उत्तराखंड: अदालत में उछल रहा कुलपतियों की नियुक्तियों का मसला, जानिए श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय का मामला
सरकार की भृकुटि तनी और श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति डा पीपी ध्यानी जांच के दायरे में आ गए। हालांकि प्रदेश में कुलपतियों की नियुक्तियों का मसला इन दिनों अदालत में उछल रहा है। हाईकोर्ट कुलपति के चयन की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर चुका है।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। सरकार की भृकुटि तनी और श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति डा पीपी ध्यानी जांच के दायरे में आ गए। हालांकि प्रदेश में कुलपतियों की नियुक्तियों का मसला इन दिनों अदालत में उछल रहा है। हाईकोर्ट कुलपति के चयन की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर चुका है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि सरकार इस मामले में शिकायत मिलते ही उस पर जांच कराने में देर नहीं कर रही है। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के मामले में ऐसा ही हुआ।
बीते सोमवार को हिमालयन वाइस चांसलर कान्क्लेव से कुलपति डा ध्यानी कान्क्लेव जैसे ही निपटे, उधर पता चला कि उनके खिलाफ शासन ने जांच शुरू कर दी है। यह जानकारी मिलते ही कुलपति के पैरों तले जमीन खिसक गई। छात्र संगठन आर्यन की ओर से लगाए गए कुलपति डा ध्यानी के चयन में गड़बड़ी के आरोपों को उच्च शिक्षा मंत्री ने गंभीरता से लिया और जांच के आदेश दे दिए।
कोरोना ने बढ़ाई चिंता
कोरोना संक्रमण दोबारा बढ़ने के अंदेशे ने प्रदेश के शिक्षण संस्थानों की चिंता बढ़ा दी है। कोरोना के नए वैरिएंट को देखते हुए मशीनरी को सतर्क किया जा चुका है। शिक्षण संस्थानों में कोरोना की जांच के निर्देश दिए गए हैं। प्रदेश में शिक्षण संस्थानों को आफलाइन मोड में चलते हुए ज्यादा वक्त नहीं हुआ है। करीब तीन माह पहले स्कूल-कालेज खोले गए हैं। कोरोना के खतरे को देखते हुए जारी की गई नई एसओपी में शिक्षण संस्थाओं पर ज्यादा ध्यान दिया गया है तो इसकी वजह भी है। 18 वर्ष से कम आयु के छात्र-छात्राओं के टीकाकरण का अभी तक बंदोबस्त नहीं हो सका है। संक्रमण बढ़ता है तो शिक्षण संस्थान दोबारा बंद करने की नौबत आ सकती है। नई एसओपी में कोरोना जांच पर जोर देने के बाद कुछ निजी विश्वविद्यालयों ने दोबारा और स्कूलों ने आनलाइन पढ़ाई की राह पकड़ ली है। नजरें अब हालात पर टिकी हैं।
भर्तियों पर भ्रम दूर
सहायताप्राप्त अशासकीय विद्यालयों में प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों और प्रधानाचार्यों के रिक्त पदों पर नई भर्तियों को लेकर भ्रम पैदा हो गया था। दरअसल कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने अशासकीय विद्यालयों के प्रधानाचार्यों की मांग का समर्थन करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। उन्होंने इन विद्यालयों में कार्यरत प्रधानाचार्यों को डाउनग्रेड वेतनमान देने के समर्थन में पत्र लिखा था। पत्र पर मुख्यमंत्री ने टिप्पणी अंकित की कि इस संबंध में परीक्षण कर कार्यवाही की जाए। निर्देशों का यह आशय निकाला गया कि मामले का परीक्षण होने तक इन विद्यालयों में भर्तियों पर रोक रहेगी। भ्रम फैलते ही शासन ने आदेश जारी कर स्पष्ट किया कि नई भर्तियां जारी रखी जाएगी। दरअसल बीते अक्टूबर माह में शासन ने इन विद्यालयों में बंद पड़ी भर्तियों को हरी झंडी दिखाई है। बंद पड़ी भर्तियों को खोलने के साथ शासन ने अब यह भी साफ कर दिया है कि नई भर्तियों भी की जा सकेंगी।
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मंत्रीजी की आपत्ति दरकिनार
सरकार और शिक्षा विभाग पर प्रदेश में नई शिक्षा नीति लागू करने का दबाव है तो दूसरी ओर से इस काम के लिए टीम खड़ी करने में दिक्कतें भी बरकरार हैं। नई शिक्षा नीति केंद्र की मोदी सरकार की महत्वपूर्ण योजना है। चुनाव से पहले इस नीति पर कुछ कदम बढ़ाने की तैयारी है। खासतौर पर जिन मामलों में वित्तीय भार नहीं पडऩा है, उन्हें अमल में लाया जा सकता है। इसे ध्यान में रखकर शासन के निर्देश पर विभाग ने नई शिक्षा नीति प्रकोष्ठ गठित किया। प्रकोष्ठ में दूरदराज से शिक्षकों व अधिकारियों की तैनाती पर शिक्षा मंत्री ने आपत्ति जताई। उनका तर्क है कि प्रकोष्ठ में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध शिक्षकों व अधिकारियों की तैनाती होनी चाहिए। उन्होंने अपनी आपत्ति से अवगत भी करा दिया। इधर शासन पर नई नीति लागू करने का दबाव इस कदर है कि प्रकोष्ठ की मदद के लिए एक नोडल व दो सहायक नोडल अधिकारियों की तैनाती कर दी गई है।
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