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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में कर्मचारियों के हाथ भी राजनीतिक दलों का भविष्य, जानें- कितनी है संख्या

Uttarakhand Election 2022 चार लाख कर्मचारी व पेंशनर किस करवट बैठेंगे इसकी थाह लेना मुश्किल है। यह ऐसा समूह है जो एक बड़े मतदाता वर्ग को प्रभावित करता है। चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस वर्ग को लुभाने के लिए कोई भी राजनीतिक दल कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 12:15 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 12:15 PM (IST)
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में कर्मचारियों के हाथ भी राजनीतिक दलों का भविष्य, जानें- कितनी है संख्या
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में कर्मचारियों के हाथ भी राजनीतिक दलों का भविष्य।

राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Election 2022 प्रदेश के चुनावी महासमर में प्रदेश के चार लाख कर्मचारी व पेंशनर किस करवट बैठेंगे, इसकी थाह लेना मुश्किल है। यह ऐसा समूह है, जो एक बड़े मतदाता वर्ग को प्रभावित करता है। चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस वर्ग को लुभाने के लिए कोई भी राजनीतिक दल कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता। यही कारण है कि सरकारें इनकी कई पेचीदा मांगों को सुलझाने में भी कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती। वहीं, विपक्ष भी कर्मचारियों को साधने के लिए इनकी मांगों पर सुर से सुर मिलाए रहते हैं।

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उत्तराखंड में सबसे अधिक कामगार सरकारी सेवाओं में हैं। प्रदेश की सरकारी सेवाओं में तकरीबन 2.50 लाख सरकारी कर्मचारी है। शिक्षकों की संख्या 60 हजार के आसपास है। इतनी ही संख्या में पेंशनर हैं। निकाय कर्मियों की संख्या भी 50 हजार से अधिक है, जबकि उपनल, पीआरडी, होमगार्ड व संविदा कर्मियों की संख्या 40 हजार से अधिक है। यह कुल संख्या 4.50 लाख से अधिक है। यदि एक कर्मचारी के पीछे उसके परिवार के छह व्यक्तियों को भी जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा 18 लाख के आसपास बैठता है। यह संख्या कुल मतदाताओं का तकरीबन 22 प्रतिशत है।

कर्मचारियों के इस समूह के प्रभाव को सभी राजनीतिक दल अच्छी तरह समझते हैं। इसे देखते हुए कोई भी राजनीतिक दल कर्मचारी वर्ग को नाराज करने की स्थिति में नहीं रहता है। यही कारण भी है कि जब भी कर्मचारी संगठन अपनी आवाज बुलंद करते हैं तो सरकारों को उनके सामने झुकना ही पड़ता है। आंदोलन में सख्ती दिखाने और वेतन काटने तक के आदेश देने के बावजूद बाद में सरकार को इनसे कदम पीछे ही खींचने पड़ते हैं। परिणामस्वरूप कर्मचारी संगठनों के अधिकांश आंदोलन सफल होते हैं।

यूं तो सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली में बंधे होने के कारण किसी राजनीतिक दल की सदस्यता नहीं ले सकते, लेकिन यह बात भी सही है कि कई संगठन ऐसे हैं जो विभिन्न दलों की विचारधारा से जुड़े हैं। सेवानिवृत्ति के बाद इन्हें इन राजनीतिक दलों में सक्रिय कार्यकर्त्ता की भूमिका में देखा जा सकता है।

हर विभाग में कर्मचारी संगठन

प्रदेश में शायद ही कोई विभाग या निकाय ऐसा होगा, जहां कर्मचारी संगठन अस्तित्व में हैं। हर विभाग में कम से कम दो से तीन कर्मचारी संगठन हैं। हालांकि, कुछ विभागों में इनकी संख्या इससे अधिक है। यहां तक कि प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारी जैसे आशा कार्यकर्त्ता, भोजनमाता, पीआरडी कर्मचारी व उपनल कर्मियों के भी अपने अलग संगठन हैं।

राजनीति में भी बनाई पहचान

प्रदेश की राजनीति में कर्मचारी-शिक्षकनेताओं ने भी अपनी पहचान बनाई हैं। इनमें कांग्रेस नेता व पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय इंदिरा हृदयेश का नाम प्रमुख है। एक शिक्षिका के रूप में सफर शुरू करने के बाद उन्होंने उत्तराखंड में वित्त मंत्री व नेता प्रतिपक्ष जैसा अहम पद संभाला है। उनके अलावा डा हरक सिंह रावत व प्रो जीतराम भी शिक्षक नेता रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता मुन्ना सिंह चौहान ने भी सरकारी सेवा के बाद सफल राजनीतिक सफर तय किया है।

कर्मचारियों की प्रमुख समस्याएं

-पुरानी पेंशन बहाली एक ऐसा मुद्दा है, जिसे तकरीबन हर प्रदेश में कर्मचारियों द्वारा उठाया जा रहा है। यहां भी कर्मचारी इस मुद्दे पर मुखर हैं।

-प्रदेश में स्थानांतरण नीति के सख्ती से लागू न हो पाने के कारण कई कर्मचारी सालों से पर्वतीय जिलों में ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

-स्वास्थ्य योजना को लेकर भी कर्मचारी संगठन मुखर है। सरकार द्वारा भले ही इसमें बदलाव किया गया है, लेकिन यह पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर पाई है।

-उपकरण व कार्यालयों की कमी भी कर्मचारियों की एक बड़ी समस्याएं हैं। कई विभागों को डिजिटल किए जाने के बावजूद पर्याप्त संख्या में कंप्यूटर नहीं है। वहीं, कई सरकारी कार्यालय अभी किराए के भवनों में ही चल रहे हैं।

प्रमुख कर्मचारी संगठन

-राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद

-उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी शिक्षक महासंघ

-राज्य निगम अधिकारी-कर्मचारी महासंघ

- उत्तराखंड कार्मिक एकता मंच

- राजकीय शिक्षक संघ

- उत्तराखंड फेडरेशन आफ मिनिस्टीरियल फेडरेशन एसोसिएशन

- उत्तराखंड विद्युत अधिकारी- कर्मचारी संघर्ष मोर्चा

- राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष मोर्चा

- पेयजल निगम अधिकारी-कर्मचारी समन्वय समिति

- उत्तराखंड जल संस्थान कर्मचारी संगठन संयुक्त मोर्चा

- उपनल कर्मचारी महासंघ

सरकारी कर्मचारी- तकरीबन 2.5 लाख

- शिक्षक - तकरीबन 60 हजार

- निगम व निकाय कर्मी- 55 हजार

- पेंशनर - 70 हजार

- उपनल कर्मी - 22 हजार

- होमगार्ड - छह हजार

- पीआरडी कर्मी- छह हजार

- संविदा कर्मी - पांच हजार

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष अरुण पांडेय ने कहा, कर्मचारी संगठन सरकार के सामने हमेशा तथ्यपूर्ण मांगों को लेकर अपनी बात रखते हैं। जब उनकी बात नहीं सुनी जाती, तब आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ता है। इसमें कोई राजनीति नहीं है।

अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष दीपक जोशी ने बताया कि कर्मचारी हमेशा ज्वलंत विषयों को लेकर ही आंदोलन का रास्ता अपनाते हैं। यह कदम भी तब उठाना पड़ता है, जब सरकारें कर्मचारियों की बात नहीं सुनती। वोट कहां देना है, यह हर कर्मचारी का अपना विवेक है।

राजकीय शिक्षक संघ के महामंत्री सोहन सिंह माजिला ने कहा, शिक्षक समाज का अंग हैं। उनकी भी अपनी जरूरतें हैं, अपने अधिकार हैं। शिक्षक हमेशा जायज विषयों पर ही पूरे तथ्यों के साथ अपनी आवाज बुलंद करते हैं। उसी पर दबाव भी बनाया जाता है।

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