अनुसूचित जाति-जनजाति के वोटर भी बदल सकते हैं राजनीतिक दलों की गणित, आरक्षित सीटों पर डालें नजर
Uttarakhand Election 2022 उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा के चुनाव के आलोक में देखें तो यहां भी अनुसूचित जाति व जनजाति के मतदाताओं का प्रभाव पूरे प्रदेश में है। अनुसूचित जाति के लिए 13 और जनजाति के लिए दो सीटें आरक्षित हैं
राज्य ब्यूरो, देहरादून। चुनाव चाहे लोकसभा के हों अथवा राज्य विधानसभाओं के, सभी में अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं पर राजनीतिक दलों की नजर रहती है। उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा के चुनाव के आलोक में देखें तो यहां भी अनुसूचित जाति व जनजाति के मतदाताओं का प्रभाव पूरे प्रदेश में है। राज्य विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए 13 और जनजाति के लिए दो सीटें आरक्षित हैं। प्रदेश में इनके राजनीतिक प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि प्रत्येक राजनीतिक दल में अनुसूचित जाति व जनजाति के प्रकोष्ठ बने हुए हैं। मंत्रिमंडल में भी इन्हें हमेशा जगह मिलती आई है। राजनीतिक दलों द्वारा इन्हें लुभाने का बड़ा कारण इन वर्गों का मतदान के प्रति जागरूक होना भी है। राज्य में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में 65.60 मतदान हुआ था। इनमें सबसे अधिक 74.60 प्रतिशत मतदान अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने किया था।
प्रदेश की राजनीति में अनुसूचित जाति-जनजाति के मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं। प्रदेश की वर्ष 2021 की अनुमानित जनसंख्या के अनुसार अनुसूचित जाति की जनसंख्या 22 लाख और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की जनसंख्या 3.38 लाख है। यह आंकड़ा 25 लाख से अधिक है। निर्वाचन आयोग के मापदंड के अनुसार कुल जनसंख्या का 61 प्रतिशत मतदाता बनने के योग्य हो जाता है। इसके अनुसार प्रदेश में अनुसूचित जाति व जनजाति के मतदाताओं का प्रतिशत 18.50 पहुंचता है। जाहिर है कि इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं को नाराज करने की स्थिति में कोई दल नहीं रहता। सबसे अहम पहलू यह है कि ये वे मतदाता हैं जो सबसे अधिक संख्या में मतदान केंद्रों तक पहुंचते हैं। पिछले चुनाव में हुए मतदान में 74.60 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 64.39 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं ने वोट डाले थे।
इस वर्ग को लुभाने में जुटे हैं सभी दल
अनुसूचित जाति-जनजाति के मतदाताओं को रिझाने में इस समय सभी दल लगे हुए हैं। दरअसल, प्रदेश की कई विधानसभा सीटों पर अनुसूचित जाति के मतदाता ही प्रत्याशी की किस्मत तय करते हैं। वैसे भी यहां की विधानसभा सीटों पर निर्णय काफी कम अंतर से होता रहा है। ऐसे में जो अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपने पक्ष में कर ले, उसे उम्मीद बंधी रहती है। राजनीतिक नजरिये से अभी तक की स्थिति देखें तो पर्वतीय क्षेत्रों में अनुसूचित जाति का वोट बैंक परंपरागत रूप से कांग्रेस का माना जाता रहा है, जबकि मैदानी क्षेत्र में इस पर एक दौर में बसपा, सपा का प्रभाव रहा है। राज्य गठन के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बसपा को सात सीटें हासिल हुई थीं, जो अब शून्य पर सिमट चुकी है। अलबत्ता, सपा यहां कभी खाता नहीं खोल पाई।
प्रदेश में चल रही है कई योजनाएं
अनुसूचित जाति, जनजाति के व्यक्तियों को लुभाने के लिए सरकार कई योजनाएं चलाती है। इनमें सरकारी सेवाओं में आरक्षण, कालेज में छात्रवृत्ति से लेकर सस्ता राशन, सरकारी अनुदान, बच्चों की शिक्षा व शादी के लिए आर्थिक सहायता प्रमुख है।
प्रदेश में हैं पांच जनजातियां
भारत सरकार ने वर्ष 1967 में पांच जनजातियां थारू, बुक्सा, भोटिया, राजी एवं जौनसारी को अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया है। इन पांचों जनजातियों में बुक्सा एवं राजी जनजाति अन्य जनजातियों से काफी पिछड़ी एवं निर्धन होने के कारण उन्हें आदिम समूह की श्रेणी में रखा गया है। बुक्सा जनजाति जो देहरादून जिले के विकासनगर, सहसपुर, डोईवाला, पौड़ी गढ़वाल के विकासखंड दुगड्डा, हरिद्वार के विकासखंड बहादराबाद, (लालढांग परिक्षेत्र) ऊधमसिंहनगर के विकासखंड बाजपुर, गदरपुर, काशीपुर, नैनीताल के विकासखंड रामनगर, राजी जनजाति पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, कनालीछीना, डीडीहाट एवं चम्पावत जिले के विकासखंड चम्पावत में मुख्य रूप सें निवासरत हैं।
जिलेवार अनुसूचित जाति-जनजाति
जिला जनसंख्या
उत्तरकाशी - 80567
टिहरी - 79317
देहरादून - 102130
पौड़ी - 228901
रुद्रप्रयाग - 122361
पिथौरागढ़ - 120378
अल्मोड़ा - 150995
नैनीताल - 191206
बागेश्वर - 72061
चम्पावत - 47383
यूएस नगर - 238264
हरिद्वार - 411274
चमोली - 91577
(नोट: यह आंकड़े वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार हैं।)
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटें
पुरोला, घनसाली, राजपुर रोड, ज्वालापुर, झबरेड़ा, पौड़ी, थराली, गंगोलीहाट, बागेश्वर, सोमेश्वर, नैनीताल, बाजपुर, भगवानपुर।
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें
चकराता, नानकमत्ता।
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