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चिउड़ा की महक बता रही है कि बूढ़ी दिवाली नजदीक

साहिया देश में मनाई जाने वाली दीपावली के ठीक एक माह बाद जौनसार के 200 गांवों में मनाई जाने वाली बूढ़ी दीपावली की तैयारी जोरों पर है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 04 Dec 2020 10:10 PM (IST)Updated: Fri, 04 Dec 2020 10:10 PM (IST)
चिउड़ा की महक बता रही है कि बूढ़ी दिवाली नजदीक
चिउड़ा की महक बता रही है कि बूढ़ी दिवाली नजदीक

संवाद सूत्र, साहिया: देश में मनाई जाने वाली दीपावली के ठीक एक माह बाद जौनसार के 200 गांवों में कहीं पर 12 तो कहीं पर 13 दिसंबर से पांच दिवसीय बूढ़ी दीपावली का जश्न शुरू हो जाएगा। पांच दिन तक पंचायती आंगन जौनसार की अनूठी लोक संस्कृति से गुलजार रहेंगे। बूढ़ी दीपावली के चलते स्थानीय बाजारों के साथ ही विकासनगर में खरीदार उमड़ने लगे हैं, जिससे व्यापारियों के चेहरे खिले हुए हैं। भीड़ बढ़ने से बाजारों में जाम की स्थिति बनने लगी है। बाहर नौकरी व व्यवसाय करने वाले परिवारों ने भी अपने पैतृक गांव आने की तैयारियां कर ली है।

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देहरादून जिले की तीन तहसीलों कालसी, चकराता व त्यूणी और दो विकास खंड कालसी व चकराता में बंटे जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर अपनी अनूठी लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहां के तीज त्योहार, शादी समारोह को मनाने के तरीके भी निराले हैं। देशभर में मनाई जाने वाली दीपावली के ठीक एक माह बाद जनजाति क्षेत्र में पांच दिन की बूढ़ी दीपावली मनाने का रिवाज है। हालांकि बावर में देश के साथ दीपावली मनाई जा चुकी है, जौनसार के कुछ गांवों में भी नई दीपावली मनाई गई थी, लेकिन जौनसार के गांवों में दिसंबर में बूढ़ी दीपावली का जश्न रहेगा। जिसके लिए घर घर चिउड़ा तैयार होने से हर घर से उठ रही महक बता रही है कि दिवाली नजदीक है। बुजुर्गों का मानना है कि भगवान श्रीराम के अयोध्या आने की सूचना पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण लोगों को देर से मिली, जबकि कई का तर्क है कि जिस समय पूरे देश में दीपावली होती है तो पर्वतीय क्षेत्र में खेतों में काम अधिक होता है। खैर कारण कुछ भी हो जौनसार के साथ ही हिमाचल के सिरमौर जिले व टिहरी के रवाईं में भी कई जगह बूढी दीपावली मनायी जाती है।

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चकराता: जौनसार के 200 गांवों, खेड़ों व मजरों में पांच दिन की बूढ़ी दीपावली का जश्न होगा। पहले दिन छोटी दीपावली, दूसरे दिन आंवोस, तीसरे दिन भिरूडी मनाने के बाद ही गांव में अलग-अलग दिनों में दीपावली की विदाई होती है। भिरूडी के दिन हर परिवार के लोग कुल देवता के दर्शनों के लिए मंदिरों में जाते हैं, इसमें चिऊड़ा परोसा जाता है। मीठी रोटी गुडोई को भी परोसा जाता है। पर्व के खास लोक गीत भी बूढ़ी दीपावली को सुनने को मिल जाते हैं। विलुप्त हो रहे बुडियात के गीत व कई वाध्य यंत्रों की थाप भी इस पर्व पर सुनाई दे जाती है। ग्रामीण जगत सिंह, फतेह सिंह, नारायण सिंह, केदार सिंह, हंसराम, प्रेम सिंह, जवाहर सिंह आदि का कहना है कि पहले बूढी दीपावली का जश्न सात दिन तक चलता था, लेकिन समय के साथ अब जश्न पांच दिन तक ही चलता है।

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हर घर से चिउड़ा मूडी की महक

साहिया: जौनसार के गांवों में हर घर से विशेष व्यंजन चिउडा की उठ रही महक अहसास करा रही है कि बूढ़ी दीपावली नजदीक है। विशेष व्यंजन तैयार करने को ग्रामीण महिलाओं में विशेष उत्साह दिखाई दे रहा है। जौनसार के गांवों में ओखली में धान कूटने व भूनकर चिउड़ा मूडी तैयार करने का क्रम तेज हो गया है। चिउड़ा मूडी बूढी दीपावली का विशेष व्यंजन है। पर्व पर हर गांव के पंचायती आंगन में लोक संस्कृति की छटा दिखाई देगी। अतिथि देवो भव: बूढ़ी दीपावली पर मेहमाननवाजी के रूप में देखने लायक होती है। जौनसारी दीपावली में सभी लोग मिलजुल कर पर्व के जश्न का हिस्सा बनते हैं। दीपावली में दूरदराज क्षेत्र में ब्याही बहू-बेटियां मायके आती हैं और लोक नृत्य व गीत गाकर पर्व की खुशियां मनाती हैं। खास बात यह है कि जौनसार की बूढी दीपावली इको फ्रेंडली होती है। यहां पर पटाखे नहीं जलाए जाते। प्रदूषण रहित दीपावली मनाने के साथ ही परंपराओं का पूरा ख्याल रखा जाता है। लकड़ी जलाकर हुलियात के रूप में जश्न की शुरूआत होती है।


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