सत्ता के गलियारों में उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण की गूंज
Gairsain Assembly Constituency उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण स्थित विधानसभा भवन राज्य की स्थायी राजधानी बनाने की मांग के बीच बजट सत्र में ही बजट गौण और गैरसैंण प्रमुख मुद्दा बन गया है। लिहाजा राजनीतिक दलों को भी परिपक्व और तर्कसंगत व्यवहार करना चाहिए। फाइल
कुशल कोठियाल। उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में पहली बार आठ दिन का बजट सत्र शुरू हो गया है। लगता है कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए बजट से ज्यादा महत्व उस जगह का है, जहां से राज्य का बजट पारित होने जा रहा है। दरअसल गैरसैंण को लेकर दोनों दल राजनीतिक अतिरेक के शिकार रहे हैं। पिछले लगभग 20 वर्षो से यानी इस राज्य के गठन के बाद से ही विभिन्न मंचों पर गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग उठती रही है, लेकिन लोकसभा और विधानसभा के किसी भी चुनाव में यह मुद्दा मतदाताओं को प्रभावित करने वाला साबित नहीं हुआ है।
गैरसैंण को राजधानी का विशेषण मिलने से पहाड़ी क्षेत्र का विकास होगा? इस प्रश्न का उत्तर भी भविष्य की मुट्ठी में छिपा है। उत्तराखंड क्रांति दल, जिसका चुनाव में यह सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा था, चुनाव में कहीं उसका खाता भी नहीं खुल पा रहा है। इस मुद्दे पर चुनाव लड़ने वाले दल की गत विधानसभा के भीतर और बाहर देखने के बावजूद सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को इस चुनावी साल में गैरसैंण से खासी उम्मीदें हैं। यही तो वजह है कि दोनों राजनीतिक दलों में गैरसैंण का श्रेय लेने को लेकर होड़ मची है। राज्य में पिछली कांग्रेस की सरकार ने करोड़ों रुपये की लागत से विधानसभा भवन बनाया तो वर्तमान भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। कांग्रेस पीछे क्यों रहती, अब कांग्रेस ने मांग कर दी है कि गैरसैंण को राज्य की स्थायी राजधानी घोषित किया जाए। कांग्रेस का दावा है कि यदि वे सत्ता में आए तो गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित कर देंगे। ऐसे माहौल में बजट सत्र में ही बजट गौण व गैरसैंण प्रमुख मुद्दा हो गया है। यह चुनावी वर्ष की स्वाभाविक परिणति भी मानी जा रही है।
इधर, उत्तराखंड के लोग यह पूछ रहे हैं कि गैरसैंण की विधानसभा से पारित होने वाला बजट किस मायने में देहरादून से पारित होने वाले बजट से भिन्न होगा। जनता के करोड़ों रुपये खर्च कर गैरसैंण में चल रहे बजट सत्र में अगर पहाड़ के विकास के लिए कोई पुख्ता प्रविधान रखे जाते हैं, तो ही इसकी सार्थकता सिद्ध होगी। उल्लेखनीय है कि गैरसैंण की विधानसभा में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य अपना अभिभाषण पढ़ कर देहरादून लौट आई हैं। गनीमत यह रही कि कांग्रेस ने अभिभाषण का केवल बहिष्कार ही किया, वरना पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के स्वदलीय माननीयों से प्रेरित होते तो राज्यपाल का रास्ता ही रोक देते। ऐसा न करके निश्चित तौर पर उन्होंने संविधान का मान रखा होगा या ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण का सम्मान किया होगा।
बजट सत्र को गैरसैंण में आहूत करने पर सबसे ज्यादा सुकून अगर कोई महसूस कर रहा है तो वे देहरादून के लोग हैं। हर सत्र में आधा देहरादून कैद हो जाता है। सड़कों पर बल्लियां, प्रदर्शनों का सिलसिला, वीआइपी मूवमेंट, पुलिस के डंडे, कुल मिला कर सामान्य जीवन बिखर सा जाता है। देहरादून के निवासी तो शायद यह चाहते भी हों कि राजधानी बेशक राज्य की यहीं रहे, लेकिन सदन का संचालन गैरसैंण से ही हो तो बेहतर।
डबल इंजन का दम : राज्यपाल के अभिभाषण में प्रदेश सरकार की आकांक्षाओं और योजनाओं की पूरी झलक है। सबका साथ-सबका विकास का संदर्भ भी अभिभाषण में है, जो डबल इंजन की सरकार की ओर इंगित कर रहा है। राज्य सरकार द्वारा जो-जो किया गया, अभिभाषण में उसका गान तो है ही, जो किया जाना है उसका उद्घोष भी है। उत्तराखंड में समस्या विकास योजनाओं की नहीं रही है, बल्कि समस्या योजनाओं के जमीनी क्रियान्वयन की रही है। योजनाओं को जमीन पर लागू करने की राह आसान नहीं है।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों का हवाला दे कर हर बार सरकारी लापरवाही और ढील को ढांप दिया जाता रहा, लेकिन 20 वर्ष का हो चुका उत्तराखंड अब तो हिसाब रखने लगा है। लिहाजा राजनीतिक दलों को भी परिपक्व और तर्कसंगत व्यवहार करना चाहिए।
[राज्य संपादक, उत्तराखंड]
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