ ही मुंडन संस्कार समेत अन्य संस्कार पूरे किए थे। इसके बाद सभी संन्यासिनों ने विजया होम के साथ अखाड़े की छावनी में स्थापित धर्म ध्वजा के नीचे पूरी रात पंचाक्षरी मंत्र 'ú नम: शिवाय' का जाप किया।

अब मिलेगा 'माई' और 'माता' संबोधन 

नागा संन्यासी के तौर पर दीक्षित होने वाली अवधूतानी को अपना पुराना नाम, स्थान और परिचय का त्याग करना पड़ता है। श्रीमहंत हरि गिरि बताते हैं कि सभी अवधूतानी को संन्यास दीक्षा के बाद उनके गुरु व अखाड़े की ओर से नया नाम दिया जाता है। नया नाम मिलने के बाद उनका संन्यास पूर्व की जिंदगी के स्वजन, माता-पिता व सगे-संबंधियों से संपर्क पूरी तरह खत्म हो जाता है। अब उनके गुरु ही उनके सब कुछ होते हैं। दीक्षा के बाद उन्हें माई या माता कहकर संबोधित किया जाता है।  

दीक्षित होने वालों में भाजपा नेत्री सरोज शर्मा भी शामिल

श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि से गुरुवार को अवधूतानी के रूप में दीक्षा लेने वाली 200 महिलाओं में माई कैलाश गिरि भी शामिल हैं। इस भाजपा नेत्री का सांसारिक नाम सरोज शर्मा था, जो नागा संन्यासी के रूप में दीक्षा के बाद माई कैलाश गिरि हो गया। 'दैनिक जागरण' को माई कैलाश गिरि ने बताया कि वह भाजपा के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ की जिलाध्यक्ष के साथ ही उत्तर प्रदेश में अन्य आनुषांगिक सनगठनों में प्रदेश स्तर के कई पदों पर रही हैं। इसके अलावा सामाजिक क्षेत्र में भी उन्होंने काफी काम किया है। संन्यास दीक्षा की व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए उन्होंने अपने जिले, घर और स्थान आदि का नाम बताने में असमर्थता जताई। कहा कि उनके गुरु दूधेश्वर पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि हैं और हर नंदेश्वर महादेव मंदिर ङ्क्षहडन गाजियाबाद में उनका निवास है। उन्होंने हिंदी साहित्य, राजनीति विज्ञान और इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री ली। हिंदी के साथ-साथ उन्हें अंग्रेजी का भी ज्ञान है और थोड़ा-बहुत उर्दू की भी समझ है। माई कैलाश गिरि ने बताया कि उन्होंने श्रीमहंत नारायण गिरि से प्रभावित होकर वर्ष 2010 में कैलास-मानसरोवर की यात्रा की थी। उस दौरान उन्हें धर्म की गहन अनुभूति हुई। इस यात्रा ने उनके मन, बुद्धि व कर्म पर इस कदर प्रभाव डाला कि सांसारिक वस्तुओं और व्यवस्था से उनका मोह भंग हो गया। गुरुदेव के सानिध्य में धर्म का आचरण एवं पालन कर कठिन तपस्या की और हरिद्वार कुंभ में पूर्ण रूप से संन्यास ग्रहण कर लिया। कहा कि राजनीति तो अब बीती बात हो गई है, पर समाज सुधार और सेवा का कार्य वह अब भी कर रही हैं और आगे भी करती रहेंगी।

सहज योग की प्रकांड विद्वान माता शैलजा गिरि

अवधूतानी के रूप में दीक्षा लेने वाली गुजरात की योगिनी श्रीमहंत माता शैलजा गिरि परास्नातक होने के साथ सहज योग की प्रकांड विद्वान हैं। वह धारा प्रवाह ङ्क्षहदी-अंग्रेजी में प्रवचन करती हैं और सहज योग की दीक्षा भी देती हैं। बताया कि धर्म के प्रति उनकी आस्था बचपन से ही थी। उन्हें सांसारिक वस्तुएं, बातें और कार्य-व्यवहार आकर्षित नहीं करता था। बल्कि धर्म, धार्मिक वस्तुओं व धार्मिक वातावरण के प्रति उनका आकर्षण रहा। धर्म के गूढ़ रहस्य जानने के लिए वह घर-परिवार के बड़े-बूढ़ों से सवाल किया करती थीं।  बाद में उन्हें सहज योग के बारे में पता चला और धीरे-धीरे कर उन्होंने इसकी साधना करनी शुरू कर दी। शुरूआत में कठिनाई हुई, लेकिन बाद में आनंद आने लगा। धर्म-अध्यात्म की समझ होने लगी और फिर उन्होंने संन्यास धारण कर लिया। माता शैलजा गिरि कि उन्होंने गुजरात के गिर क्षेत्र में अपना आश्रम भी स्थापित किया है। 

नागा संन्यास दीक्षा का दूसरा चरण 25 अप्रैल से

अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरि गिरि ने बताया कि अब अखाड़े में नागा संन्यास दीक्षा का दूसरा चरण 25 अप्रैल से शुरू होगा। इसमें एक हजार से अधिक महिला-पुरुष नागा संन्यासी दीक्षा लेंगे। इसके लिए पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

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