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Indira Hridayesh: सियासी झंझावात से जूझ रही उत्तराखंड कांग्रेस के लिए इंदिरा का निधन बड़ा आघात

बदली परिस्थतियों में सियासी झंझावात से जूझ रही उत्तराखंड कांग्रेस के लिए नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश का निधन किसी बड़े आघात से कम नहीं है। वर्ष 2016 की सियासी उथल-पुथल के बाद कांग्रेस की राजनीति उसके तीन कद्दावर नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती आई है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 08:46 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jun 2021 10:37 PM (IST)
Indira Hridayesh: सियासी झंझावात से जूझ रही उत्तराखंड कांग्रेस के लिए इंदिरा का निधन बड़ा आघात
सियासी झंझावात से जूझ रही उत्तराखंड कांग्रेस के लिए इंदिरा का निधन बड़ा आघात। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, देहरादून। बदली परिस्थतियों में सियासी झंझावात से जूझ रही उत्तराखंड कांग्रेस के लिए नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश का निधन किसी बड़े आघात से कम नहीं है। वर्ष 2016 की सियासी उथल-पुथल के बाद कांग्रेस की राजनीति उसके तीन कद्दावर नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती आई है। अब जबकि पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी है तो इस बीच नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के निधन से उसे बड़ा झटका लगा है। इसके चलते कांग्रेस में जो रिक्तता आई है, उसकी भरपाई संभव नहीं है।

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उत्तराखंड में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ कांग्रेस के सिमटने का क्रम अभी तक थम नहीं पाया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की झोली रीती रही तो वर्ष 2017 के राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 11 पर आकर सिमट गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी खुद को साबित नहीं कर पाई।

वर्ष 2016 में कांग्रेस में हुई टूट और उसके 10 विधायकों के भाजपा का दामन थामने के बाद इस सदमे से पार्टी उभर नहीं पाई है। सूरतेहाल राज्य में अपनी जमीन बचाए रखने के लिए कांग्रेस को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। इस परिदृश्य के बीच कांग्रेस की सियासत पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह के इर्द-गिर्द ही घूमती आ रही है।

अब जबकि कांग्रेस पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटी थी, तो ऐन वक्त पर वरिष्ठ नेता इंदिरा हृदयेश हमेशा के लिए साथ छोड़कर चली गईं। यह कांग्रेस के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। किसी ने भी इसकी कल्पना नहीं की थी कि इंदिरा हृदयेश अचानक इस तरह चली जाएंगी, लेकिन नियति को शायद यही मंजूर था।

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