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देहरादून में लटके 3000 से अधिक दाखिल खारिज, जुलाई से भटक रहे लोग

फिलहाल राजस्व वादों की बात छोड़ भी दें तो दाखिल खारिज वह कार्य है जिसको लेकर आम व्यक्ति सर्वाधिक चिंतित नजर आता है।राजस्व न्यायालयों में लंबित तमाम वादों से हाथ खींचने के साथ ही तहसीलों में दाखिल खारिज भी बंद कर दिए गए हैं।

By Sumit KumarEdited By: Published: Mon, 06 Sep 2021 07:10 AM (IST)Updated: Mon, 06 Sep 2021 07:10 AM (IST)
देहरादून में लटके 3000 से अधिक दाखिल खारिज, जुलाई से भटक रहे लोग
देहरादून तहसील सदर में जुलाई प्रथम सप्ताह से दाखिल खारिज नहीं किए जा रहे हैं।

सुमन सेमवाल, देहरादून: संजय गुप्ता बनाम आयुक्त गढ़वाल मंडल में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि लैंड रेवेन्यू (एलआर एक्ट) में जो कार्य राजस्व विभाग करता है, वह नगर निकाय की सीमा में म्यूनिसिपल कार्पोरेशन एक्ट-1975 के तहत किए जाएंगे। इस एक्ट के तहत खसरा-खतौनी से लेकर दाखिल खारिज आदि के मामले आते हैं। लिहाजा, राजस्व न्यायालयों में लंबित तमाम वादों से हाथ खींचने के साथ ही तहसीलों में दाखिल खारिज भी बंद कर दिए गए हैं।

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राजस्व वादों के लिए नागरिकों के समक्ष सिविल न्यायालय के दरवाजे खुले हैं, मगर दाखिल खारिज के दरवाजे बंद हो गए हैं। देहरादून तहसील सदर में जुलाई प्रथम सप्ताह से दाखिल खारिज नहीं किए जा रहे हैं और अब तक शहरी क्षेत्र में 3000 से अधिक दाखिल खारिज लटक गए हैं।

फिलहाल राजस्व वादों की बात छोड़ भी दें तो दाखिल खारिज वह कार्य है, जिसको लेकर आम व्यक्ति सर्वाधिक चिंतित नजर आता है। आम व्यक्ति खून-पसीने की कमाई लगाकर जमीन का एक टुकड़ा खरीदता है और फिर खुद के अधिकार सुरक्षित रखने के लिए उसका एक ही जतन होता है कि किसी तरह दाखिल खारिज हो जाए। हाई कोर्ट के आदेश के क्रम में दाखिल खारिज के आवेदन जितनी तेजी से निरस्त किए जा रहे हैं, उतनी सक्रियता नागरिकों के लिए दूसरी व्यवस्था अपनाने में नहीं दिखाई जा रही।

इस मामले में शासन का रुख सर्वाधिक उदासीन दिख रहा है। एक तरफ हाई कोर्ट के आदेश पर दाखिल खारिज नहीं किए जा रहे और दूसरी तरफ नगर निकायों को अधिकार सौंपने के लिए कोर्ट के आदेश का पालन भी नहीं किया जा रहा है।

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जमीन धोखाधड़ी के मामले बढऩे की आशंका

एक तरफ दाखिल खारिज पर रोक है और दूसरी तरफ जमीनों की रजिस्ट्री निरंतर हो रही हैं। ऐसे में रजिस्ट्री होने के बाद भी खरीदार का नाम खतौनी में दर्ज नहीं हो पा रहा। दून में इस तरह के मामले प्रकाश में आते रहते हैं, जिनमें एक ही जमीन कई व्यक्तियों को बेच दी जाती है। अब तो नवीनतम खतौनियां भी जुलाई माह के प्रथम सप्ताह से पहले की ही हैं। यह कहना मुश्किल है कि दाखिल खारिज के जो 3000 हजार से अधिक प्रकरण लटके हैं, उनमें कितनी जमीन एक से अधिक व्यक्ति को बेच दी गई है। क्योंकि दाखिल खारिज न होने के चलते खतौनी में विक्रेता व्यक्ति के ही नाम चले आ रहे हैं। इसके साथ ही खतौनी में जमीन का जो रकबा दर्ज है, वह भी खतौनी अपडेट न होने चलते पूर्व की तरह ही चला आ रहा है।

एमडीडीए नक्शा पास नहीं कर रहा और बैंक लोन

किसी भी जमीन की अपडेट खतौनी इस बाद का प्रमाण होती है कि उसका असली मालिक कौन है। यही कारण है कि एमडीडीए नक्शा पास करने के लिए दाखिल खारिज को आधार मानता है और बैंक भी बिना दाखिल खारिज लोन नहीं देते। एमडीडीए में सामान्य तौर पर हर माह दो से ढाई हजार नक्शे दाखिल किए जाते हैं, जबकि इस दफा अगस्त से लेकर चार सितंबर तक भी महज 1300 के करीब ही नक्शे दाखिल हो सके हैं। साफ है कि दाखिल खारिज न होने की मार आम व्यक्ति पर हर तरफ से पड़ रही है।

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पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं कर पाई सरकार

राजस्व विभाग के सूत्रों के मुताबिक तहसीलों में शहरी क्षेत्रों के दाखिल खारिज आदि की प्रक्रिया को बहाल करने के लिए सरकार पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रही है। हालांकि, कोर्ट में जाने से पहले सरकार हर तरह की तैयारी पूरी करना चाह रही है। बताया जा रहा है कि प्रकरण में एक समिति का गठन भी किया गया है। इतना जरूर स्पष्ट है कि सरकार दाखिल खारिज आदि के अधिकार नगर निकायों को देने के लिए तैयार नहीं है और दूसरी तरफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को लेकर भी तेजी नहीं दिखाई जा रही। इन सबके पीछे आम व्यक्ति को उसके हाल पर छोड़ दिया गया है।

राजस्व सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम का कहना है कि लैंड रेवेन्यू एक्ट को लेकर हाई कोर्ट के आदेश के बाद बदली व्यवस्था और जनता को राहत देने के लिए हर एक बिंदु पर कसरत चल रही है। इस मामले का जल्द ही कुछ न कुछ समाधान खोज लिया जाएगा। बार एसोसिएशन देहरादून के अध्‍यक्ष मनमोहन सिंह कंडवाल का कहना है कि दाखिल खारिज में विलंब से जनता को परेशानी हो रही है। हालांकि, मामला कोर्ट में विचाराधीन है। सरकार को इस मामले में मजबूत पैरवी कर उचित समाधान खोजने के प्रयास करने चाहिए।

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