Lockdown 4.0: छूट मिलते ही फूड प्रोसेसिंग इकाइयों का उत्पादन पटरी पर लौटा, दोगुनी हुई डिमांड
लॉकडाउन 3.0 के बाद रियायत मिलते ही राज्य में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों (फूड प्रोसेसिंग उद्योग) का उत्पादन पटरी पर लौटने लगा है।
देहरादून, जेएनएन। लॉकडाउन 3.0 के बाद रियायत मिलते ही राज्य में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों (फूड प्रोसेसिंग उद्योग) का उत्पादन पटरी पर लौटने लगा है। छह मई के बाद से मंगलवार तक खाद्य पदार्थो का उत्पादन और बाजार में डिमांड दो महीने पहले की तुलना में दो गुनी हो गई है। हालांकि शारीरिक दूरी के नियम के चलते अभी सभी इकाइयां करीब 60 से 70 फीसद कामगार को ही बुला रही हैं।
राज्य में 722 के करीब फूड प्रोसेसिंग उद्योग हैं। इन उद्योगों की उपयोगिता लॉकडाउन के दौरान भी बनी रही। पटेलनगर स्थित चिराग इंडस्ट्री के प्रमुख पवन अग्रवाल ने बताया कि पहले के मुकाबले अब उत्पादन में सुधार हुआ है, लेकिन शत फीसद कच्चा माल अभी भी नहीं मिल रहा है।
उत्तराखंड फूड प्रोसेसिंग इकाई के समन्वयक अनिल मारवाह का कहना है कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को लॉकडाउन में भी उत्पादन की छूट थी, लेकिन दिक्कतें बहुत थीं। लॉकडाउन-3 के बाद छह मई से सरकार ने सभी तरह के उद्योगों को उत्पादन की छूट दी, जिसके बाद उत्पादन बढ़ना शुरू हुआ। हालांकि अभी भी कच्चे माल की उपलब्धता और कामगारों की कमी बनी हुई है।
उद्योग निदेशक सुधीर चंद्र नौटियाल का कहना है कि केंद्र सरकार ने माइक्रो फूड इंटरप्राइजेज (एमएफई) को बढ़ावा देने के लिए दस हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। जिससे उत्तराखंड की फूड इंडस्ट्रीज के विस्तारीकरण और तकनीक को अपग्रेड करने में सहयोग मिलेगा। आशा की जा रही है कि छोटी फूड प्रोसेसिंग इकाइयां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होंगी। उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में इसके विस्तारीकरण होने से रोजगार के अधिक अवसर पैदा होंगे और पलायन रोकने में भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सहायक सिद्ध होंगे।
दस हजार लोगों को मिला है रोजगार
उत्तराखंड में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां रुद्रपुर, ऊधमसिंहनगर, कोटद्वार, काशीपुर, हरिद्वार, बहादराबाद, डोईवाला, देहरादून, सेलाकुई, पटेलनगर, विकासनगर, ऋषिकेश में हैं। इनमें आटा चक्की, मसाला उद्योग बेकरी, नमकीन, जैम, बोतल बंद पेयजल, चटनी, आचार, विभिन्न फलों का जूस, ब्रेड, बिस्कुट आदि का उत्पादन होता है। इन उद्योगों में आम दिन में दस हजार के करीब कामगार सेवाएं देते हैं, जबकि आजकल 65 से 67 सौ के करीब कामगारों को ही बुलाया जा रहा है।
परियोजनाओं में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार
देश के विभिन्न प्रदेशों से लौट रहे प्रवासी नागरिकों को अब अपने गांव-घर के नजदीक रोजगार मुहैया कराने की दिशा में उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड ने पहल शुरू की है। इसके लिए बाहर से आने वाले प्रवासियों की कार्य कुशलता के बारे में डाटा एकत्र करने के साथ उनसे संपर्क करने की भी कोशिश शुरू हो गई है।
कोरोना महामारी का खतरा भले कम होने का नाम नहीं ले रहा, लेकिन इसने अब अपने गांव-घर के आसपास ही रोजगार की भावना बढ़ा दी है। यही वजह है कि दिल्ली, मुंबई, पंजाब समेत अन्य प्रांतों में वर्षो से रोजगार कर रहे उत्तराखंड के लोग अब घरों की ओर लौटने लगे हैं। ऐसे में सवाल यह कि कोरोना संकट काल गुजरने के बाद वह क्या करेंगे। क्योंकि लौटे तमाम प्रवासी नागरिक अब यहीं के होकर रहना चाहते हैं। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार जहां रोजगार के अवसर बढ़ाने का रोडमैप तैयार कर रही है, वहीं, यूजेवीएनएल ने भी अब अपनी परियोजनाओं में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार देने की दिशा में काम शुरू कर दिया है।
तीन परियोजनाओं पर चल रहा काम
यूजेवीएनएल की देहरादून में ब्यासी जल विद्युत परियोजना, रुद्रप्रयाग में कालीगंगा प्रथम व द्वितीय परियोजना निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं पर कोरोना महामारी के आने से पहले डेढ़ से दो हजार श्रमिक काम करते थे। इसमें से कुछ घर लौट चुके हैं तो अधिकांश इस प्रयास में लगे हुए हैं। हालांकि निगम का कहना है कि श्रमिकों को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। काफी श्रमिक रुक भी गए हैं। मगर इसके साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार देने की दिशा ने काम शुरू कर दिया गया है।
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यूजेवीएनएल के प्रवक्ता विमल डबराल का कहना है कि जिन तीन परियोजनाओं पर काम चल रहा है, वहां पहले से काम कर अधिकांश श्रमिकों को रोक लिया गया है। जहां तक बाहर से आने वाले लोगों की बात है, इस दिशा में सरकार की गाइड लाइन के अनुसार कदम उठाए जाएंगे।
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