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सेना की मारक क्षमता को इस तरह अचूक बना रही है आर्डनेंस फैक्ट्री, जानिए कब आई अस्तित्व में

वर्ष 1943 में अस्तित्व में आई यह फैक्ट्री अनवरत रूप से सेना के लिए राइफल की साइट से लेकर टैंक तक की साइट का निर्माण कर रही है। अब फैक्ट्री आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को साकार करने में भी अपना योगदान दे रही है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 02:46 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 02:46 PM (IST)
सेना की मारक क्षमता को इस तरह अचूक बना रही है आर्डनेंस फैक्ट्री, जानिए कब आई अस्तित्व में
सेना की मारक क्षमता को इस तरह अचूक बना रही है आर्डनेंस फैक्ट्री। जागरण आर्काइव

जागरण संवाददाता, देहरादून। देश की रक्षा में आर्डनेंस फैक्ट्री के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वर्ष 1943 में अस्तित्व में आई यह फैक्ट्री अनवरत रूप से सेना के लिए राइफल की साइट से लेकर टैंक तक की साइट का निर्माण कर रही है। अब फैक्ट्री आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को साकार करने में भी अपना योगदान दे रही है। बीते कुछ समय में ही फैक्ट्री ने स्वदेशी तकनीक पर तमाम रक्षा उत्पाद तैयार कर लिए हैं।

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आर्डनेंस फैक्ट्री देहरादून अब कंपनी के रूप में इंडिया आप्टेल लि. (आइओएल) के तहत काम कर रही है। इसमें आप्टो इलेक्ट्रानिक्स फैक्ट्री (ओएलएफ) को भी शामिल किया गया है। ओएलएफ की स्थापना वर्ष 1988 में की गई। फैक्ट्री के हालिया योगदान की बात करें तो आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के अनुरूप हमारी रक्षा अनुसंधान एवं निर्माण इकाई तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इस दिशा में फैक्ट्री ने टी-90 टैंक की कमांडर साइट का विकास किया है। यह साइट पूर्व में रूस की मदद से तैयार की जा रही साइट से न सिर्फ अलग है, बल्कि अचूक क्षमता से भी लैस है।

रूस की मदद से तैयार की जाने वाली कमांडर साइट में इमेज इंटेंसिफायर सिस्टम लगा था। इस माध्यम से सीमा पर निगरानी या दुश्मन पर निगाह रखने के लिए हल्की रोशनी की जरूरत पड़ती थी। रोशनी के चलते कई दफा दुश्मन को हमारे ठिकाने की जानकारी मिल जाती थी। सुरक्षा के लिहाज से इसे पूरी तरह अचूक नहीं माना जा सकता।

असाल्ट राइफल की साइट तैयार करने का श्रेय भी आर्डनेंस फैक्ट्री को जाता है। पहले एसएलआर (सेल्फ लो¨डग राइफल) के लिए साइट का निर्माण किया जाता था।

अब असाल्ट राइफल के लिए डे-साइट तैयार की गई है। इसके फील्ड परीक्षण किए जा रहे हैं। विदेशी कंपनियों की साइट से इसकी तुलना करने पर पता चला कि आत्मनिर्भर भारत के तहत बनाई गई साइट से अधिक सटीक निशाना लगाया जा सकता है।

वहीं, ओएलएफ की बात करें तो इसने बीएमपी-दो टैंक की नजर को अचूक बनाने का काम किया है। पहले टैंक के लिए सिर्फ दिन में देखने वाली (डे-साइट) उपलब्ध थी, जबकि अब नाइट साइट भी ईजाद की गई है। दूसरी तरफ फैक्ट्री मिसाइल साइट भी विकसित कर चुकी है। हैदराबाद के बीडीएल (भारत डाइनेमिक्स लि.) से फैक्ट्री को इस साइट के आर्डर मिल रहे हैं।

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