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उत्तराखंड: चुनाव से पहले यहां नेता बदल रहे दल, जन समस्याओं का नहीं हो रहा हल

उत्तराखंड में चुनाव से पहले दल बदलने का चलन बढ़ गया है। रोज ही कोई न कोई नेता एक दल से दूसरे दल में का दामन थाम रहा है। जबकि कई कार्यकर्ताओं ने भी प्रत्याशियों की घोषणा के बाद भाजपा और कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 09:09 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 09:09 PM (IST)
उत्तराखंड: चुनाव से पहले यहां नेता बदल रहे दल, जन समस्याओं का नहीं हो रहा हल
उत्तराखंड में चुनाव से पहले दल बदलने का चलन बढ़ गया है।

जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड में चुनाव से पहले दल बदलने का चलन बढ़ गया है। रोज ही कोई न कोई नेता एक दल से दूसरे दल में का दामन थाम रहा है। जबकि, कई कार्यकर्ताओं ने भी प्रत्याशियों की घोषणा के बाद भाजपा और कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है। इस बीच पिछले कई दिनों से नाराजगी जताते हुए कई बड़े नेता भी दल बदल चुके हैं। जिनमें कुछ विधायक भी शामिल हैं। हालांकि, नेताजी अपने फायदे को देखते हुए कभी भी दल बदल लेते हैं, लेकिन जनता की समस्याएं हल करने की याद उन्हें पांच साल तक नहीं आती। जनता आज भी नेताओं द्वारा पूर्व में किए वादे पूरा न होने पर खुद को ठगा महसूस कर रही है। उन्‍हें उम्‍मीद है कि इस बार क्षेत्र और राज्‍य का विकास होगा।

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उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती चल रही है। भाजपा-कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दलों में प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। जिसके बाद से सभी प्रमुख दलों में विरोध के स्वर भी फूट रहे हैं। कोई पार्टी के फैसले पर नाराजगी जता रहा है तो कोई अपने टिकट के लिए एक दल को छोड़ दूसरे का हाथ पकड़ रहे हैं। दरअसल, विधानसभा चुनाव से पहले निष्ठा बदलकर दूसरे दल में शामिल होने का सिलसिला चंद माह पूर्व ही शुरू हो चुका था। भाजपा के दो विधायक यशपाल आर्य व उनके पुत्र संजीव आर्य कांग्रेस में वापस लौटे तो कांग्रेस के पुरोला सीट से विधायक राजकुमार ने भाजपा में वापसी की।

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दो निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार व राम सिंह कैड़ा भी भाजपा में शामिल हुए। इसके बाद भाजपा ने हरक सिंह रावत को पार्टी से निष्कासित किया तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। हालांकि, भाजपा के कुछ बड़े नेता टिकट न मिलने से भी नाराज हैं और कोई निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं तो कोई कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भी भाजपा की शरण ले ली है। इसके अलावा दर्जनों कार्यकत्र्ता भी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए एक दल से दूसरे दल में कूद रहे हैं।

भाजपा की ओर से 11 सिटिंग विधायकों का टिकट काटे जाने के बाद विरोध के स्वर और मुखर हो रहे हैं। भाजपा नेतृत्व के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने वाले विधायकों में देशराज कर्णवाल, सुरेंद्र सिंह नेगी, मुन्नी देवी, धन सिंह नेगी, मुकेश कोली, रघुनाथ सिंह चौहान, महेश नेगी, नवीन दुम्का, राजकुमार ठुकराल, बलवंत सिंह भौर्याल, मीना गंगोला शामिल हैं। जिन्हें साधना भाजपा आला कमान के लिए चुनौती बन रहा है।

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