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श्रावणी पर्व पर किया गया छात्रों का उपनयन संस्कार

रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा पर श्री जयराम संस्कृत महाविद्यालयों में 54वां उपनयन संस्कार कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में ऋषि कुमारों ने स्वस्तिवाचन व श्लोक पाठ किया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 06:12 AM (IST)
श्रावणी पर्व पर किया गया छात्रों का उपनयन संस्कार
श्रावणी पर्व पर किया गया छात्रों का उपनयन संस्कार

जागरण संवाददाता, ऋषिकेश : रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा पर श्री जयराम संस्कृत महाविद्यालयों में 54वां उपनयन संस्कार कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में ऋषि कुमारों ने स्वस्तिवाचन व श्लोक पाठ किया।

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सोमवार को श्री जयराम आश्रम के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी, महाविद्यालय के प्रधानाचार्य पंडित मायाराम रतूड़ी के सानिध्य में ऋषि कुमारों ने प्रात: काल गंगा स्नान करने के बाद यज्ञोपवीत धारण किया। श्री जयराम आश्रम गद्दी में आयोजित पूजन कार्यक्रम में ऋषि कुमारों ने स्वस्तिवाचन के साथ उपनयन संस्कार कार्यक्रम संपन्न कराया। संस्था के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म में उपनयन संस्कार का बड़ा महत्व है। इस दिन से ही ऋषि कुमारों को उपनयन धारण कर वेद अध्ययन का अधिकार प्राप्त होता है। यही कारण है कि श्रावणी पूर्णिमा के रोज संस्कृत दिवस मनाने की परंपरा रही है। प्रधानाचार्य मायाराम शास्त्री ने बताया कि श्रावण मास की पूर्णिमा महत्वपूर्ण होती है। एक ओर जहां इस दिन रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इस दिन श्रावणी उपाकर्म भी किया जाता है। श्रावणी उपाकर्म संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रावणी उपाकर्म वैदिक ब्राह्मणों को वर्ष भर में आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है। वैदिक परंपरा अनुसार वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार है। उन्होंने बताया कि इस दिन यजमानों के लिए कर्मकांड यज्ञ, हवन आदि करने की जगह खुद अपनी आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक और हवन किए जाते हैं। इस अवसर पर पंडित प्रदीप शर्मा, पंडित सुबीर शर्मा, अशोक शर्मा, बीएम बडोनी आदि मौजूद रहे।

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भारतीय संस्कृति की आत्मा है संस्कृत भाषा

ऋषिकेश: श्रावणी उपाकर्म में श्री दर्शन महाविद्यालय में आयोजित गोष्ठी में महाविद्यालय ट्रस्ट के अध्यक्ष बंशीधर पोखरियाल ने कहा कि संस्कृत भारतीय जनमानस, भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म की आत्मा है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अपने गहन अध्ययन से इस भाषा में प्रकृति संरक्षण, आयुर्वेद और विज्ञान का ज्ञान संसार को दिया है। उन्होंने प्राचीन ग्रंथों के शोध व मनन की आवश्यकता पर जोर दिया। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राधा मोहन दास ने कहा कि संस्कृत भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संसार की सर्वोच्च उच्चकोटी की भाषा है। संस्कृत भाषा में संधि और सूत्र ग्रंथों का अतुलनीय उपहार विश्व को दिया गया है। इस अवसर पर आचार्य शांति प्रसाद नैथानी, हरीश सिलस्वाल, पूर्णानंद रियाल, गोपीचंद सिंह असवाल, अनूप रावत आदि मौजूद थे।


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