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उत्तराखंड में कागजों में है हरियाली, धरातल पर गायब

हर साल औसतन 1.784 करोड़ पौधों का रोपण और फिर भी धरातल से हरियाली गायब। बीते पांच वर्षों में वन विभाग द्वारा कराए गए पौधरोपण को लेकर तो यही तस्वीर उभरती है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 04:51 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jul 2020 08:39 PM (IST)
उत्तराखंड में कागजों में है हरियाली, धरातल पर गायब
उत्तराखंड में कागजों में है हरियाली, धरातल पर गायब

देहरादून, राज्य ब्यूरो। हर साल औसतन 1.784 करोड़ पौधों का रोपण और फिर भी धरातल से हरियाली गायब। उत्तराखंड में बीते पांच वर्षों में वन विभाग द्वारा कराए गए पौधरोपण को लेकर तो यही तस्वीर उभरती है। साफ है कि जिस हिसाब से पौधे लग रहे, उस अनुपात में वे जिंदा नहीं रह पा रहे। इसकी न तो ठीक से मॉनीटङ्क्षरग हो रही और न इसे गंभीरता से लिया जा रहा। यानी सिस्टम की नीति और नीयत में कहीं न कहीं खोट है।

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उत्तराखंड के अस्तित्व में आने बाद पिछले 20 वर्षों से वन महकमा हर साल बड़े पैमाने पर पौधरोपण कर रहा है। इस लिहाज से हरियाली का दायरा बढऩा चाहिए था, मगर ऐसा है नहीं। रोपे गए पौधों में में से 40 से 50 फीसद मर जा रहे हैं। बीते पांच वर्षों को ही लें तो इस अवधि में 8.92 करोड़ पौधे लगे, इनमें से कितने जीवित रहे इसका कोई जवाब देने को तैयार नहीं।

हालांकि, पौधों के जिंदा रहने की दर कम होने के पीछे देखभाल के लिए पर्याप्त बजट का अभाव, वन्यजीवों व मवेशियों से क्षति, भूस्खलन, जंगल की आग जैसे कारण गिनाए जाते हैं, मगर ये भी हकीकत है कि एक बार पौधे लगाने के बाद उनकी तरफ झांकने की जहमत नहीं उठाई जाती। नतीजतन पौधरोपण के अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे।

ऐसे में जंगल हरे-भरे कैसे होंगे, यह एक बड़ा सवाल है। यही नहीं, वन क्षेत्रों में कहां और कितने पौधे लगे, इन्हें सुरक्षित रखने को क्या-क्या कदम उठाए गए, रोपे गए पौधे जिंदा हैं या नहीं, ऐसे तमाम सवालों को लेकर वन महकमे में बाकायदा मॉनीटङ्क्षरग सेल है। पौधरोपण की स्थिति जांचना उसकी जिम्मेदारी का हिस्सा है, मगर इक्का-दुक्का निरीक्षण कर कर्तव्य की इतिश्री कर दी जा रही है।

यही नहीं, वन महकमे ने रोपित पौधों के जीवित रहने की दर कम रहने के मद्देनजर पूर्व में पौधरोपण की नीति में बदलाव का निश्चय किया। इसके तहत पर्वतीय क्षेत्रों में सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन पर जोर देने की बात कही, मगर यह कहीं कागजों में सिमटकर रह गई। इसके साथ ही पौधरोपण में फर्जीवाड़ा रोकने के मद्देनजर ड्रोन से निगहबानी का दावा हुआ, मगर इसे भी धरातल पर उतरने का इंतजार है। साफ है कि सिस्टम को अपनी नीति और नीयत में सुधार करना होगा, तब जाकर ही पौधरोपण के लक्ष्य में सफलता पाई जा सकती है।

पिछले पांच सालों में पौधरोपण

  • वर्ष----------रोपित पौधे (करोड़ में)
  • 2019-20------2.01
  • 2018-19------1.79
  • 2017-18------1.89
  • 2016-17------1.66
  • 2015-16------1.57

वन विभाग इस वर्ष का लक्ष्य

  • योजना--------------------------क्षेत्रफल--------पौधों की संख्या
  • क्षतिपूरक वनीकरण (कैंपा)----3000-------------48
  • एनपीवी व अन्य (कैंपा)-------1288-------------12.95
  • जायका---------------------------3633-----------25.83
  • नमामि गंगे-----------------------881--------------8.81
  • बहुद्शेयीय पौधरोपण----------3080-------------33.88
  • नेशनल बैंबू मिशन-------------500---------------2.5
  • बांस व जैव ईंधन--------------170----------------0.85
  • ग्रीन इंडिया मिशन-----------5433---------------46
  • (नोट: क्षेत्रफल हेक्टेयर, संख्या लाख में)

वन महोत्सव: पौधे लगाने की मुहिम का आगाज

71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में बुधवार से वन महोत्सव का आगाज हो गया। हालांकि, कोरोना संकट के चलते इसकी गति धीमी रही, लेकिन पौधरोपण अभियान की शुरुआत हो गई है। सात जुलाई तक चलने वाले महोत्सव के तहत गांव से लेकर शहर और सार्वजनिक स्थलों से लेकर जंगलों तक विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण किया जाएगा।

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वन महोत्सव के साथ ही वर्षाकालीन पौधरोपण की शुरुआत होती है। सप्ताहभर तक यह मुहिम चलती है और फिर पूरे वर्षाकाल तक विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण किया जाता है। इस मर्तबा कोरोना संकट के चलते वन महोत्सव पर बड़े आयोजन नहीं हुए, मगर सुरक्षित शारीरिक दूरी के मानकों का पालन कर जगह-जगह पौधे लगाने की मुहिम शुरू कर दी गई। आने वाले दिनों में इस मुहिम में वन विभाग के साथ ही विभिन्न विभाग, संस्थाएं और लोग जुटेंगे, ताकि हरियाली को और बढ़ाया जा सके।

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