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चमोली आपदा: एक माह बाद भी प्रभावित गांवों में पटरी पर नहीं उतर पाई व्‍यवस्‍था

बीती सात फरवरी को चमोली के ऋषिगंगा में आए जलप्रलय को एक माह से अधिक बीत चुका है। लेकिन अभी तक आपदा प्रभावित गांव में व्‍यवस्‍था बेहतर नहीं हो पाई है। लोग आवाजाही करने के अलावा अन्‍य चीजों को लेकर परेशान हैं।

By Sumit KumarEdited By: Published: Fri, 12 Mar 2021 04:36 PM (IST)Updated: Fri, 12 Mar 2021 04:36 PM (IST)
चमोली आपदा: एक माह बाद भी प्रभावित गांवों में पटरी पर नहीं उतर पाई व्‍यवस्‍था
बीती सात फरवरी को चमोली के ऋषिगंगा में आए जलप्रलय को एक माह से अधिक बीत चुका है।

संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: बीती सात फरवरी को चमोली के ऋषिगंगा में आए जलप्रलय को एक माह से अधिक बीत चुका है। लेकिन अभी तक आपदा प्रभावित गांव में व्‍यवस्‍था बेहतर नहीं हो पाई है। लोग आवाजाही करने के अलावा अन्‍य चीजों को लेकर परेशान हैं। हालांकि शुरूआती दिनों में तेजी से हुए रेस्‍क्‍यू कार्य अब धीमा होने लगा है। तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की टनल में मलवा हटाने और लापता लोगों को रेस्‍क्‍यू के लिए टीम लगातार प्रयास कर रही थी, लेकिन यहां भारी मात्रा में पानी का रिसाव समस्या बन गई। मलबा हटाने से पहले पानी को बाहर निकालना रेस्क्यू टीम के लिए परेशानी बढ़ा रहा है। 

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ऋषिगंगा में आए जलप्रलय को एक माह का समय हो गया है। लेकिन अभी तक टनल के अंदर मौजूद व्यक्तियों की खोज पूरी नहीं हो पाई है। टनल के अंदर से पानी के रिसाव के चलते मलबा हटाना जोखिम भरा कार्य साबित हो रहा है। यही कारण है कि रेस्क्यू टीम जिस गति से टनल में बढऩी चाहिए थी वह नहीं बढ़ पाई है। अभी तक टनल में 200 मीटर ही मलबा हटाया जा सका है। ऋषिगंगा में आए जलप्रलय से एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना में भारी तबाही मची थी। इस टनल में 34 लोग फंसे हुए थे। इनमें से अभी तक 14 शव निकाले जा चुके हैं। रेस्क्यू को लेकर जैसे जैसे समय बीत रहा है वैसे बाधाएं बढ़ रही है। इस आपदा में कुल 205 लोग लापता थे। जिनमें से अभी तक 72 शव व 31 मानव अंग ऋषिगंगा, धौली गंगा व अलकनंदा के किनारे, रैंणी में ऋषिगंगा के मलबे व एनटीपीसी की परियोजना टनल में मिल चुके हैं। इनमें से 43 शवों व एक मानव अंग की शिनाख्त की जा चुकी है। 58 शवों व 28 मानव अंगों का 110 परिजनों के साथ डीएनए सैंपल मिलान के लिए भेजा गया है। प्रशासन ने 38 मृतकों के स्वजनों, 12 घायलों, एक परिवार सहित एक अन्य को गृह अनुदान मुआवजा राशि जारी की गई है।

लौटने का इंतजार कर रहे स्‍वजन 

ऋषिगंगा में आए जलप्रलय में लापता व्यक्तियों के स्वजनों को आज भी उनके लौटने का इंतजार है।तपोवन निवासी भरत बिष्ट का कहना है कि उनके निकट रिश्तेदार आपदा में लापता हैं। लापता व्यक्तियों में रिंगी निवासी नवीन की मां लक्ष्मी देवी भी शामिल हैं। नवीन को आज भी मां के लौटने का इंतजार है। ग्राम प्रधान ङ्क्षरगी विनोद नेगी का कहना है कि जल विद्युत परियोजना के क्रशर साइड में 23 वर्षीय मनोज नेगी तैनात था। जो लापता है। परंतु एनटीपीसी ने लापता कर्मचारी के स्वजनों की सुध भी नहीं ली है।

गांवों में भूस्खलन, भू धंसाव से नई मुसीबत

धौली गंगा के किनारे बसे गांवों में धौली गंगा व ऋषि गंगा से कटाव के चलते अस्तित्व का खतरा भी मंडरा रहा है। इन गांवों में भूस्खलन रोकथाम के लिए अभी कोई कार्ययोजना ही नहीं बनी है। ऋषिगंगा में आए जल प्रलय से रैंणी, तपोवन, भंग्यूल, गैर, जुगजू, जुआग्वाड़ सहित कई गांव ऐसे हैं जहां नदी के कटाव से लगातार भू धंसाव हो रहा है। इन गांवों को बचाने के लिए एक बड़े ट्रीटमेंट कार्ययोजना की जरूरत है। लेकिन गांवों में फिलहाल प्रशासन राहत एवं बचाव कार्य कर गांव तक आवाजाही सुचारु करने तक ही सीमित है। अभी तो नदी का जल स्तर घटने से गांवों को खतरा नहीं है। लेकिन मानसून के दौरान इन गांवों में भूस्खलन, भू धंसाव से नई मुसीबत आ सकती है।

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आपदा प्रभावित 13 गांवों को करना पड़ सकता है लंबा इंतजार

गांवों में नदी या फिर गदेरों को पार कर गांव तक पहुंचने के लिए झूला पुल लाइफ लाईन मानी जाती है। आपदा में बहे झूला पुलों के निर्माण के लिए आपदा प्रभावित 13 गांवों को अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। हालांकि इन गांवों में जीवन की हलचल ट्राली के सहारे चल रही है। ये ट्रालियां भी तब चल रही है जब मौके पर रस्सियां खींचने के लिए नदी के दोनों छोर पर चार लोग मौजूद हों।जलप्रलय के दौरान ऋषिगंगा, धौली गंगा व अलकनंदा नदी में बाढ़ आने से नदी घाटी में गांवों को जाने वाले छह झूलापुल बह गए थे। ये झूला पुल इस क्षेत्र के 13 गांवों की लाइफ लाईन माने जाते हैं। हालांकि आपदा के तुरंत बाद अस्थाई व्यवस्था के लिए गैर भंग्यूल, जुआग्वाड़ व रैंणी में लोक निर्माण विभाग द्वारा ट्रालियां लगाई हैं। परंतु ये ट्रालियां पर्याप्त नहीं हैं। ट्राली खींचने के लिए चार व्यक्तियों की हर वक्त जरूरत नदी के दोनों किनारों पर रहती है। ट्रालियों पर मोटर लगाए जाने का कार्य अभी होना बाकी है। स्थाई व्यवस्था के रूप में जुआग्वाड़, भंग्यूल गैर, जुगजू झूला पुल निर्माण के लिए 22 करोड़ का आंगणन भेजा है। लेकिन इस पर अभी धनावंटन दूर की कौड़ी है। विष्णुप्रयाग में भी बाढ़ से पुल क्षतिग्रस्त हो रखा है। जिसकी मरम्मत की जानी है।

झूलापुल बहने से पगडंडी ही एक सहारा

आपदा प्रभावित जुगजू गांव को अभी भी चार किमी लाता से पहाड़ी नापकर गांव तक पहुंचना पड़ रहा है। यह सफर इतना खतरनाक है कि ग्रामीण आवश्यक कार्य के लिए ही सड़क तक आ रहे हैं। जोशीमठ विकासखंड का जुगजू गांव रैंणी के ठीक सामने धौली गंगा किनारे बसा है। इस गांव तक जाने के लिए एकमात्र झूला पुल आपदा में बह गया था। गांव में 10 से अधिक परिवारों की 70 से अधिक जनसंख्या है। स्थिति यह है कि आपदा के दिन से ही ग्रामीण ट्राली या अस्थाई पुल की मांग कर रहे हैं। परंतु अस्थाई पुल तो छोड़ो प्रशासन ने यहां ट्राली भी नहीं लगाई है। नतीजतन, फिलहाल ग्रामीण अपने गांव तक पहुंचने के लिए रैंणी से चार किमी होते हुए लाता झूला पुल से गांव पहुंच रहे हैं। गांव तक खतरनाक चटटान के बीच पैदल रास्ता भी नहीं है। जंगलों में घास लाने के लिए प्रयोग में आने वाली पगडंडियों को नापकर ग्रामीण गांव तक पहुंच रहे हैं। गांव के निवासी मुरली सिंह का कहना है कि चार किमी पैदल चलकर गांव पहुंचने के लिए पैदल रास्ता न होना सबसे बड़ी मुसीबत है। ग्रामीण सिर्फ दिन में ही आवाजाही कर पा रहे हैं।

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