फोर-जी, फाइव जी के दौर में भी पटरी पर नहीं संचार सेवाएं, कैसे यहां के मतदान केंद्रों पर संपर्क साधेगा आयोग
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 मोबाइल कंपनियां अब फोर जी से फाइव जी की ओर कदम बढ़ा रही हैं वहीं सीमांत क्षेत्रों में संचार सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हैं। स्थिति यह है कि सामरिक दृष्टि से बेहद अहम इन गांवों में मोबाइल टावर लगाने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
विकास गुसाईं, देहरादून। Uttarakhand Vidhan Sabaha Election 2022 उत्तराखंड में जहां मोबाइल कंपनियां अब फोर जी से फाइव जी की ओर कदम बढ़ा रही हैं, वहीं सीमांत क्षेत्रों में संचार सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हैं। स्थिति यह है कि सामरिक दृष्टि से बेहद अहम इन गांवों में मोबाइल टावर लगाने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं। इससे इंटरनेट कनेक्टिविटी तो दूर, मोबाइल फोन पर बात करने तक के लिए ही पर्याप्त सिग्नल नहीं आते। तमाम प्रयासों के बावजूद समस्या का आज तक समाधान नहीं हो पाया। अब प्रदेश में चुनाव होने हैं तो भारत निर्वाचन आयोग के सामने भी इन क्षेत्रों के मतदान केंद्रों से संपर्क साधने की चुनौती खड़ी हो गई है। यही कारण है कि आयोग को अब इन क्षेत्रों में संपर्क स्थापित करने के लिए सेटेलाइट फोन की आवश्यकता पडऩे लगी है। इसके लिए मुख्य राज्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने भारत निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर सेटेलाइट फोन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है।
नहीं मिली अपने हक की बिजली
टिहरी में जब बांध बना तो उम्मीद जताई गई कि पर्वतीय क्षेत्रों के गांव बिजली से जगमगा उठेंगे। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद परिसंपत्तियों का बटवारा हुआ तो लगा कि उत्तराखंड को उसके हक की बिजली मिलेगी, लेकिन उत्तर प्रदेश ने इससे हाथ खींच लिए। प्रदेश में आई सरकारों ने इस मामले में कई बार उत्तर प्रदेश सरकार से बात की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड, दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें आई तो कुछ आशा जगी। इस दौरान दोनों सरकारों के बीच कई दौर की बैठकें हुई। अन्य परिसंपत्तियों के मसले पर तो काफी हद तक सहमति बन चुकी है लेकिन टिहरी बांध की बिजली को लेकर अभी तक स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं हो पाई है। इस कारण स्थिति यह है कि उत्तराखंड को परियोजना क्षेत्र का राज्य होने के नाते अभी भी 12.5 प्रतिशत रायल्टी ही मिल रही है।
फीस एक्ट की घोषणा अभी अधूरी
प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने को प्रदेश सरकार ने फीस एक्ट लागू करने का दावा किया, तो अभिभावकों ने राहत की सांस ली। उम्मीद यह कि उन्हें निजी स्कूलों की मनमानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। न ही स्कूलों से जबरन किताबें और यूनिफार्म खरीदनी पड़ेगी। सरकार ने इस पर वाहवाही लूटी। अब पांच साल गुजर चुके, लेकिन यह फीसद एक्ट अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाया है। दरअसल, सरकार ने शुरुआत में जो एक्ट बनाया, उसमें कड़े मानक थे। कहा गया कि चार साल तक स्कूल फीस में कोई बढ़ोतरी नहीं करेंगे। मानकों को लेकर निजी स्कूलों ने गहरी आपत्ति जताई। निजी स्कूलों के दबाव से सरकार बैकफुट पर आ गई और एक्ट लागू ही नहीं हो पाया। इस बीच कोरोना संक्रमण ने तेजी से सिर उठाया। नतीजतन अभी स्कूल पूरी तरह नहीं खुल पाए हैं। इससे इससे फीस वृद्धि पर थोड़ी लगाम है।
सर्वे तक सिमटा झील में प्लांट
प्रदेश की झीलों व बांधों पर छोटे-छोटे सोलर प्लांट बनाकर ऊर्जा उत्पादन करने और प्रदेश में ऊर्जा के नए स्रोत बनाने को प्रदेश की झीलों में फ्लोटिंग सोलर प्लांट लगाने की योजना बनाई गई। सबसे पहले टिहरी झील में इसे लगाने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि प्लांट टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (टीएचडीसी) से अलग होगा। टिहरी में फ्लोटिंग प्लांट लगाने से पहले इसकी क्षमता निर्धारण का निर्णय लिया गया। इसके लिए बाकायदा एक सर्वे कर रिपोर्ट तलब की गई। यह सर्वे कहां पर होगा, इसके लिए उरेडा, मत्स्य विभाग, पर्यटन, नागरिक उड्डयन व टीएचडीसी के प्रतिनिधियों को समाहित करते हुए एक समिति बनाने की बात हुई। सर्वे के उपरांत इस परियोजना के निर्माण के लिए कार्यदायी संस्था के चयन प्रक्रिया की भी बात हुई। शासन में हुई बैठक में इसका पूरा खाका खींचा गया। बावजूद इसके इस पर अभी तक कोई भी काम नहीं हो पाया है।
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