Move to Jagran APP

भगवान शिव के रौद्र रूप का प्रतीक वीरभद्रेश्वर मंदिर, यहां विध्वंस किया था यज्ञस्थल

ऋषिकेश में बाबा वीरभद्रेश्वर का मंदिर भगवान शिव के रोद्र रूप का प्रतीक है। यहां शिव के गण वीरभद्र ने यज्ञस्थल को विध्वंस किया था। यह स्थान पुरातत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 22 Jul 2016 09:10 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jul 2016 01:08 PM (IST)
भगवान शिव के रौद्र रूप का प्रतीक वीरभद्रेश्वर मंदिर, यहां विध्वंस किया था यज्ञस्थल

देहरादून, [भानु बंगवाल]: ऋषिकेश के आइडीपीएल फैक्ट्री क्षेत्र में बाबा वीरभद्रेश्वर का मंदिर भगवान शिव के रौद्र रूप का प्रतीक है। इस मंदिर में भगवान शंकर की पूजा हो श्रद्धालु उमड़ते हैं। इस मंदिर के साथ पौराणिक कथा भी जुड़ी है। मंदिर के निकट खेतों में छोटे-छोटे मंदिर इस बात का संकेत देते हैं कि कभी यह क्षेत्र मंदिरों की नगरी रहा होगा।
पौराणिक महत्व
वीर भद्रेश्वर मंदिर का पौराणिक महत्व भी है। मान्यता है कि इस स्थान पर दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया था। जब सती (उमा) को पता चला कि उसके पिता यज्ञ कर रहे हैं तो उसने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा। निमंत्रण न होने पर भगवान शंकर ने यज्ञ में जाने से मना कर दिया। जब सती काफी जिद करने लगी तो शंकर ने उसे अपने दो गणों के साथ यज्ञ में भेज दिया।

loksabha election banner

पढ़ें-केदारनाथ मंदिर की है अनोखी कहानी, भूमि में समा गए थे शिव
यज्ञ स्थल पर जब सती पहुंची तो उसने देखा कि उसके पिता प्रजापति ने भगवान शंकर का आसन तक नहीं रखा है। सती ने इसका कारण पिता से पूछा तो उन्होंने भगवान शंकर के लिए अपमान सूचक शब्दों का प्रयोग किया।
इसे सहन न कर सती ने यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया।

पढ़ें:-उत्तराखंड में भी है कोणार्क, जानने को क्लिक करें

सती के साथ आए गणों ने इसकी सूचना लौटकर भगवान शिव को दी। इस पर शंकर भगवान के क्रोध की कोई सीमा नहीं रही। क्रोध से वीरभद्र नाम के गण का जन्म हुआ। भगवान की आज्ञा लेकर वीरभद्र ने यज्ञस्थल को विध्वंस कर दिया। इसके बाद भगवान शंकर के शरीर में समा गया। इसी गण के नाम से वीरभद्र का मंदिर जाना जाता है। इसी मंदिर के नाम से ही यहां के स्थान का नाम वीरभद्र पड़ा।

PICS: टपकेश्वर महादेव मंदिर, प्रकृति करती है जलाभिषेक
वीरभद्र नाम से रेलवे स्टेशन
वीरभद्र के नाम से रेलवे स्टेशन के साथ ही आइडीपीएल फैक्ट्री तक स्थापित है। रंभा नदी के किनारे इस मंदिर का प्रचार व प्रसार ज्यादा नहीं होने से तीर्थयात्रियों को इसके बारे में ज्यादा पता नहीं रहता। हालांकि शिवरात्रि को इस स्थान पर मेला लगता है। वहीं, अब कांवड़िये भी इस मंदिर में पहुंचने लगे हैं।

पढ़ें-केदारनाथ मंदिर इतने सौ सालों तक दबा रहा बर्फ के अंदर, जानने के लिए पढ़ें.
टीले की खुदाई में मिले अवशेष
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग आगरा मंडल ने वर्ष 1976 में वीरभद्र मंदिर के निकट एक मिट्टी के टीले की खुदाई करके हजारों वर्ष पुराने दबे मंदिर के अवशेष निकाले। खुदाई में वर्षों पुरानी मंदिर की चौड़ी बुनियाद पाई गई। इस जगह खुदाई में दीवारों के बीच स्थापित शिवलिंग के साथ चपटे पत्थरों की नक्काशी की हुई भगवान शंकर की मूर्तियां भी निकली।
शिवलिंग भी है स्थापित
इस स्थान पर बुनियाद को देखकर अंदाजा लगता है कि यहां कई कक्षों वाला विशाल मंदिर रहा होगा। इसमें एक कक्ष में शिवलिंग भी स्थापित है। इसे तीर्थयात्रियों के दर्शन को ज्यों का त्यों रखा है। हजारों वर्ष पुराने इस मंदिर के अवशेष के नाम पर इसकी बुनियाद ही सुरक्षित है। साथ ही यज्ञ का चबूतरा, नंदी बैल का स्थान भी सुरक्षित है। इस स्थान पर खुदाई में निकली भगवान शंकर व अन्य देवी देवताओं की मूर्ति को पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में लिया हुआ है।

पढ़ें:-शिव की अद्भुत माया, यहां प्रकृति करती है शिव का जलाभिषेक
पुराने अवशेष के निकट है भव्य मंदिर
हजारों साल पुराने मंदिर के अवशेष के निकट ही वीरभद्रेश्वर का नया मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में ही भक्त पूजा अर्चना करते हैं। श्रावण मास में इस मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है।
PICS: केदारनाथ में भूमि में समा गए थे शिव


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.