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Tibet and Arunachal Pradesh News: तिब्बत की ग्लेशियर झीलें अरुणाचल में लाती हैं तबाही, जा‍निए क्‍या है वजह

Tibet and Arunachal Pradesh News अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ से होने वाली तबाही की वजह तिब्बत की ग्लेशियर झीलें हैं। जब यह फटती हैं अरुणाचल तक बाढ़ का रूप रौद्र हो जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी में एक हजार साल में एक बार महाप्रलय जैसी बाढ़ आती है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 06:53 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 07:05 PM (IST)
Tibet and Arunachal Pradesh News:  तिब्बत की ग्लेशियर झीलें अरुणाचल में लाती हैं तबाही, जा‍निए क्‍या है वजह
इस बात का पता वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजा अध्ययन में सामने आया।

देहरादून, सुमन सेमवाल। Tibet and Arunachal Pradesh News अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ से होने वाली तबाही की वजह तिब्बत की ग्लेशियर झीलें हैं। जब यह फटती हैं तो अरुणाचल प्रदेश तक बाढ़ का रूप रौद्र हो जाता है। इस बात का पता वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजा अध्ययन में सामने आया। अध्ययन के मुताबिक ब्रह्मपुत्र नदी में सामान्य से अधिक क्षमता की बाढ़ के अलावा करीब एक हजार साल में एक बार महाप्रलय के समान बाढ़ आती है। उस समय पानी की मात्रा करीब एक करोड़ लीटर प्रति सेकेंड रहती है। हालांकि, अध्ययन से पहले बाढ़ की वजह सिर्फ अतिवृष्टि को ही माना जाता रहा है।

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव के मुताबिक पिछले साल अरुणाचल प्रदेश में बाढ़ का पानी बेहद काला हो गया था। यह भी कहा जा रहा था कि शायद यह चीन की हरकत है। इसी बात की तह तक जाने के लिए वाडिया संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव के नेतृत्व में संदीप पांडा, अनिल कुमार, सौरभ सिंघल आदि की टीम ने अरुणाचल प्रदेश से लेकर तिब्बत की सीमा तक नदी क्षेत्र का अध्ययन शुरू कर दिया था। डॉ. श्रीवास्तव के मुताबिक ब्रह्मपुत्र नदी कैलास मानसरोवर से निकलती है और तिब्बत में इसे त्सांगपो के नाम से जाना जाता है। भारत की सीमा में यह नामचे बरवा के पास गेलिंग से आगे बढ़ती है।

लिहाजा, वाडिया के विज्ञानियों ने गेलिंग से लेकर पासीघाट (अरुणाचल प्रदेश) के बीच सात स्थानों पर नदी में बाढ़ के पांच से 15 फीट तक के मलबे का अध्ययन किया। पता चला कि अरुणाचल प्रदेश की बाढ़ का संबंध तिब्बत की ग्लेशियर झीलों से है। वहीं, बाढ़ के अवशेष (रेत, मिट्टी आदि) की ल्यूमिनेसेंस डेटिंग कराई गई। इससे यह बात भी सामने आई कि पिछले सात हजार साल से लेकर एक हजार साल तक ब्रह्मपुत्र नदी में सात बार भीषण बाढ़ (मेगा फ्लड) आ चुकी हैं। एक तरह से यह भीषण बाढ़ का क्रम भी है।

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इन स्थानों पर किया अध्ययन

रानाघाट, पैंगिन, जेकू, यिंकियोंग, बोमदाओ, टूटिंग, त्सांग जॉर्ज।

200 मीटर तक की ऊंचाई तक बाढ़ के अंश

वाडिया संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि ऐतिहासिक बाढ़ की भाषणता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके अंश 200 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए गए हैं। एक तरह से अरुणाचल प्रदेश का बड़ा हिस्सा बाढ़ से जमा मिट्टी से बना है। बाढ़ यह पानी असोम तक को प्रभावित करता है। तिब्बत भारत के नियंत्रण में नहीं है और ग्लेशियर झीलों को टूटने से रोकना संभव नहीं। ऐसे में अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र में बाढ़ के अनुरूप ही आपदा प्रबंधन के काम करने होंगे। 

कुछ दशकों में आई सामान्य से अधिक बाढ़

वर्ष 1950, 1954, 1962, 1994 व वर्ष 2000 में सामान्य से अधिक क्षमता की बाढ़ आने का पता भी वाडिया संस्थान की टीम ने लगाया है। इनका संबंध भी तिब्बत की ग्लेशियर झीलों से पाया गया।

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