उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेलों का इंतजार अब होता जा रहा है लंबा
राष्ट्रीय खेलों का इंतजार अब लंबा होता जा रहा है। स्थिति यह है कि बीते वर्ष तक जोर-शोर से तैयारी का दावा करने वाला खेल महकमा अब अवस्थापना सुविधाओं के विकास के मामले में चुप्पी साधे पड़ा है।
देहरादून, विकास गुसाईं। राष्ट्रीय खेलों का इंतजार अब लंबा होता जा रहा है। स्थिति यह है कि बीते वर्ष तक जोर-शोर से तैयारी का दावा करने वाला खेल महकमा अब अवस्थापना सुविधाओं के विकास के मामले में चुप्पी साधे पड़ा है। दरअसल, वर्ष 2014 में उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेल प्रस्तावित थे। विभिन्न कारणों से ये पीछे खिसकते रहे। इनके वर्ष 2021 में होने की उम्मीद जताई गई। ऐेसे में खेल विभाग ने खेलों के लिए अवस्थापना विकास का खाका तैयार किया। इस साल कोरोना के कारण तकरीबन छह माह खेल गतिविधियां ठप रहीं। ऐसे में विभाग ने भी अवस्थापनाएं सुविधाएं विकसित करने से मुंह फेर लिया। अब उत्तराखंड की नजर उन राज्यों पर लगी है, जहां ये खेल होने हैं। विभाग का मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में खेल गतिविधियां पूरी तरह कब तक शुरू होंगी, तय नहीं। यही कारण है कि विभाग राष्ट्रीय खेलों के आयोजन को लेकर सुस्त बैठा हुआ है।
अब नहीं बढ़ेगी चेकपोस्ट की संख्या
प्रदेश की सीमा पर बनी चेकपोस्ट परिवहन विभाग के राजस्व का एक अहम जरिया हैं। यहां बाहर से आने वाले वाहनों के परमिट आदि चेक किए जाते हैं। इसके साथ ही यहां टैक्स भी वसूला जाता है। इसे देखते हुए विभाग ने पहले इनकी संख्या बढ़ाने की मंशा जताई। दरअसल, विभाग ने विभिन्न सीमाओं पर 19 चेकपोस्ट स्वीकृत की हैं। इनमें से अभी केवल 13 ही सक्रिय हैं। विभाग की मंशा पहले इन सभी चेकपोस्ट पर कर्मचारियों की तैनाती कर सभी को सक्रिय करने की थी। इसके लिए नए पदों के सृजन की अनुमति न मिलने पर इन्हें ऑनलाइन करने की तैयारी हुई। काम शुरू हुआ, लेकिन इसमें पहले ही फर्जीवाड़ा सामने आ गया। ऐसे में विभाग इन चेकपोस्ट की संख्या और सीमित करने की योजना बना रहा है। इसके स्थान पर विभाग मिनिस्ट्रीयल प्रवर्तन और कर संवर्ग के कार्मिकों को मिलाकर सचल दस्ते बनाने की तैयारी कर रहा है।
नहीं बन पाया अदद लैंड बैंक
उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने के लिए पर्यटन से जुड़ी अवस्थापना सुविधाओं को विकसित करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए योजनाएं भी बनीं। फैसला हुआ कि पर्यटन के क्षेत्र में निवेश करने वालों को सरकार जमीन उपलब्ध कराएगी। इसके लिए बाकायदा मैदानी व पर्वतीय जिलों में लैंड बैंक बनाने की योजना बनाई गई। इसके साथ ही कैबिनेट से उत्तराखंड पर्यटन भूमि एकत्रीकरण एवं क्रियान्वयन नियमावली को मंजूरी दी। लैंड बैंक में सरकारी व निजी भूमि, दोनों ही रखने का प्रविधान किया गया। निजी भूमि की खरीद के लिए एक कोष भी गठित हुआ। इस कोष में शुरुआती दौर में टोकन मनी के रूप में कुछ पैसा रखा गया। उम्मीद जताई गई कि इससे रोप वे, नए होटल, रिजॉर्ट, टूरिज्म स्टेट व टूरिज्म सिटी विकसित करने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे। इसे गठित किए तीन वर्ष हो चुके हैं, लेकिन इसका उपयोग अभी तक भी नहीं हो पाया है।
फाइलों में बंद, पूर्वजों की खोज
देवभूमि उत्तराखंड, यहां सदियों से देश-विदेश से श्रद्धालु आते रहे हैं। यहां के पवित्र धामों बदरीनाथ, केदारनाथ व कुंभनगरी हरिद्वार में आने वाले अधिकांश तीर्थयात्रियों के नाम-पते आज भी पंडों द्वारा बनाई जाने वाली बही में दर्ज हैं। इन्हीं बही को आधार बनाते हुए प्रदेश सरकार ने भारत आए अन्य देशों में बसे भारतीयों के पूर्वजों की खोज की योजना बनाई। मकसद यह कि विदेशों में बसे भारतीय व अन्य राज्यों के लोग यहां के स्थानीय पंडों की मदद से अपने पूर्वजों के नाम इन बही में तलाश सकें। योजना यह भी थी कि जो यहां नहीं आ सकते, वे अपने पूर्वजों के नाम अपने दूतावासों के जरिये भेजेंगे। यहां से जानकारी संबंधित व्यक्ति तक पहुंचा दी जाएगी। यह कवायद इसलिए, ताकि देश-विदेश से लोग उत्तराखंड आएं। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। अफसोस, एक वर्ष पूर्व योजना की रूपरेखा तैयार करने के बावजूद यह धरातल पर नहीं उतर पाई है।