उत्तराखंड- जान ले रहे ये झोलाछाप, तंत्र कार्रवाई को लेकर बना हुआ है लापरवाह
राज्य में तमाम झोलाछाप बिना किसी प्रशिक्षण और योग्यता के इलाज कर रहे हैं। दूसरी तरफ तंत्र इन झोलाछापों पर कार्रवाई को लेकर लापरवाह बना हुआ है। इसी का नतीजा रहा कि सोमवार को ऋषिकेश के मुनिकीरेती क्षेत्र में एक झोलाछाप के गलत इलाज ने युवक की जान ले ली।
विजय मिश्रा, देहरादून: राज्य में तमाम झोलाछाप बिना किसी प्रशिक्षण और योग्यता के इलाज कर रहे हैं। दूसरी तरफ, तंत्र इन झोलाछापों पर कार्रवाई को लेकर लापरवाह बना हुआ है। इसी का नतीजा रहा कि सोमवार को ऋषिकेश के मुनिकीरेती क्षेत्र में एक झोलाछाप के गलत इलाज ने युवक की जान ले ली। अब इस झोलाछाप की जोर-शोर से तलाश हो रही है। सवाल यह है कि ऐसी कवायद हादसों से पहले क्यों नहीं की जाती? ऐसे व्यक्तियों पर कार्रवाई के लिए पूरा एक तंत्र है, बावजूद इसके राज्य में झोलाछापों की दुकान कैसे चल रही है। साफ है कि इस दिशा में स्वास्थ्य विभाग को और अधिक संजीदगी के साथ काम करने की जरूरत है। ऐसे मामलों में दोषी व्यक्ति पर कड़ी कार्रवाई करने के साथ उन अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए, जिनके कंधों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है। समाज के स्तर पर भी जागरूकता की आवश्यकता है।
चुनाव से लगता है डर
विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही राज्य में मशीनरी इसकी तैयारी में जुट गई है। कार्मिकों की चुनाव ड्यूटी लगाने के साथ निर्वाचन को लेकर उनका प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया गया है। प्रयास है कि जल्द से जल्द हर व्यवस्था पुख्ता कर ली जाए। लेकिन, हर जिले में निर्वाचन प्रशिक्षण में कार्मिकों की अनुपस्थिति के मामले सामने आ रहे हैं। तमाम कार्मिक चुनाव ड्यूटी से नाम कटवाने के लिए जुगत भिड़ाने में जुट गए हैं। इसके लिए तरह-तरह के बहाने बनाए जा रहे हैं। ऐसे कार्मिकों को अपनी जिम्मेदारी का बोध करना चाहिए। चुनाव को बिना किसी व्यवधान के संपन्न कराना सिर्फ सरकार या शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी ही नहीं है। सरकारी कार्मिकों समेत हर नागरिक का कर्तव्य है कि आवश्यकतानुसार इसमें सहभागिता करे। सरकारी कार्मिकों के जच्बे और अथक श्रम से ही आजादी के बाद से अब तक देश में विभिन्न चुनाव संपन्न होते आए हैं।
पथरीली डगर पर चुनावी सफर
कोरोना के चलते फिलहाल रैली, जनसभा जैसे भीड़भाड़ वाले आयोजनों पर रोक है। वर्चुअल और डोर टू डोर चुनाव प्रचार ही किया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में संचार सुविधा है, वहां तो नेताजी का संदेश जनता तक आसानी से पहुंच जा रहा है। लेकिन, संचार विहीन क्षेत्रों में इस काम के लिए नेताजी को खुद दौड़ लगानी पड़ रही है। बात चुनाव की है, सो नेताजी का जोश हाई है। पहाड़ की पथरीली डगर पर भी उनके कदम डगमगा नहीं रहे। रोज कई किलोमीटर का सफर तय कर गांव-गांव पहुंच रहे हैैं। पहाड़ के लोग भी नेताजी को अपने बीच देखकर खुश हैैं। आशीर्वाद भी दे रहे हैैं। इस उम्मीद में कि चुनाव के बहाने ही सही, नेताजी गांव तक आए हैं तो उनकी परेशानियों से भी रूबरू हो ही गए होंगे। अब देखने वाली बात होगी कि नेताजी को चुनाव के बाद ये पगडंडियां याद आती हैं या नहीं।
यह भी पढ़ें- Dehradun Corona Update: देहरादून में साप्ताहिक कोरोना संक्रमण दर 16 प्रतिशत के पार, जानिए यहां कितने सक्रिय मामले
पहचान मिले तो बात बने
जीआइ टैग यानी किसी उत्पाद की भौगोलिक पहचान, जो दर्शाता है कि वह उत्पाद एक विशिष्ट क्षेत्र से आता है। उत्तराखंड में ऐसे खास उत्पादों की भरमार है। देश-दुनिया में इनकी अच्छी मांग भी है। बावजूद इसके इन उत्पादों को अपनी पहचान नहीं मिल पा रही। खासकर, उत्तरकाशी जिले के हर्षिल में उगने वाले सेब को। जो विशिष्ट माना जाता है। बावजूद इसके देश-दुनिया को इसके बारे में कम ही मालूम है, क्योंकि उत्तराखंड का सेब हिमाचल की पेटियों में बिक रहा है। इस दिशा में तंत्र अब संजीदा नजर आ रहा है। विश्व को उत्तराखंड के सेब से रूबरू कराने के लिए गत वर्ष सितंबर में देहरादून में अंतरराष्ट्रीय सेब फेस्टिवल आयोजित किया गया था। उत्तराखंड के सेब को देश-दुनिया में पहचान दिलाने के लिए इसके अतिरिक्त भी प्रयास करने होंगे। अपनी पहचान मिलने से न सिर्फ इसकी मांग बढ़ेगी, बल्कि प्रदेश में रोजगार के अतिरिक्त दरवाजे भी खुलेंगे।