उत्तराखंड में क्या सस्ती शराब से हासिल हो पाएंगे लक्ष्य, पढ़िए पूरी खबर
आबकारी नीति में राज्य सरकार ने कई बदलाव किए हैं। सबसे बड़ा बदलाव शराब के दाम में 20 फीसद तक की कमी लाने का किया गया है। शराब के दाम यूपी के मुकाबले कम रहेंगे।
देहरादून, जेएनएन। इस बार आबकारी नीति में राज्य सरकार ने कई बदलाव किए हैं। सबसे बड़ा बदलाव शराब के दाम में 20 फीसद तक की कमी लाने का किया गया है। साथ ही शराब के दाम उत्तर प्रदेश के मुकाबले कम रहेंगे। इस बदलाव के बहाने सरकार कई लक्ष्य हासिल करने के दावे कर रही है। माना जा रहा है कि राजस्व घाटे की तरफ बढ़ते दिख रहे आबकारी विभाग की हालत सुधरेगी और शराब तस्करी पर भी अंकुश लग पाएगा। क्योंकि जिस भी प्रदेश में शराब के दाम अधिक होते हैं, वहां तस्करी की शराब पहुंचने लगती है।
सबसे पहले बात करते हैं शराब से मिलने वाले राजस्व की। वित्तीय वर्ष 2017-18 में शराब के दाम उतने अधिक नहीं थे, मगर निर्धारित लक्ष्य से 2.06 फीसद राजस्व कम प्राप्त हुआ था। इसके बाद वित्तीय वर्ष 2018-19 में शराब के दाम कुछ ऊपर चढ़े, मगर अप्रत्याशित रूप से शराब के राजस्व में 2.09 फीसद की बढ़ोत्तरी हो गई। हालांकि, इस वित्तीय वर्ष में जब शराब के दाम उत्तर प्रदेश से भी अधिक हो गए तो राजस्व की दर लगातार नीचे जाने लगी। 22 फरवरी तक भी शराब से 2578 करोड़ रुपये का राजस्व मिल पाया है, जबकि इस माह का लक्ष्य 2972.03 करोड़ रुपये है।
मार्च माह तक यानी वर्ष की समाप्ति तक 3047.49 करोड़ रुपये हासिल किए जाने हैं। इस रफ्तार से राजस्व लक्ष्य के आसपास जरूर पहुंच जाएगा। लिहाजा, साफ है कि शराब के दाम घटने-बढऩे से राजस्व पर खास असर नहीं पड़ता है। इतना जरूर है कि शराब के शौकीन लोगों का बजट जरूर गड़बड़ा जाता है। साथ ही शराब कारोबारियों का नफा-नुकसान भी शराब के दाम से तय होता है, क्योंकि कहीं न कहीं जब खपत कम होती है, तब भी उन्हें सरकार का राजस्व चुकाना पड़ता है।
तस्करी रोकने का लक्ष्य भी अस्पष्ट
सरकार और शासन का यह तर्क भी है कि यदि शराब के दाम उत्तर प्रदेश के मुकाबले कम हो जाते हैं तो इससे शराब तस्करी पर अंकुश लगेगा। यहां भी यह स्पष्ट करना जरूरी है कि शराब तस्करी के जितने भी मामले पकड़े गए हैं, उनका संबंध उत्तर प्रदेश से नहीं, बल्कि हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली या अन्य राज्यों से रहता है। ऐसे में यह साफ तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तर प्रदेश के मुकाबले शराब के दाम कम हो जाने से तस्करी पर अंकुश लग ही जाएगा। वैसे भी शराब तस्करी का मामला अधिकारियों के नेटवर्क व प्रवर्तन संबंधी कार्यों को सख्ती से अमल में लाने से जुड़ा है।
कच्ची शराब का सवाल बरकरार
कच्ची शराब का आबकारी नीति से सीधा संबंध नहीं है। यह बात और है कि सस्ती शराब के पीछे अधिकारियों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि गरीब तबके के लोग देशी शराब पीते हैं और यदि इसके दाम घटेंगे तो जो लोग सस्ते के चक्कर में कच्ची या जहरीली शराब तक गटक लेते हैं, वह देशी की तरफ लौट सकते हैं। फिर भी इस बात की पूरी संभावना नहीं है। क्योंकि अधिक मुनाफे के चक्कर में प्रदेश के तमाम स्थानों में कच्ची शराब बनाने वालों का बोलबाला है। तभी तो रुड़की शराबकांड के कुछ समय बाद ही देहरादून के पथरिया पीर जैसी घटना भी सामने आ गई। ऐसे में कच्ची शराब की सीधा संबंध भी नेटवर्क व प्रवर्तन कार्य से संबंधित है।
खुल सकते हैं बंद पड़े ठेके
इस वित्तीय वर्ष में शासन ने 131 शराब की दुकानों को बंद करने का निर्णय लिया था। वजह थी कि शराब के दाम अधिक बढऩे और दुकानों की दर ऊंची होने के चलते कारोबारियों ने दूरी बना ली है। क्योंकि कहीं न कहीं शराब की खपत उसके दाम पर जरूरी निर्भर करती है। दाम बढऩे पर जब भी खपत घटती है तो राजस्व चुकाने के डर से शराब कारोबारी पीछे हटने लगते हैं। लिहाजा, शराब की दुकानों के उठान का झंझट जरूर दूर होगा और अधिकारियों को भी अधिक हाथ-पैर नहीं मारने पड़ेंगे। दुकानों के उठान की चिंता खत्म होने से जरूर अधिकारी प्रवर्तन कार्यों की तरफ लगा सकते हैं।
इस वर्ष के राजस्व पर एक नजर
(कुल राजस्व लक्ष्य 3047.49 करोड़ है)
- माह--------निर्धारित--------कुल प्राप्ति
- अप्रैल-------491.23--------328.97
- मई---------334.10--------560.03
- जून--------248.08--------786.00
- जुलाई------248.08--------1056.74
- अगस्त------248.08--------1284.96
- सितंबर------248.08--------1523.02
- अक्टूबर-----248.08--------1765.28
- नवंबर-------248.08--------2002.23
- दिसंबर-------248.08--------2228.77
- जनवरी-------248.08--------2446.39
- फरवरी-------162.06--------2558.88
- नोट: फरवरी माह की राजस्व प्राप्ति 18 तारीख तक की है।
खत्म होगा बार लाइसेंस में उगाही का खेल
राज्य कैबिनेट ने बार लाइसेंस लेने वाले लोगों को बड़ी सहूलियत दे दी है। साथ ही इससे इंस्पेक्टरराज भी खत्म हो जाएगा। क्योंकि जिस बार के लाइसेंस के लिए लोगों को जिला, मुख्यालय, शासन व सरकार तक के एक दर्जन कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते थे, उनका काम जिलाधिकारी के स्तर पर हो जाएगा।
बार लाइसेंस के आवेदन के लिए वैसे तो महज 50 हजार रुपये का आवेदन शुल्क अदा करना पड़ता है, मगर उसके लिए लाखों रुपये तक खर्च करने पड़ जाते हैं। फिर महीनों का समय अलग से लगता है। क्योंकि बार की जो फाइल जिले से आगे बढ़ती है, वह जिलाधिकारी कार्यालय, फिर जिला और फिर मुख्यालय व शासन के तमाम कार्यालयों से गुजरने के बाद विभागीय मंत्री तक पहुंचती है।
इसके बाद इसी चैनल से फाइल नीचे आती है। गलती से या जानबूझकर उसमें कोई आपत्ति लगा दी जाए तो दोबारा वही चैनल शुरू हो जाता है। ऐसे में बार लाइसेंस का आवेदन महज भ्रष्टाचार का एक जरियाभर बनकर रह गया है और कारोबारियों को तमाम तरह के शोषण का भी शिकार होना पड़ता है। नई व्यवस्था के तहत अब जिला आबकारी कार्यालय व जिलाधिकारी कार्यालय तक की ही दौड़ लगानी पड़ेगी।
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