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उत्तराखंड के राज्य खेल पर आखिर कब होंगी नजरें इनायत

उत्तराखंड में फुटबाल का स्वर्णिम इतिहास रहा है, लेकिन आज ये राज्य खेल उपेक्षा झेल रहा है। जिसके चलते वो हाशिए पर पहुंच गया है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 04 Jun 2018 01:52 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jun 2018 05:02 PM (IST)
उत्तराखंड के राज्य खेल पर आखिर कब होंगी नजरें इनायत
उत्तराखंड के राज्य खेल पर आखिर कब होंगी नजरें इनायत

देहरादून, [विकास गुसाईं]: आखिरकार उत्तराखंड ने क्रिकेट में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की दिशा में कदम बढ़ा लिए हैं। देर सवेर प्रदेश की क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआइ से मान्यता भी मिल जाएगी। यह निश्चित तौर पर उत्तराखंड के लिए गर्व का विषय है। पर अफसोस इस बात का है कि राज्य खेल का दर्जा प्राप्त और एक जमाने में उत्तराखंड की पहचान बन चुका फुटबाल अब तकरीबन हाशिये पर चला गया है। प्रदेश स्तर पर एसोसिएशन तो गठित है, लेकिन राज्य गठन के बाद आज तक यहां राज्य चैंपियनशिप नहीं हो पाई है। हालांकि, सरकार के खेलों के प्रति दिखाए जा रहे सकारात्मक रवैये से अब फुटबाल प्रेमियों में भी फुटबाल के स्वर्णिम दौर के वापस लौटने की उम्मीद जगने लगी है। 

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उत्तराखंड में फुटबाल का स्वर्णिम इतिहास रहा है। यहां के कई फुटबालरों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी चमक बिखेरी है। राष्ट्रीय स्तर पर सत्तर के दशक में उत्तराखंड के फुटबाल का खासा नाम था। इस दशक को उत्तराखंड का स्वर्णिम दौर भी कहा जा सकता है। तब गोरखा ब्रिगेड देहरादून में हुआ करती थी। उस समय गोरखा ब्रिगेड ने प्रसिद्ध डूरंड कप भी जीता था। इस समय श्याम थापा, अमर बहादुर गुरुंग, वीर बहादुर क्षेत्री, रामबहादुर क्षेत्री व भूपेंद्र रावत आदि कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने देश के दिग्गज क्लबों के साथ ही भारतीय टीम में शामिल होकर अपने खेल का लोहा मनवाया। इसी दौरान देहरादून स्थित गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज सुब्रतो कप के फाइनल में भी पहुंचा था। इन सफलताओं ने युवाओं को बरबस ही इस खेल की ओर आकर्षित किया। यहां कई राष्ट्रीय स्तर की फुटबाल प्रतियोगिताओं का आयोजन होना शुरू हुआ। 

वक्त ने करवट बदली और धीरे-धीरे फुटबाल का क्रेज कम होने लगा। राज्य गठन के बाद इस दिशा में सकारात्मक कदम उठने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। यहां के फुटबाल संघ आपस में ही लड़ते रहे। इसका नुकसान प्रदेश के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उठाना पड़ा। अब स्थिति यह है कि सूबे की प्रतिभाएं अन्य राज्यों की ओर रुख कर रही हैं। इनमें मनीष मैठाणी, अनिरुद्ध थापा, जितेंद्र बिष्ट, साहिल पंवार व नितिन जयाल जैसे नाम शामिल हैं, जो भारतीय राष्ट्रीय टीम तक में दस्तक दे चुके हैं।  

पूर्व अंतर्राष्ट्रीय खिलाडिय़ों का मानना है कि यदि सरकार गंभीरता से फुटबाल की ओर ध्यान दे तो यहां इतनी खेल प्रतिभाएं हैं, जो उत्तराखंड को फिर से इस खेल में बुलंदियों पर पहुंचा सकती हैं। 

बोले दिग्गज फुटबालर 

ऑल इंडिया फुटबाल फेडरेशन के तकनीकी समिति के चेयरमैन श्याम थापा बताते हैं कि उत्तराखंड में फुटबाल का अभी कोई सिस्टम नहीं है। फुटबाल एसोसिएशन नाममात्र के लिए लीग चला रही हैं। उत्तराखंड में फुटबाल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। सरकार को समझना होगा कि इस खेल में भी अच्छा भविष्य है। इसके बूते युवाओं को रोजगार मिल सकता है। कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी ऐसे हैं, जो प्रदेश को सेवाएं दे सकते हैं, लेकिन कभी सरकार व खेल विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। हालत यह है कि उत्तराखंड में अभी फुटबाल को चलाने वाले अधिकारी अपने पुराने खिलाडिय़ों को न तो जानते हैं, न ही पूछते हैं। आज भी सरकार यदि हमारी सेवाएं लेना चाहती है तो हम तैयार हैं।

पूर्व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी भूपेंद्र रावत का कहना है कि उत्तराखंड में फुटबाल को बढ़ावा देने के लिए स्तरीय फुटबाल एकेडमी खोलने की जरूरत है। उत्तराखंड में कई पुराने खिलाड़ी हैं, जिनकी सेवाएं कोच के रूप में ली जा सकती हैं। इसमें सरकार को सहयोग करने की जरूरत है।

अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी मनीष पैठाणी का कहना है कि प्रदेश में फुटबाल के लिए मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की जरूरत है। बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिए सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए। इस बात को समझना होगा कि यदि पौध की अच्छी परवरिश नहीं होगी तो वह पेड़ कैसे बन पाएगा। 

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