सत्ता के गलियारे से: नापजोख हुई पूरी, अब चलेगी हाईकमान की कैंची
Uttarakhand Election 2022 इन दिनों भाजपा व कांग्रेस मैदान में उतरने वालों के टिकट तय करने में जुटी हैं। कांग्रेस ने दिल्ली में पहले चरण में लगभग 45 नाम फाइनल किए तो भाजपा प्रदेश चुनाव समिति ने सभी 70 सीटों के पैनल तैयार कर दिल्ली भेज दिए।
विकास धूलिया, देहरादून। Uttarakhand Election 2022 चुनाव हैं तो हलचल सभी दलों में है। इन दिनों भाजपा व कांग्रेस मैदान में उतरने वालों के टिकट तय करने में जुटी हैं। कांग्रेस ने दिल्ली में पहले चरण में लगभग 45 नाम फाइनल किए तो भाजपा प्रदेश चुनाव समिति ने सभी 70 सीटों के पैनल तैयार कर दिल्ली भेज दिए। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पहली सूची जारी की तो लगभग 25 प्रतिशत विधायकों की दावेदारी पर कैंची चल गई। अब छोटा भाई होने के नाते उत्तराखंड में भी भाजपा इसी परिपाटी पर चली तो यहां भी लगभग 15 विधायकों का पत्ता कटना तय माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश में पार्टी के सख्त मापदंडों को देख प्रदर्शन के पैमाने पर कमजोर समझे जा रहे विधायकों को कड़ाके की सर्दी में भी पसीना आ रहा है। दो दिन से ऐसे तमाम विधायक देहरादून पहुंच माहौल भांपने की कोशिश करते रहे, अब उनकी निगाहें दिल्ली पर टिक गई हैं।
कोरोना की मार, कैसे करें ये चुनाव प्रचार
निर्वाचन आयोग ने कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए रैलियों, सभाओं जैसे आयोजनों पर पाबंदी एक सप्ताह बढ़ा दी है। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव पर भी इसका सीधा असर दिख रहा है। भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दल तो साधन संपन्न होने के कारण वर्चुअल माध्यम से डिजिटल प्लेटफार्म पर अपना चुनाव अभियान चलाने में सक्षम हैं, लेकिन उत्तराखंड क्रांति दल जैसे अन्य छोटे दल इस मामले में स्वयं को असहाय पा रहे हैं। आर्थिक रूप से न तो ये संपन्न हैं और न इनके सांगठनिक ढांचे में इस तरह के नेटवर्क को अब तक जगह मिल पाई है। कार्यकत्र्ता व्यापक स्तर पर वर्चुअल माध्यम के इस्तेमाल के अभ्यस्त भी नहीं हैं। इनकी उम्मीद अब इस बात पर ही टिकी है कि कोरोना के मामलों में जल्द से जल्द गिरावट आए तो पारंपरिक तौर तरीकों से अपने अभियान को आगे बढ़ाएं। फिलहाल ऐसा होता दिखता नहीं।
यहां तो अध्यक्ष का ही कट रहा पत्ता
प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दे रही हैं और उत्तराखंड में महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य का ही टिकट कटने के आसार हैं। सरिता नैनीताल सुरक्षित सीट से विधायक रही हैं और फिर यहीं से मैदान में उतरना चाहती हैं। राजनीति कब क्या करवट ले कोई नहीं जानता, ऐसा ही सरिता के साथ हुआ। पिछले चुनाव में भाजपा के संजीव आर्य से मात खाई, लेकिन अब संजीव अपने पिता पूर्व मंत्री यशपाल आर्य के साथ कांग्रेस में लौट चुके हैं। पिता-पुत्र ने विधायकी छोड़ कांग्रेस का दामन थामा, तो इसमें किसी को संदेह नहीं कि नैनीताल से कांग्रेस का टिकट संजीव को ही मिलेगा। टिकट की उम्मीद में सरिता देहरादून में केंद्रीय मंत्री व भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रल्हाद जोशी से मुलाकात कर कांग्रेस में हलचल तो पैदा करने में सफल रहीं, लेकिन टिकट का भरोसा मिला या नहीं, अभी मालूम नहीं।
पहले कांग्रेस छुड़वाई, फिर सीट पर नजर टिकाई
राजनीति में कोई सगा नहीं होता, यह केदारनाथ की पूर्व विधायक शैलारानी रावत से ज्यादा भला कौन समझ सकता है। मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व हरक सिंह रावत के साथ जिन अन्य सात विधायकों ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम तत्कालीन हरीश रावत सरकार को संकट में डाला था, उनमें शैलारानी रावत भी शामिल थीं। वह पिछली बार कांग्रेस के मनोज रावत से पराजित हुईं और इस चुनाव में फिर केदारनाथ सीट से भाजपा टिकट की प्रबल दावेदार हैं। ऐन मौके पर उनके पुराने सहयोगी हरक सिंह रावत ने केदारनाथ सीट पर अपना दावा ठोक दिया। दरअसल, हरक सूबे में अकेले ऐसे विधायक हैं, जिन्होंने एकाध अपवाद को छोड़ कभी किसी सीट से दोबारा चुनाव नहीं लड़ा। इस बार हरक का मन केदारनाथ से महासमर में उतरने का कर गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि शैलारानी रावत का राजनीतिक भविष्य ही दांव पर लगा गया है।
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