पर्यावरण के लिए धरातल पर करना होगा काम: सुंदरलाल बहुगुणा
प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का कहना है कि पर्यावरण के लिए धरातल पर काम करना होगा।
देहरादून, [जेएनएन]: प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा उम्र के 92वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। उम्र के इस पड़ाव में पहुंच चुके बहुगुणा शारीरिक रूप से भी काफी कमजोर हो चुके हैं, उनकी नजर भी धुंधली पड़ चुकी है और अब वह काफी कम और धीमी आवाज में बात करते हैं। हालांकि जैसे ही पर्यावरण का जिक्र आता है, उनकी आंखों में पुरानी चमक लौट आती है। चिपको जैसे विश्वविख्यात आंदोलन के प्रणेता रहे सुंदरलाल बहुगुणा आज भी अपनी यह बात दोहराने से नहीं भूलते 'क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार'।
पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले पद्मविभूषण बहुगुणा का दशकों पहले दिया गया सूत्रवाक्य 'धार एंच पाणी, ढाल पर डाला, बिजली बणावा खाला-खाला' आज भी न सिर्फ पूरी तरह प्रासंगिक है, बल्कि आज इसे लागू करने की जरूरत और अधिक नजर आती है। उक्त सूत्रवाक्य का मतलब यह हुआ कि ऊंचाई वाले इलाकों में पानी एकत्रित करो और ढालदार क्षेत्रों में पेड़ लगाओ। इससे जल स्रोत रीचार्ज रहेंगे और जगह-जगह जो जलधाराएं हैं, उन पर छोटी-छोटी बिजली परियोजनाएं बननी चाहिए। वह कहते हैं पर्यावरण बचाने के लिए ड्राइंगरूम डिस्कशन से बाहर निकल धरातल पर काम करना होगा।
09 जनवरी, 1927 को टिहरी गढ़वाल के सिल्यारा गांव में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा के पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित जीवन की यह कहानी सभी को याद होगी, मगर बहुत कम लोग जानते होंगे कि कभी वह देश की आजादी के लिए भी लड़े थे और कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे।
हालांकि आजादी के बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन त्यागकर समाज सेवा को अपना अगला लक्ष्य बना लिया। भूदान आंदोलन से लेकर दलित उत्थान, शराब विरोधी आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही। इसके अलावा टिहरी बांध के विरोध उनके लंबे संघर्ष के फलस्वरूप केंद्र सरकार ने पुनर्वास नीति में तमाम सुधार किए।
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