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बीएचईएल बना रहा विश्व की ऐसी पहली टरबाइन, जिसमें कोयले की होगी कम खपत

बीएचईएल विश्व की पहली एडवांस अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल टरबाइन बनाने जा रहा है। यह टरबाइन ऊर्जा उत्पादन में कोयले की खपत कम करने के साथ ही कॉर्बन का उत्सर्जन भी कम करेगी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 11:18 AM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 11:18 AM (IST)
बीएचईएल बना रहा विश्व की ऐसी पहली टरबाइन, जिसमें कोयले की होगी कम खपत
बीएचईएल बना रहा विश्व की ऐसी पहली टरबाइन, जिसमें कोयले की होगी कम खपत

हरिद्वार, अनूप कुमार। महारत्‍न कंपनियों में शुमार भारत हैवी इलेक्टिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) विश्व की पहली एडवांस अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल (एयूएससी) टरबाइन बनाने जा रहा है। नवीनतम टेक्नोलॉजी पर आधारित यह टरबाइन ईको-फ्रेंडली होगी, जो ऊर्जा उत्पादन में कोयले की खपत कम करने के साथ ही कॉर्बन का उत्सर्जन भी कम करेगी। इससे ऊर्जा उत्पादन भी पांच से छह फीसद तक अधिक होगा। फिलवक्त बीएचईएल, नेशनल थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) और इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (आइजीकार) के साथ मिलकर इसकी डिजाइन और टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है। केंद्र सरकार इस टरबाइन से चलने वाले अपनी तरह के विश्व के पहले थर्मल पॉवर प्लांट (टीपीएस) को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जल्द सीपत (छत्तीसगढ़) में स्थापित करने जा रही है। इस पूरे प्रोजेक्ट पर 10 हजार करोड़ की लागत आने अनुमान है।

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बीएचईएल हरिद्वार के कार्यपालक निदेशक संजय गुलाटी ने बताया कि यह बीएचईएल के साथ ही देश के लिए विशेष उपलब्धि है। यह पहला मौका है जब कोई देश एयूएससी पर आधारित टरबाइन का निर्माण करेगा। इससे पहले सब क्रिटिकल व सुपर क्रिटिकल तकनीक पर आधारित टरबाइन और थर्मल पॉवर प्लांट काम करते थे। इस तकनीक से निर्मित टरबाइन को चलाने में कोयले की खपत कम होगी और उत्पादकता में भी पांच से छह की बढ़ोत्तरी होगी। कॉर्बन उत्सर्जन कम होने से यह ईको-फ्रेंडली भी है। कार्यपालक निदेशक गुलाटी ने बताया कि सीपत में इस तकनीक पर आधारित थर्मल पॉवर प्लांट के लिए बीएचईएल हरिद्वार एयूएससी तकनीक वाली 800 मेगावॉट क्षमता की टरबाइन और जेनरेटर का निर्माण कर रहा है। भेल की अन्य इकाइयां भी अपनी-अपनी विशेषज्ञता के आधार पर इसमें सहयोग कर रही हैं।

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काफी कम होगी कोयले की खपत

इस टरबाइन को चलाने में आवश्यक पानी गर्म करने के लिए कोयले की खपत सब-क्रिटिकल व सुपर क्रिटिकल तकनीक पर आधारित टरबाइन से कम होगी। अभी तक देश में स्थित थर्मल पॉवर प्लांट सुपर क्रिटिकल व सब-क्रिटिकल तकनीक पर आधारित टरबाइन का इस्तेमाल करते हैं। सुपर व सब-क्रिटिकल टरबाइन को चलाने के लिए पानी गर्म करने में कोयला बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। लेकिन, 800 मेगावॉट क्षमता की इस टरबाइन को चलाने के लिए आवश्यक ‘स्टीम’ तैयार करने में कोयले की बहुत कम खपत होगी।

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