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उत्तराखंड में विभूतियों पर भाजपा ने कांग्रेस को पछाड़ा, पढ़िए पूरी खबर

विभूतियों के नाम पर विभिन्न योजनाएं शुरू करने के मामले में मौजूदा भाजपा सरकार ने पिछली कांग्रेस सरकार को पीछे छोड़ दिया है।

By Edited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 09:52 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 01:40 PM (IST)
उत्तराखंड में विभूतियों पर भाजपा ने कांग्रेस को पछाड़ा, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में विभूतियों पर भाजपा ने कांग्रेस को पछाड़ा, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड की विभूतियों के नाम पर विभिन्न योजनाएं शुरू करने के मामले में मौजूदा भाजपा सरकार ने पिछली कांग्रेस सरकार को पीछे छोड़ दिया है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और फिर इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में शामिल रहे डॉ भक्तदर्शन के नाम पर प्रदेश की भाजपा सरकार ने उच्च शिक्षा गौरव पुरस्कार प्रारंभ कर कांग्रेस को सियासी तौर पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। 

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, शहीद सैनिकों समेत राज्य के महापुरुषों के नाम पर शिक्षण संस्थाओं के नामकरण की योजना पर पिछली कांग्रेस सरकार ने तेजी से काम शुरू तो किया, लेकिन इसे नियोजित तरीके से आगे नहीं बढ़ाया जा सका था। प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने महापुरुषों के नाम पर विभिन्न सरकारी कार्यालयों, शिक्षण संस्थाओं और पुरस्कारों की घोषणा को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। सचिवालय से इसकी शुरुआत की जा चुकी है। 
इस कड़ी में सरकार ने देश और उत्तराखंड की विभूतियों में शुमार और पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री भक्तदर्शन के नाम पर उच्च शिक्षा गौरव पुरस्कार शुरू किया है। आजादी के आंदोलन में कई दफा गए जेल पौड़ी जिले की सांबली पट्टी के भौराड़ गांव के मूल निवासी भक्तदर्शन का जन्म 12 फरवरी 1912 को गोपाल सिंह रावत के घर हुआ था। 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में डॉ. भक्तदर्शन स्वयंसेवक बने थे। 1930 में नमक आंदोलन के दौरान उन्होंने पहली बार जेल यात्रा की थी। 
इसके बाद वह 1941, 1942, 1944 व 1947 तक कई बार जेल भी गए। 1952 में लोकसभा में गढ़वाल का प्रतिनिधित्व करते हुए चार बार इस सीट पर जीत दर्ज की। 1963 और 1971 तक वह जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री व इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। केंद्रीय शिक्षा मंत्री के रूप में उन्हें केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना का श्रेय जाता है। उनका निधन 30 अप्रैल 1991 को देहरादून में हुआ था। उन्होंने त्रिभाषी फार्मूला को महत्व दिया। 1971 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया था। डॉ भक्तदर्शन ने कई उपयोगी ग्रंथ लिखे और संपादित भी किए।

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