Ayodhya Ram Mandir: 17 साल पहले रामलला की 'सुरक्षा' को दिया था टेंट, अब देंगे आधार; जानिए
Ayodhya Ram Mandir सीबीआरआइ को दूसरी बार रामलला की सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी मिली है। सत्रह वर्ष पहले संस्थान को रामलला की मूर्ति को आग और पानी से बचाने का जिम्मा दिया गया था।
रुड़की, जेएनएन। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की (सीबीआरआइ) को दूसरी बार रामलला की 'सुरक्षा' की बड़ी जिम्मेदारी मिली है। सत्रह वर्ष पहले संस्थान को रामलला की मूर्ति को आग और पानी से बचाने का जिम्मा दिया गया था। अब उनके भव्य मंदिर की नींव को मजबूती प्रदान करने का दायित्व सौंपा गया है। मंदिर की नींव का डिजाइन संस्थान के वैज्ञानिक तैयार कर रहे हैं।
अयोध्या में अब तक रामलला की मूर्ति जिस विशेष टेंट के नीचे सालों से सुरक्षित है, उसका निर्माण रुड़की स्थित सीबीआरआइ ने ही किया था। इससे पहले मंदिर स्थल पर सामान्य टेंट लगा था, जिससे हवन के दौरान आग लगने का खतरा बना रहता था। यही नहीं, बरसात में मंदिर स्थल पर पानी भी भर जाता था। इस समस्या से निजात पाने के लिए वर्ष 2003 में सीबीआरआइ रुड़की को एक ऐसा टेंट तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया, जिस पर आग और पानी कोई असर न हो। सीबीआरआइ की अग्नि अनुसंधान प्रयोगशाला में यह विशेष टेंट तैयार किया गया। मंदिर स्थल पर 500 वर्ग मीटर में इसे लगाया गया। इस टीम में बतौर मुख्य वैज्ञानिक शामिल रहे डॉ. हरपाल ने इसकी पुष्टि की।
अब जबकि श्रीराम के भव्य मंदिर का शुरू किया जा रहा है, केंद्र सरकार इस भवन की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान दे रही है। ऐसे में मंदिर का निर्माण करा रही एल एंड टी कंपनी ने भवन की मजबूती के लिए लिए सीबीआरआइ से सहयोग मांगा है। इसकी नींव का डिजाइन तैयार करने की जिम्मेदारी सीबीआरआइ को सौंपी गई है। मंदिर हर तरह की आपदा में सुरक्षित रहे, बड़े भूकंप का भी इस पर कोई असर न होने पाए, सीबीआरआइ वैज्ञानिकों से इस लिहाज से नींव का डिजाइन तैयार करने को कहा गया है।
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सीबीआरआइ के निदेशक डॉ. एन गोपाल कृष्णन के नेतृत्व में सात वैज्ञानिकों की टीम यह दायित्व संभाल रही है। संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ शांतनु सरकार ने बताया कि मंदिर स्थल की मिट्टी के नमूने लेकर उसकी जांच की जा रही है। क्षेत्र में कब-कब भूकंप आया है, कितनी तीव्रता का आया, इसका भी विश्लेषण किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मिट्टी की जांच में कम से कम छह महीने लगने की संभावना है। निदेशक डा. कृष्णन ने बताया कि निर्माण एजेंसी के अनुरोध पर वैज्ञानिकों ने काम शुरू कर दिया है। अभी कार्य प्रारंभिक स्थिति में है।
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