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जानिए क्यों हरक सिंह को कांग्रेस में भी सुकून मिलना मुश्किल, 2016 का ये संकट बन सकता है वजह

Uttarakhand Election 2022 भाजपा से निष्कासित पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का अगला ठिकाना कांग्रेस ही होगा लेकिन लगता नहीं कि यहां भी उनकी राह आसान रहेगी। मार्च 2016 में कांग्रेस सरकार को संकट में डालने वाले हरक को हरीश रावत दिल से माफ करेंगे।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 08:10 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 01:06 PM (IST)
जानिए क्यों हरक सिंह को कांग्रेस में भी सुकून मिलना मुश्किल, 2016 का ये संकट बन सकता है वजह
जानिए क्यों हरक सिंह को कांग्रेस में भी सुकून मिलना मुश्किल। सोशल मीडिया

राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Election 2022 यह तय है कि भाजपा से निष्कासित पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का अगला ठिकाना कांग्रेस ही होगा, लेकिन लगता नहीं कि यहां भी उनकी राह आसान रहेगी। मार्च 2016 में कांग्रेस सरकार को संकट में डालने वाले हरक को हरीश रावत दिल से माफ करेंगे, आज की परिस्थिति में इसकी संभावना कम दिख रही है। विशेषकर इसलिए भी, क्योंकि हरीश रावत अच्छी तरह जानते हैं कि कांग्रेस में आने के बाद हरक पार्टी के आंतरिक समीकरणों में विरोधी गुट के साथ ही खड़े होंगे।

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भाजपा ने पहले ही भांप लिया हरक का पैंतरा

ऐन चुनाव से पहले पाला बदल कर भाजपा को झटका देने का हरक का मंसूबा पूरा नहीं हो पाया, क्योंकि इससे पहले ही भाजपा ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब वह भावुक बयान दे रहे हैं कि भाजपा ने उन्हें अपनी बात रखने का अवसर तक नहीं दिया, लेकिन सच यह भी है कि वह इस बार आर या पार के मूड से दिल्ली पहुंचे थे। वह भलीभांति समझ रहे थे कि भाजपा उनके द्वारा मांगे गए तीन टिकट देने पर कतई हामी नहीं भरेगी। इसके बाद उन्हें कांग्रेस का रुख करना था, लेकिन भाजपा ने उनका पैंतरा भांप पहले ही पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया।

कांग्रेस भी हरक को लेकर नहीं दिखा रही कोई बेकरारी

दिलचस्प यह कि कांग्रेस भी उनके स्वागत में कोई बेकरार नहीं दिख रही है। अगर ऐसा होता तो हरक तुरंत ही कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा कर डालते, जो अब तक नहीं हुई। दरअसल, हर कोई समझ रहा है कि हरक कांग्रेस में शामिल होने के बाद न चाहकर भी एक गुट बनकर उभरेंगे। इस स्थिति में उनकी नजदीकी हरीश रावत के विरुद्ध सक्रिय गुटों के साथ ही रहनी तय है। हरक और हरीश के रिश्तों में तल्खी काफी पुरानी है। वर्ष 2002 के पहले चुनाव में जब कांग्रेस सत्ता में आई, उस समय हरक ने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत के विरोध में ही कांग्रेस में स्वर बुलंद किए थे।

जब तक कांग्रेस में रहे, हरीश के खिलाफ खोला मोर्चा

हरक जब तक कांग्रेस में रहे, उन्होंने हरीश रावत के विरुद्ध ही मोर्चा खोला। इसकी चरण परिणति हुई मार्च 2016 में, जब हरक सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा समेत आठ अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस से भाजपा में चले गए। न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही हरीश रावत सरकार तब जाते-जाते बची। विधानसभा चुनाव से अपनी सरकार को गिराने और कांग्रेस में विभाजन कराने की बात हरीश रावत अब तक भूले नहीं हैं और अकसर इसके लिए हरक को कठघरे में खड़ा करने से नहीं चूकते।

हरक से हरीश की राजनीतिक दुश्मनी के कई पहलू

हरक के साथ जितने विधायक कांग्रेस से भाजपा में गए, उनमें हरीश रावत सबको शायद माफ कर दें, लेकिन हरक को नहीं कर सकते। यही नहीं, हरीश रावत के हरक के साथ राजनीतिक दुश्मनी के कुछ अन्य पहलू भी हैं। वर्ष 2016 में हरीश रावत का स्टिंग, जिसमें नौबत सीबीआइ जांच तक पहुंची, में हरक की ही भूमिका मानी जाती है। इसके बाद भाजपा सरकार में मंत्री रहते हुए हरक लगातार हरीश रावत पर हमलावर रहे। हालांकि हरीश रावत ने भी इसका बखूबी जवाब दिया। इन परिस्थितियों में स्पष्ट है कि हरक कांग्रेस में आने पर कम से कम हरीश रावत को तो मजबूत नहीं करेंगे, बल्कि कदम-कदम पर उनके लिए चुनौती ही बनेंगे।

तीन टिकट की मांग का अब औंधे मुंह गिरना तय

इस चुनाव में हरीश रावत कांग्रेस की चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष तो हैं ही, साथ ही पार्टी के मुख्यमंत्री पद का अघोषित चेहरा भी हैं। टिकट वितरण में सबसे बड़ी भूमिका उन्हीं की है। जिस तरह हरक भाजपा से तीन टिकटों की मांग कर रहे थे, शायद ही हरीश रावत इसके लिए सहमति दें। पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के भाई को कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं बनाया, तो उत्तराखंड में भाजपा से अभी-अभी आए किसी नेता के लिए कांग्रेस इस परंपरा को तोड़ेगी, संभव नहीं नजर आता। ऐसे में हरक को भले ही कांग्रेस प्रत्याशी बना दे, लेकिन उनकी दो अन्य टिकटों की मांग का औंधे गिरना निश्चित समझा जा रहा है।

शायद ही कभी इस तरह की स्थिति में फंसे हों हरक

हरीश रावत को मीठी बोली, मगर लंबी दूरी की मार करने वाले राजनेता के तौर पर जाना जाता है। वह दुश्मनों से भले ही मित्रवत व्यवहार करें, लेकिन दुश्मनी कभी नहीं भूलते। हरक का दिया दर्द हरीश रावत को अब तक छह साल बाद भी टीस देता रहता है, यह उनके ताजा राजनीतिक घटनाक्रम के संबंध में दिए गए बयानों से साफ है। आज हरक सिंह रावत बिना दल के राजनीति के उस मुकाम पर खड़े हैं, जहां मोलभाव करने की ताकत उनके पास बची नहीं है। अगर यह कहा जाए कि हरक अपने 40 साल से ज्यादा लंबे राजनीतिक जीवन में इस तरह असहाय कभी नहीं रहे, तो गलत नहीं होगा।

पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत का कहना है कि भाजपा से निष्कासित मंत्री हरक सिंह रावत अभी कांग्रेस में शामिल नहीं हुए हैं। पार्टी कई पहलुओं का ध्यान रख इस संबंध में निर्णय लेगी। हमें 2016 को नहीं भूलना चाहिए। 2016 में जो कुछ हुआ, मेरे खिलाफ नहीं, लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ अपराध था। एक चलती हुई सरकार को गिराने का षड्यंत्र किया गया। इसके लिए प्रदेश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। पार्टी को जनभावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए। पार्टी सिद्धांतों पर चलती है। मेरा किसी से कोई व्यक्तिगत बैर नहीं है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा, पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत के आने से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी। उत्तराखंड में उनका जनाधार है। वह पार्टी में शामिल होंगे तो पार्टी को इसका लाभ मिलेगा। उन्होंने जिस तरह कांग्रेस की निस्वार्थ सेवा का बयान दिया है, वह स्वागतयोग्य है।

हरक सिंह रावत ने कहा, भाजपा ने बगैर मेरी बात सुने निर्णय लिया। मैंने केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी के समक्ष केवल यही बात रखी थी कि अनुकृति (पुत्रवधू) काफी अच्छा काम कर रही है। मुझे अपने लिए टिकट नहीं चाहिए, उसे मौका मिलना चाहिए। भाजपा सरकार की कमियों के कारण इस बार कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार आ रही है। कांग्रेस के अलावा किसी अन्य दल में नहीं जा सकता। बगैर शर्त कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए काम करूंगा।

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