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चमोली के रैंणी गांव में आई आपदा में भी अर्ली वार्निंग सिस्टम की कमी की गई महसूस

उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। वर्ष 2013 में आई आपदा ने पूरे सूबे की तस्वीर बदल कर रख दी थी। इसके बाद से ही यहां आपदा का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपकरण लगाने की बात चल रही है। इनमें एक अर्ली वार्निंग सिस्टम भी है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 03 Jun 2021 03:42 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jun 2021 03:42 PM (IST)
चमोली के रैंणी गांव में आई आपदा में भी अर्ली वार्निंग सिस्टम की कमी की गई महसूस
उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है।

विकास गुसाईं, देहरादून: उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। वर्ष 2013 में आई आपदा ने पूरे सूबे की तस्वीर बदल कर रख दी थी। इसके बाद से ही यहां आपदा का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपकरण लगाने की बात चल रही है। इनमें एक अर्ली वार्निंग सिस्टम भी है। दरअसल, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में हर साल प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। इनमें सबसे अधिक बादल फटने और भूस्खलन की होती हैं। इन घटनाओं से सैकड़ों परिवार प्रभावित होते हैं। ऐसे में आपदा के दौरान समय रहते आमजन को सतर्क करने से जानमाल ही हानि कम हो सकती है। लिहाजा, अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की बात चली। अफसोस अभी तक इस दिशा में बहुत कुछ नहीं हो पाया है। कुछ समय पहले चमोली के रैंणी गांव में आई आपदा में भी अर्ली वार्निंग सिस्टम की कमी महसूस की गई। उम्मीद है इस बार सरकार गंभीरता से इस दिशा में जल्द कदम उठाएगी।

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 पौधरोपण नीति में संशोधन की दरकार

प्रदेश में हर साल डेढ़ करोड़ से अधिक पौधे रोपे जा रहे हैं। इस लिहाज से प्रदेश का वनावरण कहीं अधिक बढ़ जाना चाहिए था, लेकिन यह अभी 45 फीसद के आसपास ही सिमटा हुआ है। इसका कारण यह कि जो पौधे लगाए जा रहे हैं, उनमें से बहुत कम ही जीवित रह पा रहे हैं। पौधरोपण और इनकी देखभाल के लिए ठोस नीति के न होने से ऐसा हो रहा है। प्रदेश में जो पौधरोपण नीति है, वह उत्तर प्रदेश के जमाने से चली आ रही है। यानी, राज्य बनने के बाद अपनी पौधरोपण नीति बनी ही नहीं। पुरानी नीति में एक प्रविधान यह है कि रोपे गए पौधों की तीन वर्ष तक देखभाल की जाएगी। ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसका एक मुख्य कारण इसके लिए बजट न होना भी है। इस वजह से रोपे गए पौधों को अपने हाल पर ही छोड़ दिया जा रहा है।

शहीदों के नाम पर विद्यालय भवन

उत्तराखंड की सैन्य परंपरा अत्यंत गौरवशाली रही है। प्रदेश के तकरीबन हर परिवार से एक व्यक्ति सेना में है। सरहद की सुरक्षा के लिए बलिदान देेने वालों में उत्तराखंडवासी किसी से पीछे नहीं हैं। देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों के सम्मान में प्रदेश सरकार ने एक योजना बनाई। इस योजना के अनुसार स्कूल, कालेज व सड़कों के नाम शहीदों के नाम पर रखे जाएंगे। शहीद के जिले से संबंधित अधिकारी इस योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करेंगे। शुरुआती दौर में इस पर काम भी हुआ। तकरीबन 100 सड़कों व कुछ स्कूलों का नाम इन शहीदों के नाम पर रखा गया। इसके बाद यह आदेश बिसरा सा दिया गया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रदेश में अभी तक 600 से अधिक सैन्य कर्मियों ने देश के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाई है। इसके मुकाबले एक चौथाई के नाम पर ही सड़कें अथवा स्कूल कालेज अस्तित्व में हैं।

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गांवों में पर्यटन सुविधा का विकास

तेजी से हो रहे पलायन को देखते हुए प्रदेश सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराने की योजना बनाई। मकसद यह कि यदि गांव में ही युवाओं को रोजगार मिलेगा, तो वे पलायन नहीं करेंगे। इसके लिए ग्रामीण पर्यटन उत्थान योजना की शुरुआत की गई। योजना के तहत गांवों में पर्यटन विकास के साधन विकसित किए जाने थे। बाकायदा 38 गांवों का चयन किया गया। कहा गया कि देश-विदेश के पर्यटकों को यहां लाकर ग्रामीण परिवेश से रूबरू कराया जाएगा। बजट की कमी के कारण योजना परवान नहीं चढ़ पाई। प्रदेश सरकार इसके स्थान पर नई होम स्टे योजना लाई। इस योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में खाली घरों को होम स्टे के रूप में विकसित करने की बात कही गई। इसके तहत तकरीबन 2500 होम स्टे पंजीकृत हुए मगर कोरोना के कारण योजना को झटका लगा है। होम स्टे धारक ऋण की किस्तें तक नहीं चुका पा रहे हैं।

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