19 साल में सिर्फ एक बार ही लाभ में रहा उत्तराखंड परिवहन निगम, आंकड़ों में देखिए
बंधन बेहतर हो तो परिवहन व्यवसाय कभी घाटे का सौदा नहीं हो सकता। इस लिहाज से देखें तो सरकारी नियंत्रण वाले उत्तराखंड परिवहन निगम की व्यवस्था बेहद दुरुस्त होनी चाहिए थीं मगर ऐसा नजर नहीं आ रहा। आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। प्रबंधन बेहतर हो तो परिवहन व्यवसाय कभी घाटे का सौदा नहीं हो सकता। इस लिहाज से देखें तो सरकारी नियंत्रण वाले उत्तराखंड परिवहन निगम की व्यवस्था बेहद दुरुस्त होनी चाहिए थीं, मगर ऐसा नजर नहीं आ रहा। आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण पर ही गौर करें तो वर्ष 2003-04 से अब तक केवल एक बार ही निगम लाभ में रहा। वर्ष 2006-07 में निगम को 2.74 करोड़ का लाभ हुआ था। इसे छोड़ 19 साल में कोई वर्ष ऐसा नहीं, जब निगम घाटे में न रहा हो। ऐसे में प्रबंधन पर सवाल उठने लाजिमी हैं।
यह किसी से छिपा नहीं है कि राज्य में सड़क यातायात में उत्तराखंड परिवहन निगम की महत्वपूर्ण भूमिका है। तीन डिविजनल कार्यालय और 20 डिपुओं के माध्यम से निगम राज्य के भीतर और बाहरी राज्यों के लिए जनसामान्य को यातायात की सुविधा मुहैया कराता है। वर्तमान में निगम की 1388 बसों में से 644 पर्वतीय और 744 मैदानी क्षेत्रों में संचालित हो रही हैं। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2019-20 में निगम की 1323 बसों ने 1484.40 लाख किलोमीटर सफर किया और सवारियों की संख्या रही 374.12 लाख।
पिछले वित्तीय वर्ष में कोरोना संकट के कारण बसों का संचालन बाधित रहने से इसका असर यात्रा पर भी पर पड़ा। दिसंबर 2020 तक निगम की 1287 बसों ने 984.21 लाख किमी की दूरी तय की, जिनमें मात्र 90.81 लाख यात्रियों ने सफर किया।अब जरा निगम की आर्थिक स्थिति पर नजर डालते हैं। वर्ष 2003-04 में निगम का कुल व्यय 52 करोड़ रहा, जबकि प्राप्तियां रहीं 41.26 करोड़। बाद के वर्षों में प्राप्तियां बढ़ी, मगर व्यय भी बढ़ा। अलबत्ता 2006-07 ही एकमात्र ऐसा वर्ष रहा, जब निगम 2.74 करोड़ के लाभ में रहा।
इस वर्ष को छोड़ निगम अब तक घाटे में ही बसों का संचालन कर रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष में दिसंबर तक निगम का घाटा 149.54 करोड़ पहुंच गया। चालू वित्तीय वर्ष में भी कोरोना संकट के कारण निगम घाटे में है। इस सबको देखते हुए निगम को घाटे से उबारना सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। हालांकि, इस सिलसिले में उच्च स्तर पर मंथन शुरू हो गया है, ताकि ऐसे कदम उठाए जा सकें, जिससे निगम को लाभ की स्थिति में लाया जा सके।
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