उत्तराखंड: चुनाव से पहले ही नायक बनने को कांग्रेस में बेचैनी, सियासी हलकों में भी उठने लगे सवाल
साल 2022 में विधानसभा चुनाव के युद्ध का नायक कौन होगा इसे लेकर प्रदेश में कांग्रेस के भीतर अभी से बेचैनी बढ़ने लगी है। इसके साथ ही सियासी हलकों में 2022 में कांग्रेस की वापसी को लेकर अभी से सवाल उठने लगे हैं।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के युद्ध का नायक कौन होगा, इसे लेकर प्रदेश में कांग्रेस के भीतर अभी से बेचैनी बढ़ने लगी है। कुछ दिन पहले प्रदेश में 2002 से लेकर 2019 तक हुए चुनावी युद्ध में खुद को नायक करार देने के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस महासचिव हरीश रावत के बयान के बाद जिसतरह उनके समर्थकों ने 2022 का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ने का मुद्दा उछाला है, उसने पार्टी के भीतर हलचल मचा दी है। इसके साथ ही सियासी हलकों में 2022 में कांग्रेस की वापसी को लेकर अभी से सवाल उठने लगे हैं।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद सियासी रूप से तकरीबन हाशिए पर पहुंच चुकी पार्टी साढ़े तीन साल से ज्यादा समय बाद भी उबर नहीं सकी है। दो साल बाद ही 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी की बुरी गत हो चुकी है। बावजूद इसके पार्टी के भीतर भाजपा की प्रचंड चुनौती का सामना करने के लिए एकजुट कोशिशों पर खेमेबाजी भारी पड़ रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव में अभी सवा साल बचे हैं, लेकिन पार्टी में वर्चस्व की जंग अभी से खुलकर सामने आ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव हरीश रावत समर्थकों ने अभी से ही उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने का मुद्दा उछालकर पार्टी हाईकमान के साथ ही प्रदेश में पार्टी के अन्य नेताओं के सामने चुनौती पेश कर दी है।
दरअसल बीते दिनों कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने अपने पहले उत्तराखंड दौरे में पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को एकजुट होने की हिदायत दी थी। हालांकि उनके जाते ही हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के समर्थक कई मौकों पर एकदूसरे के खिलाफ सोशल मीडिया पर मोर्चा खोल चुके हैं। विरोधियों पर मुखर हैं पूर्व सीएमप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह के गढ़वाल दौरे के दौरान कर्णप्रयाग में जनसभा में थराली उपचुनाव में हार का ठीकरा फोड़े जाने से खफा हरीश रावत विरोधियों पर खासे हमलावर रहे हैं। उनके नेतृत्व पर सवाल उठाने वालों को उन्होंने याद दिलाया कि वह अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत व बागेश्वर में तो वह 1971-72 से चुनावी हार-जीत के लिए जिम्मेदार बन गए थे।
2012 में पार्टी ने उन्हें हेलीकॉप्टर देकर 62 सीटों पर चुनाव अभियान में प्रमुख दायित्व सौंपा था। हरीश रावत के इस बयान को उनके समर्थकों ने यह कहते हुए हवा दे दी कि अगला विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जाना चाहिए। टिकट वितरण में चाहते हैं अहम भूमिकादरअसल हरीश रावत गुट अगले विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में अहम भूमिका निभाना चाहता है। चूंकि प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की राय कई मौकों पर उनसे अलहदा आ चुकी हे, ऐसे में इस मुद्दे पर अंदरूनी टकराव कम होने के बजाय और बढ़ने के संकेत हैं।