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उत्तराखंड: संन्यास की नसीहत देने वालों पर हरीश रावत ने साधा निशाना, कहा- 2024 में राहुल गांधी के पीएम बनने के बाद सोचूंगा

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने उन्हें संन्यास लेने की नसीहत देने वालों पर साधा निशाना है। उन्होंने कहा कि 2024 में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही वे इस संभावना पर विचार कहेंगे। हरीश रावत ने इंटरनेट मीडियम के माध्यमसे ये बात कही।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 02:55 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 11:13 PM (IST)
उत्तराखंड: संन्यास की नसीहत देने वालों पर हरीश रावत ने साधा निशाना, कहा- 2024 में राहुल गांधी के पीएम बनने के बाद सोचूंगा
संन्यास की नसीहत देने वालों पर हरीश रावत का निशाना।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने प्रदेश में 2002 और फिर 2012 से लेकर 2019 तक खुद को हर चुनावी युद्ध का नायक करार दिया है। साथ ही उन्हें राजनीति से संन्यास लेने की नसीहत देने वालों को भी साफ संदेश दे दिया कि वह आसानी से मैदान छोड़ने वाले नहीं है। उन्होंने कहा कि संन्यास जरूर लूंगा, लेकिन 2024 में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही यह संभव हो पाएगा। 

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प्रदेश में कांग्रेस की सियासत के बड़े चेहरे हरीश रावत ने सोमवार को एक तीन से कई सियासी निशाने साधे। फेसबुक पर अपनी पोस्ट में उन्होंने उत्तराखंड बनने के बाद से विभिन्न चुनावों का हवाला देते हुए पार्टी के भीतर और बाहर अपने विरोधियों को साफ संदेश देने की कोशिश की। दरअसल 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार के लिए एक धड़ा सीधे तौर पर उन्हें जिम्मेदार ठहराता रहा है। तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे नेताओं ने जितनी बार मेरी चुनावी हार की संख्या गिनाई है, उतनी बार अपने पूर्वजों का नाम नहीं लिया। 

2012 में 62 सीटों पर संभाला दायित्व

उन्होंने कहा कि अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत व बागेश्वर में तो वह 1971-72 से चुनावी हार-जीत के लिए जिम्मेदार बन गए थे। जिला पंचायत सदस्यों से लेकर नगर पंचायत अध्यक्ष, वार्ड मेंबरों, विधायकों के चुनाव में न जाने कितनों को लड़ाया और न जाने उनमें से कितने हार गए। 2012 में भी पार्टी ने उन्हें हेलीकॉप्टर देकर 62 सीटों पर चुनाव अभियान में प्रमुख दायित्व सौंपा। चुनावी हार के अंकगणित शास्त्रियों को अपने गुरुजनों से पूछना चाहिए कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कितनों को लड़ाया और उनमें से कितने जीते। भविष्य की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अंकगणितीय खेल में उलझे रहने के बजाय आगे की ओर देखो तो समाधान निकलता दिखता है। 

हार झेली, मगर नहीं बदली निष्ठा

हरीश रावत अपनी पोस्ट में खुद को महाभारत के युद्ध में अर्जुन की तरह पेश करने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि अर्जुन को जब घाव लगते थे, वे रोमांचित होते थे। राजनीतिक जीवन के प्रारंभ से ही उन्हें घाव दर घाव लगे, कई हार झेलीं, मगर राजनीति में न तो निष्ठा बदली और न ही रण छोड़ा। उन्हें चुनावी हार गिनाने वाले बच्चों के वह आभारी हैं। इनमें कुछ योद्धा आरएसएस की क्लास में सीखे हुए हुनर मुझ पर आजमा रहे हैं। वे उस समय जन्म ले रहे थे, जब वह पहली हार के बाद फिर युद्ध के लिए कमर कस रहे थे। 

सुबोध उनियाल पर भी बरसे

हरीश रावत ने नाम लिए बगैर कृषि मंत्री सुबोध उनियाल को भी निशाने पर लिया। सुबोध ने बीते दिनों हरीश रावत पर कई सवाल दागने के साथ ही उन्हें राजनीति से संन्यास लेने की नसीहत दी थी। रावत ने इसका भी जवाब दिया। रावत ने कहा कि त्रिवेंद्र सरकार के एक काबिल मंत्री, जिन्हें वह उनके राजनीतिक आका के दुराग्रह के कारण अपना साथी नहीं बना सके थे, उनकी सीख अच्छी रही है। वह संन्यास अवश्य लेंगे, लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में संवैधानिक लोकतंत्रवादी शक्तियों की विजय और उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद। तब तक उनके संन्यास के लिए प्रतीक्षा करते रहें। 

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